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anshika Anshh
#पौधा एक छोटी सी डाली घर मे मैंने जिसे लगाया था ध्यान दिया ना पानी उसको घर ही जिसने बदला था धीरे धीरे पीली हुई और हो गयी फिर काली भी पत्ते भी न बाकि थे अब सूख चुकी वो डाली भी हल्का सा जो ध्यान दिया फिरसे हो गए हरे हरे सूख चुकी थी जो डाली पत्ते जिसके सूख चुके थोड़ी सी दी खाद उसे और वक़्त पे उसको पानी दिया आज देख के सुकूं मिला जब पत्ता देखा उसपे नया काट दिया होता ग़र इसको जब ये पौधा सूखा था क्या फिरसे ये उठ पाता जो मौका फिरसे दिया ना होता देख इसे यूँ हरा भरा ख़्याल मन मे आया है रिश्तों की ग़र बात करूं क्या पौधे जैसे नहीं हैं ये पानी खाद जो दोनों देते क्या न फलते तेरे मेरे -Anshh पौधा
SHANU KI सरगम
32/ नन्हा पौधा ये बड़ा हुआ , जिसको बचपन में रोपा था। निर्जीव नहीं हां जीव समझ, मन प्रीत लिए नित सींचा था। पुलकित इसको छू मन मेरा कहता तुम जीवन दाता हो, वो श्वास श्वास को तरस गये, जिस जिस ने इनको काटा था। संगीता शर्मा शानू ©SHANU KI सरगम पौधा
Sunil Kumar Maurya Bekhud
नन्हा हूँ आज कल बहुत विशाल बनूगा दुनिया के लिए मैं भी बेमिशाल बनुगा मुझको कोई ज़मी मे लगाकर के सींच दे थोड़ी सी जगह अपने अंजुमन के बीच दे उसके मुसीबतों के लिए काल बनूगा रक्षक बनेंगी सबके लिए ये मेरी साँसे हरदम रहूँगा सबको फल फूल लुटाते हरदम मैं उसकी जिंदगी का ढाल बनूगा संकल्प लिया हमने भी परोपकार का कीमत दिया प्राण दे सबके उधार का सबके लिए संजीवनी हर हाल बनूगा ©Sunil Kumar Maurya Bekhud पौधा
Pooja Udeshi
एक पौधा और एक इंसान मे क्या फर्क है यहीं की एक देना ही जानता है और इंसान सिर्फ लेना ही जानता है अगर इंसान पेड़ जैसा बन जाये तो दुनियां खुशियों से भर जाये कोई किसी से कुछ ना छीने किसी का खजाना ना खाली हो कोई जुल्म कांड ना हो हर जगह परोपकार हो जीवन नदी के समान बहे कोई जीवन तबाह ना हो इंसान इंसानियत के दायरे मे रहे कोई इंसान कंगाल ना हो कोई भूखा ना सोये जीवन मे कोई तकरार ना हो प्यार ही प्यार हो और जीवन कितना आसान हो पूजा उदेशी ✍️ एक पौधा
Rakhi Bisht
याद तुम्हारी आते ही आँसुओं की कुछ बूँद पन्नों के खेत पे गिर आयी। फिर जितने तुम्हारे नाम के बीज थे वहाँ, वो सब पौध बन खिल आयी। #विचार #पौधा
dilip khan anpadh
वो पौधा ******* प्रेम की जिस पौधे को मैने सींचना छोड़ दिया था आज उसमे फिर नई कोपलें फूटी है। मैं बस देखता रहा उस पथिक को जिसने , रासाबृष्टि की इसके इर्द-गिर्द कोई हलचल,कोई प्रतिरोध नही सिर्फ एक सवाल यह प्रयास क्यों? क्या इसमे फिर से फूल लगेंगे? जी चाहा, रोकूँ उस पथिक को पर नजर उस बेजान होते पौधे पर पर पड़ी दर्द उभड़ आया अनायास ही हाथों ने सींचते हाथों को थाम लिया तरुण बृक्ष ने हर्सोन्मादित हो अंगड़ाई ली हवा के झोंको ने मादकता दी नव पत्तियों ने श्रृंगार दिया वह प्रसस्त, पथ पर बढ़ चला। हमारी नजरे मिली नयनो में खुशी और आनंद का उत्सव था अचानक विचारों के तरंग से झंकृत हुआ एक बार पतझड़ फिर खड़ा था उसे श्रृंगारहीन और बेजान करने को @दिलीप कुमार खां"""अनपढ़"" #वो पौधा