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Atul Sharma
📚 *“सुविचार"*📝 🖊️*“8/4/2022”*🖋️ ✍🏻*“शुक्रवार”*📙 ये “प्रेम” जितना “सरल” है उतना ही “जटिल” भी है इस “प्रेम” के दो रूप होते है, “सबलता” और “दुर्बलता” चयन आपका होगा, “माता-पिता” को ही देख लिजिए माता-पिता कभी-कभी “संतान” से इतना “प्रेम” करते है कि उसे कही बहार जाने ही नहीं देते, इस कारण “संतान” इतनी “दुर्बल” हो जाती है कि ऐसा भी हो जाता है कि “अजीवन” घर ही बैठीं रहें अब यदि यहीं “माता-पिता” इस प्रेम में सहास ला दे,यदि वो कह दे कि “संतान” तुम जाओ इस “संसार का अनुभव” करो,अपना “प्रारभ्य” स्वयं रचो,इस संसार में सबसे “श्रेष्ठ” बनकर दिखाओ तो संतान ये कर के भी दिखा सकती है, अब आप अपने “प्रेम” से अपनो को ही “दुर्बल” बनाते है या “सबल” निर्णय आपका है... *अतुल शर्मा*✍🏻 ©Atul Sharma 📚 *“सुविचार"*📝 🖊️*“8/4/2022”*🖋️ ✍🏻 *“शुक्रवार”*📙 #प्रेम #सबलता
Atul Sharma
*📝“सुविचार"*📝 🖊️*“3/2/2021”*🖋️ 📘✨ *“बुधवार”*✨📙 ये “प्रेम” जितना “सरल” है उतना ही “जटिल” भी है इस “प्रेम” के दो रूप होते है, “सबलता” और “दुर्बलता” चयन आपका होगा, “माता-पिता” को ही देख लिजिए माता-पिता कभी-कभी “संतान” से इतना “प्रेम” करते है कि उसे कही बहार जाने ही नहीं देते, इस कारण “संतान” इतनी “दुर्बल” हो जाती है कि ऐसा भी हो जाता है कि “अजीवन” घर ही बैठीं रहें,अब यदि यहीं “माता-पिता” इस प्रेम में सहास ला दे,यदि वो कह दे कि “संतान” तुम जाओ इस “संसार का अनुभव” करो, अपना “प्रारभ्य” स्वयं रचो, इस संसार में सबसे “श्रेष्ठ” बनकर दिखाओ तो संतान ये कर के भी दिखा सकती है, अब आप अपने “प्रेम” से अपनो को ही “दुर्बल” बनाते है या “सबल” निर्णय आपका है... ✨ *अतुल शर्मा🖋️📝📙* *📝“सुविचार"*📝 🖊️*“3/2/2021”*🖋️ 📘✨ *“बुधवार”*✨📙 #प्रेम #सबलता
Kulbhushan Arora
#d_k_p नवदिवस की नव प्रभात, देखो लाई है सबके लिए, सुनेहली किरणें सौगात, जागो पकड़ो*उसका*हाथ, कभी नही छोड़ता *वो*साथ, रखो*उसमें*#उस पे # विश्वास, शु
Kulbhushan Arora
तुम्हारे पत्र का उत्तर, Dedicating a #testimonial to Sarita Mahiwal Saru, रोई होगी ना पत्र लिखते लिखते...स्वाभाविक है, यादें , कुछ यादों से जुड़ी कड़वाहटें, कुछ मुस
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
मज़बूर वैसे तो मेरी मजबुरियाँ ,यह करतुत कर देगी!,,,,,,सोचने को तुमको भी "मजबुर "कर देगी,,,,, मजबूरी वह वक्त होता है कि """जब हम समर्थवान होते ,हमारे पास सबकुछ होता है फिर भी हम कुछ नही कर पाते,,,, सबलता की दुर्बलता को मजबूरी कहते ह
SONALI SEN
