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MSW Sunil Saini CENA

लघुकथा शीर्षक: हाजिरजवाबी a laghukatha by ©MSW SunilSaini CENA Jind, Haryana-126102. #MyPenStory #कहानी #nojotovideo

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LOL

सीरीज १, शीर्षक: मुआबजालघुकथा #मुआबजा #yqbaba #yqdidi #yqdiary

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काली पहाड़ के एक छोटे से गांव में रहता था जो शहर से काफी दूर था उसके गांव में मुश्किल से तीन-चार परिवार रह रहे थे बाँकी शहर जा बसे थे।
काली को उम्मीद थी इस दफा मौसम उसका साथ देखा और फसल अच्छी कटेगी और उसके साल के दिन भी।फिर बारिश हुई,लेकिन इतनी घनघोर थी कि काली के दो खेत बह गए।
काली अगले दिन खेतों का जायजा लेकर भगवान को कोस ही रहा था कि पास खड़े चंदू ने बोला
"सरकार बहे खेतों का मुआबजा बाँट रही है एक खेत का दस हजार तुझे बीस हजार मिल जाएंगे बस तहसील में आधार कार्ड दिखाना होगा"।
अगले दिन काली चंदू के साथ तहसील गया।बाबू ने रजिस्टर पर उसके अंगूठे की छाप लेकर जेरोक्स जमा कर ली।
तहसील से आये कई दिन हो गए लेकिन मुआबजे की कोई खबर नहीं थी काली कई बार चंदू के फ़ोन से तहसील ऑफिस फ़ोन कर चुका था पर वाजिब जवाब नहीं मिल रहा था।
इसी बीच चंदू शहर जा रहा था काली ने चंदू को मुआबजे का पता करके आने को बोला।देर शाम चंदू लौटा,काली उसके घर पता करने गया चंदू बोला "मुआबजा रद्द हो गया है सरकार को इस गाँव से कोई फायदा नहीं था यहाँ वोट कम हैं तो मुआबजा रद्द कर दिया"।
काली उदास घर वापस लौट ही रहा था कि उसे याद आया उसका गमछा चंदू के घर छूट गया है वो मुड़ा और चंदू के दरवाजे पर पहुँचा ही था कि उसने सुना
"बेवकूफ काली मान गया हम पैसे बाँट लेंगे"

काली मुस्कुराया और लौट आया उसे मुआबजा मिल चुका था!
-KaushalAlmora


 

 


 सीरीज १, शीर्षक: मुआबजा#लघुकथा #मुआबजा #yqbaba #yqdidi #yqdiary

मनीष कुमार पाटीदार

लघुकथा #story

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नौजवान (लघुकथा) - मनीष कुमार

मै काफी देर से उस नौजवान को गाँधीजी की प्रतिमा को साफ करते देख रहा था जो चौराहे के बीचोंबीच लगी थी। जबकि आज न तो गाँधी जयंती थी और न ही बापू की पुण्यतिथि या कोई राष्ट्रीय त्यौहार। नौजवान बड़े प्यार से प्रतिमा को कपड़े से साफ कर रहा था। जब पुरी सफाई हो गई और वह जाने लगा तो मैने लहराते हुए आवाज दी -" क्यों पार्टी किधर को चल दिये। गाँधीजी की प्रतिमा को तुमने तो बिलकुल चमका दिया।
वह मुझे थोडा़ आश्चर्य दृष्टि से देखने के बाद बोला-" हाँ बाबूजी.... मै यही बाजु वाली गली में रहता हूँ। मेरे पिताजी बहुत बड़े कलाकार थे। उन्हीं ने गाँधीजी की प्रतिमा को बनाया था। आज पिताजी नहीं रहे। इसी चौराहे पर कुछ रोज पहले मोटरगाड़ी की चपेट में आ गये और फिर....."
नौजवान इसके आगे कुछ और कह न सका। फिर भी जाते - जाते उसके चेहरे से प्रेम व अहिंसा की लकीरें साफ दिख रही थी। जाते - जाते नौजवान मुझे कर्तव्य का पाठ सीखा गया। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ नौजवानों की आज देश को बहुत जरूरत है। लघुकथा

kumarउमेश

लघुकथा

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Durga Banwasi Shiwakoti

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suniti mehta

लघुकथा #प्रेरक

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