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SHASHI KANT SHARMA

ए इश्क़ तेरे टक्कर की बीमारी आयी है__₹_&₹___₹₹

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*ना कोई इलाज, ना टीका ना इसकी कोई दवाई है*
*ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है*

*काम कर रहे हैं घर का मालिक मालकिन*
*मुफ्त में पगार ले रही काम वाली बाई है*
*ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है*

*काम धंधे का है मीटर डाउन,* 
*फुल ड्यूटी है पाजामा और गाउन*
*अलमारी में बंद पड़े, हंस रहे पेंट शर्ट और टाई है*
*ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है*

*रूक गये सारे सैर सपाटे, बंद हो गई सब विदेश यात्राएं*
*अब तो चारों धाम, घर की लुगाईं है*
*ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है*

*बंद हो गए सारे होटल मयखाने, ना कहीं चाट ना कहीं मिठाई है*
*घर की दाल रोटी में रहो खुश, ये ही अब सबकी रसमलाई है*
*ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है*

*हाथों को धोएं बार बार, मुंह पर लगाएं मास्क*
*घर मौहल्ला शहर रखें साफ़, इसमें सबकी भलाई है*
*ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है*

*घर में रहें सुरक्षित और ऊपरवाले से करें ये प्रार्थना*
*क्योंकि जब जब मुसिबत आई हैं, उसने ही रहमत बरसाईं है*
*ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है* ए इश्क़ तेरे टक्कर की बीमारी आयी है#_#_₹_&₹___₹₹

कवि हिमांशु परौहा "भोलू"

#कोरोना #बीमारी आयी है साहब

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Alone  भूँख कहाँ जानती है ,बीमारी आयी है साहब
फिर मेरे हिस्से में इक ,लाचारी आयी है साहब

अभी अभी शुरू किये थे ,संभलना नौकरी पाकर
अभी अभी ये आफत ,बहुत भारी आयी है साहब

दाल ,आटा ,चावल के भाव बढ़ा रहे हैं लोग अब
बाजार में इक नई ,होशियारी आयी है साहब

कह दो न लोगों को ,बस दो रोटी मुहैया करा दें
यूँ चौखट पे गर कोई ,भिखारी आयी है साहब

कमाना चाहते थे जो पुण्य ,जाने किस किस तरह से
बता दो इंसानियत कि अब ,बारी आयी है साहब

--हिमांशु परौहा
     "भोलू"

##dedicated to people who belongs to middle class or lower middle class and depend on their daily wages##pllzzz support to needy peoples who are surrounding you##corona virus##bhukhmari##😢## ##कोरोना ##बीमारी आयी है साहब

Rana Hijab

सुना है कि एक बीमारी आयी है!!

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पढ़ा लिखा नहीं हूं "लॉकडाउन" का मतलब मैं नहीं जानता,                           मगर सुना है कि  एक बीमारी आयी है ,                                                                                       क्या देश  क्या विदेश सब पर छाई  है,                                                                     झुग्गी में बैठा वह मज़दूर अपनी पत्नी से कह रहा था,                                                                     उदास था परेशान था                                                                                                 और फिर गरीबी का दर्द भी तो एक अरसे से सह रहा था,                                                                           इस बड़े  शहर में वैसे  भी कहां उसका गुज़ारा हो पाता था,                                                                                        दिहाड़ी का पैसा तो दो वक़्त के खाने में ही चला जाता था,                           अब कल से जब काम बन्द हो जायेगा अपनी फ़िक्र नहीं है उसे                                 उसका बच्चा क्या खायेगा?                                                                                               छोटी- छोटी बहुत सी झुग्गियों वाली इस बस्ती में,                                            थे उस जैसे बहुत से मजबूर,                                                                                           भीड़-भाड़ वाले इस शहर से गांव भी थे उनके बहुत दूर,                               कहां जाए क्या करे ,                                                                                                       एक -एक पल था उस पर भारी,                                                                          क्या पत्नी क्या बच्चे                                                                                    पूरे परिवार की थी उस पर ज़िम्मेदारी,                                                                                            सुन रही हो क्या!                                                                                                 कल सामने वाली झुग्गी में दो लोग आये थे,                                                कुछ राशन कुछ कैमरा लाये थे                                                                      हां देखा था मैंने भी!                                                                                      ये जाहिल क्या समझेगें  हम गरीबों की हताशा ,                                                                             बेबसी को कैमरे में कैद कर गरीबी का बना रहे हैं तमाशा,                                                                                                   बन रहे हैं दयावान और महान,।                                                             नासमझों अच्छा होता पहले बन जाते अगर इंसान                                                                              वापस जाएं तो कैसे?                                                                                      रास्ता लंबा है पैसा पास नहीं,                                                                                                      खेत तो पहले  ही बिक गया था                                                                     कि गांव में भी गुज़ारे कि अास नहीं,                                                         दिहाड़ी की मज़दूरी में पैसा बचता नहीं था फिर भी बचा लेते थे,                                                            एक वक़्त की रोटी को दो वक़्त चला लेते थे,                                                                                  मज़दूर  बच भी गए इस बीमारी से तो उन्हें गरीबी और भूख ले जायेगी,                                                                                               एक झुग्गी नहीं धीरे-धीरे बस्ती खाली हो जायेगी,                                          मदद का पैसा बस्ती तक पहुंच ही नहीं पाता है ,                                               न जाने बीच में उसे क्या हो जाता है?                                                             कल तो  भूखे सो गए थे , आज क्या खाएंगे                                                                      इस चिंता में डूबे पति-पत्नी के मन में आशा की किरण दौड़ आयी                  जब बाहर से उनके बच्चे नें पुकार लगाई,                                                                         मां! देख खाना लेकर तस्वीर खिंचवाने की हमारी झुग्गी की बारी आई है,                                            सुना है कि एक बीमारी आयी है!! सुना है कि एक बीमारी आयी है!!

Ek Tha Ravan

बीमारी लेकर आया है

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सुनने में आया है फरवरी महामारी लेकर आया है
मोहब्बत जैसी खतरनाक बीमारी लेकर आया है.. बीमारी लेकर आया है

vijender singh

घमंड की बीमारी #Motivational

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Kumar Manoj Naveen

आजादी की बीमारी #कविता

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गुलामी देखी नहीं,परआजादी  चाहते हैं, बीमारी है कुछ भी नहीं, पर दवा मांगते हैं।
ऐ खुदा इस कदर इन्हें बीमार कर, 
कि इनकी मुराद पूरी हो, 
इस दवा की जरूरत पड़े
और ईलाज जरूरी हो।। आजादी की बीमारी
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