।।पिता।। गगन की ऊंचाई , धरती की गहराई, भार की सबलता , पिता की परछाई है। घर को सम्भालन , चलाना बड़े संयम से, लगे कौर सोने का , पिता की कमाई है। सीप मे मोती से , दीप की ज्योति से, पुष्पों की सुगंध , सब पिता के स्वरूप है। गर्मी मे तप कर , वर्षा मे भीगकर, करते है कर्म चाहे , छाव चाहे धूप है। संस्कारों की बेली , परिपूर्ण प्रेम शैली, मान सम्मान पिता , गर्व का ही रूप है। धीर का प्रमाण है , वीर जैसे प्राण है, हर्ष उल्लास पिता , पर्व के स्वरूप है। कलम मे सियाही नही , पिता का करे बखान, पिता तो है सर्वस , पिता है गुणों की खान। घर रूपी बगिया का , पिता ही तो माली है, पिता है महान पिता , आत्मसम्मान है। क्रोध से परे , सदा संयम को धार कर, शांति की छत्र छाया , पिता में समाई है। धरती पे परमात्मा का रूप ही पिता है, परमपिता की गोदी , घर-घर मे पाई है। परमपिता की गोदी , घर-घर मे पाई है।। .....सोनाली सेन सागर (मध्य प्रदेश) ©SONALI SEN ।।पिता।। गगन की ऊंचाई , धरती की गहराई, भार की सबलता , पिता की परछाई है। घर को सम्भालन , चलाना बड़े संयम से, लगे कौर सोने का , पिता की कमाई है
Jangid Damodar
सफलता खोज लूँगा तुम मुझे दुख-दर्द की सारी विकलता सौंप देना, मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! मैं सफ़र में चल पड़ा हूँ, दूर जाऊँगा समझ लो। व्यर्थ है आवाज़ देना, आ न पाऊँगा समझ लो। जोगियों से मन लगाना, छोड़ दो मुझको बुलाना। राह में दुश्वारियाँ हो. . . मैं सरलता खोज लूँगा, मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! एक रचनाकार हूँ, निर्माण करने में लगा हूँ। मैं व्यथा का सोलहों- सिंगार करने में लगा हूँ। यह कठिन है काम लेकिन, श्रम अथक अविराम लेकिन। इस थकन में ही सृजन की मैं सबलता खोज लूँगा। मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! फूल की पंखुड़ियों पर, चैन से तुम सो न पाए। जग तुम्हारा हो गया पर, तुम किसी के हो न पाए। तुम अधर की प्यास दे दो, या सुलगती आस दे दो। मैं हृदय की फाँस में अपनी तरलता खोज लूँगा, मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! रात काली है मगर यह, और गहरी हो न जाए। फिर तुम्हारी चेतनायें, शून्य होकर खो न जाए। इसलिए मैं फिर खड़ा हूँ, स्याह रातों से लड़ा हूँ। मैं तिमिर में ही कहीं, सूरज निकलता खोज लूँगा। मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! #NojotoQuote सफलता खोज लूँगा तुम मुझे दुख-दर्द की सारी विकलता सौंप देना, मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! मैं सफ़र में चल पड़ा हूँ, दूर जाऊँगा
AB
-: स्थिरता :- वक़्त बीत जाता ना और बीता कल कभी वापिस नहीं आता, कभी कभी चीजें जो शुरुआत में बहुत अच्छी लगती हैं, और प्यारी भी वक़्त के साथ अपना अस्तित्व खो
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part 1 Ch- 1 बसंत की वह सुबह बड़ी अच्छी थी, धीमी धीमी हवाएं और वह नीम की डालीयों के बीच से झांकता, लाल सा सूरज; नीले आसमान पर वह किसी सुंदरी के माथे पर ल
A NEW DAWN
दंश (In Caption) Part 1 Ch- 1 बसंत की वह सुबह बड़ी अच्छी थी, धीमी धीमी हवाएं और वह नीम की डालीयों के बीच से झांकता, लाल सा सूरज; नीले आसमान पर वह किसी सुंदरी के माथे पर ल