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Ajay Amitabh Suman

जब रथ विहीन, सारथी विहीन , घोड़ा विहीन और भुजा विहीन हो रावण जमीन पर आ गिरा था #Jatayu #ravan #ramayan mythology #पौराणिककथा

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priyasahil Jain

शब्द विहीन #YouNme #विचार

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दिल एक है तो फिर कई बार क्यू लगाया जाए, 
दिल एक है तो फिर कई बार क्यू लगाया जाए
 बस एक इश्क़ बहुत है अगर निभाया जाए 
  

fake love's.....

©Mohini Vaish शब्द विहीन

#YouNme

Kamal bhansali

सारः-विहीन जीवन #Messageoftheday

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#MessageOfTheDay शीर्षक: सारः-विहीन जीवन

जो "जीवन" आकाश से आता
धरा पर 'समय' से बंध जाता
उम्र की परिधि में ही चलता
इसलिए "जिंदगी" नाम पाता

'आगमन' होने पर भी जो रोता
'मृत्यु' का उपहार ही वो पाता
'संसार' आखिर क्या बला है ?
न जीकर, न मरकर समझ पाता

बहुत कुछ पाता "जीवन" आँचल में
पर रहता वो अपने ही 'खालीपन' में
आंगन में बिखरी धूप न देख पाता
अंधेरो की तलाश में, खुद,खो जाता

'प्रेम' रोग से धरती पर ग्रस्त हो जाता
मोह, माया की  मदिरा से  झूम जाता
नशा जब उतरता, बेचैनियों से घबराता
भोग में फंस, क्यों तन पाया ? भूल जाता

आशा निराशा के पहलू में, करवट बदलता
अपने पराये की चादर में, स्वयं न ढक पाता
सब कुछ देकर, अपने आंसू स्वयं ही पीता
सारः-विहीन  "जीवन" है, यह कहकर जाता
रचियता✍️ कमल भंसाली

©Kamal bhansali सारः-विहीन जीवन

#Messageoftheday

लेखक ओझा

#shabd लक्ष्य विहीन जीवन #Motivational

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Usha Dravid Bhatt

खुशियों से विहीन मरुस्थल #कविता #OpenPoetry

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#OpenPoetry मरुस्थल

सफेद किरमिची चादर सा दिखता मरुस्थल,
भोर की बेला जैसा कितना शान्त और शीतल ,
मैं चली जा रही हूँ ,
कभी न मिलने वाले बिछडे साथी की खोज में ,
ज्यों भटकता रहता है हिरण अपने गर्भ में छिपी कस्तूरी की खोज में ।
कांटे बिंधे पैरों से , जख्मी तन लिए , 
आंसुओं से तर-बतर चेहरा -
ऐसे ढूँढ़ता है अपने प्राण को,
जैसे निष्प्राण सा पागल अन्त समय में प्राणवायु ढूंढता है ,
क्या मिल सका है कभी ,खोया हुआ ,इस अनन्त फैली मरुभूमि में ।
असंख्य हादसों की कब्रगाह बन कर कैसे शान्त हो तुम ,
अब तो बता कहाँ है मेरा राही , तू इतना कठोर मत बन -
देख आंख वीरान हैं ,जिस्म  वेजान है ,शब्द पथरा गये ।
सोचा था मेरे हृदय की चित्कार के दर्द को तू सह न पायेगा ,
भूल थी मेरी ,कहां मैने आंसू बहाए ,
अरे मरू तू तो  म-रु-स्थल है कहां तुझमे संवेदनाएं ।
थक गयी हूं अब , लहू  रिसते घावों का दर्द सह नहीं सकती ,
विश्रान्त दे दे मुझे , अपनी स्पन्दन हीन निशान्त गोद में ,
कि पहुँच जाऊँ मैं अपने प्रिय के पास ।
भोर बिना  *उषा* का क्या  अस्तित्व ।
बस अब सो जाऊं , जहाँ से  फिर  कभी उठ न सकूं 
चिरंतन काल तक ,
दरकती  खिसकती रेत में ,
लुप्त हो गयी  खुशियों की तरह ।। खुशियों से विहीन मरुस्थल

मृग

अस्तित्व विहीन 'हम' #alone #Poetry

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अस्तित्व विहीन ' हम '
उलटी है ज़माने से उसकी चाल
सुना है ज़माने ने उसे बहुत मारा है
घसीटा है उसे सड़को पर, 
दफनाया मस्जिदों और मंदिरों के मलबे में
बदलने की कोशिश की शहरो के नामों ने
बेचा है धर्म के ठेकेदारो ने अपनी दुकानों में
जलाया है राजनेताओं ने राजनीति में
कहने को लेकर आया सबको साथ
पर उसको उसी की जमीन से निकाला है
सबने अपने मतलब के खातिर
ताकि रह न जाए 
हमारे तुम्हारे बीच 
उसका अस्तित्व 
खो जाए कही वो
ताकि को तुम तुम ना रहो 
और हमारे बीच हमारा गौरव हम न रहे।

©मृग अस्तित्व विहीन 'हम'

#alone
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