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Preeti Karn
बहुत हो चुकी अब हवाओं की बातें ज़मीं की भी परवाह करें थोड़ी थोड़ी.... वफ़ा की कसम खाते रहते हैं अक्सर जियें खुद में अब बेरूखी थोड़ी थोड़ी!! प्रीति #खूबियाँ #खामियां #खुशफहमी #yqhindiurdu #yqdidiquotes
Hasanand Chhatwani
कैसे छलका दूँ दर्द अपना... किसी के दामन में... रहने दो सबको ये खुशफहमी कि खुश बहुत हूँ मैं... !!
Humayoun Naqsh
गलतफहमी हमारी ज़िन्दगी की नहीं गलतफहमी में हम हैं, करनी थी हमें खुदा को राज़ी ना जाने हम क्या क्या कर रहे हैं, खुशफहमी में काट रहे हैं हर एक दिन नजाने खुशी के लिए क्या क्या कर रहे हैं। गलतफहमी हमारी ज़िन्दगी की नहीं गलतफहमी में हम हैं, करनी थी हमें खुदा को राज़ी ना जाने हम क्या क्या कर रहे हैं, खुशफहमी में काट रहे हैं हर एक
Bhupendra Rawat
मशहूर कर देता हूँ, आज तुझे, तेरे शब्द उपहार देकर कर दिया, दिल मे आघात तूने मुझे यूँ आवाज़ देकर खुशफहमी में था, मैं यूँ ही लेकिन कर दिये हालात नासाज़ झूठे ख्वाब देकर नाशिनास था फिर भी एक नामा लिख डाला चल दिये ज़नाब आब-ए-तल्ख़ उधार देकर एहतियात बरतना यां उस्तादों से ज़नाब नदीम ने खंज़र छुपाए रखे है,मीठे ख्वाब देकर आयन्दा मत देना आवाज़ इन कूचो में "भूपेंद्र" गम़्माज़ छुपे बैठे है, यां नक़ाब लेकर नाशिनास(अज्ञानी) नामा(पुस्तक) गम़्माज़ (भेदिया) आब-ए-तल्ख़ (आँसू) ©Bhupendra Rawat #sadak मशहूर कर देता हूँ, आज तुझे, तेरे शब्द उपहार देकर कर दिया, दिल मे आघात तूने मुझे यूँ आवाज़ देकर खुशफहमी में था, मैं यू
R. eXis
☀️ कुछ राज़ ऐसे, जो मुद्दतों से क़ैद ए जिग़र किये चला तू। वो राज़ आज बाज़ार ए आम हैं। जो नाम ए शौहरत के एवज मेँ, क़त्ल किये ताल्लुक़ात। उन जशन ए यरिओं के शहर मेँ, तेरी नफ़्ज़ का हर ज़र्रा बदनाम है। फिर भी जब पूछता हूँ, तबियत तेरी मैं, तू कहता है के आराम है। तेरी खुशफ़हमी को, मेरा सलाम है। 💮नज़रत 💮 ☀️ #horror खुशफ़हमी..
Ravina Joshi
हमने किताबो मे पढा था के बडा खुशनुमा होता हैं इश्क़ मगर हुया तो खबर हुयी के एक खुश्फ़हमी होता हैं इश्क #इश्क़#किताब#खुशनुमा#खुशफ़हमी #love#pain#thought#shayari
Rana Hijab
तुम कौन? मोहब्बत क्या? सबसे बेज़ार हूं मैं ज़ख़्मी टूटा हुआ ऐतबार हूं! आवाज़ें चुभती हैं मुसलसल अब मैं ख़ामोश बेबस और लाचार हूं फक़त मोहब्बत का ही नहीं रंज मुझे, यूं तो मैं आलम के हर शख़्स से ख्वार हूं इधर खाक़ नहीं हुई जुस्तजू मेरी, उधर ख़ुशफ़हमी है कि ज़ार-ज़ार हूं बची इक चिंगारी से आग सुलग जाती है, मैं खाक़ में दबी चिंगारी से दहका हुआ अंगार हूं बेज़ुबां क्यों हासिल-ए-रुसवाई हैं, यूंं तो मैं इंसानियत से शर्मसार हूं ख़ुदा गवाह है तो ज़मीं पर शिकवे जायज़ नहीं, हिसाब सब रखती हूं, न रंजिश हूं न पलटवार हूं! बुग्स हैं दिलों में, चेहरे सब मुखौटों में, इक मैं हूं कि पानी की तरह आर-पार हूं इबादत-ुए-ख़ुदा में मशगूल हुआ जो कहता है बस कि ना मुझे किसी से मोहब्बत ना मैं किसी का प्यार हूं कल गरज़ थी तो अज़ीज़ थी "राना" आज बेगरज़ हुए तो बेकार हूं... "इधर खाक़ नहीं हुई जुस्तजू मेरी, उधर ख़ुशफ़हमी है कि ज़ार- ज़ार हूं"...
Naaz Quraishi
Arun Kumar