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Bharat Bhushan pathak
Sharddha Saxena
द्रौपदी जो यज्ञ के ताप से निकली थी थी द्रोपद की द्रौपदी वो। ना बचपने की अनुभवी थी थी यौवन की युवती वो। अर्जुन की होकर भी वो सम्मान से वंचित थी थी कुंती के वचनों से पांचों भाइयों की पत्नी वो। कुलवधु थी पांडव की फ़िर भी हुई अपमानित थी द्रुपद की द्रौपदी से पांडवों की पांचाली वो। एक खेल ऐसा खेला जिससे हुईं वो शोषित थी पांचाली से बनी दुर्योधन की दासी वो। खींचे बाल लाई सभा में किया गया वस्त्र हरण ऐसे हुई अपमानित थी फ़िर दासी से हुई कृष्णा की भक्तन वो। सभा में बैठे प्रत्येक की वधू थी फ़िर क्यों हो गए सभा में बैठे सारे नपुंसक वो। सारी सभा झुकाए नज़र थी ऐसे मे कृष्ण को ही पुकारती वो। कृष्ण की भक्ति से ही देखी चमत्कारिक शक्ति थी एक चीर का ऋण फ़िर कृष्ण ने उतारा वो। अपमानित हुई सभा में ही बोली उसी सभा में थी खुले केश में पांडव लेंगे मेरा प्रतिशोध वो। सारे रिश्तों को भूल कर लाईं सबको रण में थी अपमानित से महाभारत की कारण बनी अब वो। कोई बने ना द्रौपदी अब ऐसी शक्ति बनना है नारी को अपने ही हाथो से दुशासन का संहार करे वो। फ़िर कोई दुर्योधन उसे सभा में खींच नही सकता आज की नारी को कोई रोक नहीं सकता। ©Sharddha Saxena द्रौपदी
Sthapak Harshita
थी द्रुपद देश की राजकुमारी,.................................................. थे परम ज्ञानी कुलगुरु परम महात्मा विदुर परम पितामह वहाँ उपस्थित थे पर उस अधर्म में अपना धर्म निभाने ये सभी वहाँ बैठे नतमस्तक थे फिर गुरु की प्रेरणा से द्रौपदी को गुरु मंत्र का ज्ञान ध्यान तब आया और फिर सती द्रौपदी ने श्री कृष्ण को करुणा की गुहार से चिल्लाया जैसे ही श्री कृष्ण बहन की पुकार सुनते है छोड़ देते है सब काम वही और बिन खडाऊं ही दौड़े आते हैं श्री कृष्ण ने द्रौपदी की सारी का इतना चीर बढ़ा डाला..और खिचवा खिचवा कर दुश्वासन का हाल बेहाल कर डाला | वहाँ बैठे सभी अधर्मियों को गजब अचंभा होता है ऐसे कैसे एक बेबस नारी का चीर एकतरफा बढ़ता है तब श्री कृष्ण की मौजूदगी का द्रौपदी को अनुभव होता है फिर हो जाती है बेफिक्र द्रौपदी, और फिर सौगंध उठाती है और उसी सौगंध के चलते एक कृष्ण भक्त नारी वृहत महाभारत की नीव रख जाती है| इतिहास गवाह है इस युग में जब जब एक सती नारी की लाज पर आंच आती है, फिर इस सारे ब्रह्मांड में एक प्रलय सी खलबली मच जाती है | ©Sthapak Harshita द्रौपदी
sanatani boy
Prem arya
Hindi SMS shayari भीड़ लगा था, सभा लगी थी, बड़े-बड़े धर्मी थे बैठे, राजा-महाराजा, ज्ञानी से लेकर सारे अभिमानी थे बैठे, बीच दरबार मे पिता-चाचा के सामने जुए का था खेल चला, राज-पाठ, इंद्रप्रस्थ,भाइयो औऱ खुद को भी युधिष्टर हार चला, अब होना था कुछ ऐसा जो बड़ा ही अचंभा था, बैठ जुए में बीच सभा मे एक नारी का दांव लगा, देखते ही देखते जुए में धर्मराज पत्नी को हार गया, काहे का धर्मराज जो पत्नी को दांव लगाता है, अधर्मी दुर्योधन द्रौपदी के अस्मत की खिल्ली उड़ाता है, बीच सभा मे बैठा बलशाली पांडव हाथ मला रह जाता है, भीम गदा औऱ अर्जुन का धनुष भी काम ना आता है, चाचा-ताऊ, ससुर सारे बस पात्र बने रहते है, बीच सभा मे ख़ुद की बहू का चिर-हरण देखते है, वो तो प्रभु कृष्ण थे जिसने भक्तन का मान बढ़ाया, औऱ एक नारी की अस्मत तार-तार होने से बचाया!! #NojotoQuote #द्रौपदी #चीरहरण
Ravi sharma
#द्रौपदी नेत्र जिसके कमल, भौहे चंद्रमा सम वक्र थी... द्रुपद सुता वो द्रौपदी मानो सुदर्शन चक्र थी... जो भेद पाए मत्स्य चक्षु, वही प्रतिभावान है... अग्निसुता के योग्य वो ही वीर सामर्थ्यवान है... शर्त जो की पूर्ण ना हो, कर्ण या अर्जुन बिना... पर द्रोपदी ने कर्ण से था ये अधिकार भी छीना... सब सभागण दंग थे यह दृश्य अद्भुत था बड़ा... जब हाथ में शिव धनुष ले अर्जुन सभा में था खड़ा... जब मत्स्य चक्षु भेद डाला एक ही बस बाण में... तब ही जाकर प्राण आए द्रौपदी के प्राण में... अग्निसुता फिर पांच पतियों में विभाजित की गयी... वरदान था, फिर भी सभा में वो कलंकित की गयी... धर्म के गुणगान करते वीर सब कुछ सह गए... भीष्म के भी नयन अश्रु स्त्रोत बन कर रह गए... पंच पतियों संग सभा सहती रही जब पीर को... तब कृष्ण ने था बचाया, द्रुपद सुता के चीर को... अधर्म के उस दौर में धर्मयुद्ध की घड़ी आ गयी... गुरु द्रोण से लेकर पितामह सब को मृत्यु खा गयी... द्रौपदी ने केश धोए, दुशासन के बहते रक्त से... हो गया विजयी धर्म तब उस महासमर के अंत से... -Ravi sharma #महाभारत #द्रौपदी
Sneh Prem Chand
उठो द्रौपदी,वस्तु नहीं,एक व्यक्ति हो तुम अविभाज्य है तुम्हारा किरदार। कैसे बांट सकता है कोई अपनी शरीक ए हयात को, इतिहास की ये बात वर्तमान आज भी नहीं कर पाता स्वीकार।। ©Sneh Prem Chand उठो द्रौपदी #girl
प्रभाकर अजय शिवा सेन
मत रो बहना द्रौपदी,जीवन है संग्राम। धीरज धर मन शांत कर,पूर्ण होंगे सब काम।। सत्य-असत्य सर्वत्र है,अबला सबला होए। नारायण पूरक बने,पाँचाली जब रोए।। कौन राह किसकी तके,भला बताए कौन। करे प्रतीक्षा समय की,रखे धैर्य और मौन।। ©प्रभाकर अजय शिवा सेन मत रो बहना द्रौपदी।