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Ek villain
यह जगत ग्रहण और त्याग का ही परिणाम है यह दोनों एक दूसरे के पूरक भी हैं और परिणाम भी त्याग के बिना जीवन एकदम भी आगे नहीं बढ़ सकता क्योंकि एक शव लेने के लिए भी पहले स्वास छोड़ना पड़ता है बुरा हाल त्याग स्वार्थ के लिए भी होता है और पर रात्र के लिए भी वास्तविक त्याग परार्थ के लिए होता है क्योंकि स्वार्थ के लिए त्याग तो पशु-पक्षी भी करते हैं परार्थ के लिए त्याग करने वाले मनुष्य वरील होते हैं जो ऐसा करते हैं वह यशस्वी भव से सदा के लिए अमर हो जाते हैं सत्य की रक्षा हेतु राज्य व परिवार का त्याग करने वाले हरिश्चंद्र को तथा मानवता की रक्षा के लिए अपनी अस्थियों का भी त्याग करने वाले महा ऋषि विदाची को भला कौन भूल सकता है जीवन का पथ चाहे अलौकिक हो या आध्यात्मिक वह त्याग के बिना पूर्ण नहीं हो सकता गीता में त्याग को देवी संपदा एवं शांति का उत्साह का गया है निष्काम कर्म का बीज त्याग में नींद है पुरुषार्थ के चारों थम त्याग की पवित्र भूमि पर आयोजित हैं संयासी तो त्याग का ही प्रिय है पुरुषार्थ चेष्टा की सिद्धि भी त्याग के बिना संभव नहीं है यदि राज वैभव का त्याग ना किया होता तो सिद्धार्थ कभी बुध नहीं बन पाते राष्ट्रीय मंगल हित में आत्मा सुखों का त्याग करने से ही गांधीजी राष्ट्रपति कहलाए देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले वीर जवानों के त्याग को भला कौन माफ सकता है अमर शहीदों का ऋण चुकाने की क्षमता रखता है जिन्हें देश रक्षा के लिए प्राणों का भी उत्सर्ग कर दिया आत्म सुख का त्याग किए बिना कोई लोकहित नहीं होता और लोकहित के बिना कोई त्याग नहीं हो सकता त्याग आत्मिक सुख भी है और समाज सुधारक भी त्याग में वह विशेषता है मनुष्य अपने दुर्गुणों का त्याग कर अपने जीवन को श्रेष्ठ बना सकता है वास्तव में त्याग ही जीवन का मंगलिक पद है इसी पद पर चलकर जीवन को अनुकरणीय बनाया जा सकता है ©Ek villain # मनुष्य जीवन में त्याग #morningcoffee
Ek villain
स्वालंबन का अर्थ है आत्मनिर्भरता यह मनुष्य की अलौकिक व आध्यात्मिक जीवन यात्रा का आधार भी है पाते भी है यह शारीरिक एवं आत्मिक शक्तियों का संप्रेक्षण कर आत्मा का विस्तार करता है तथा जीवन को पूर्णता प्रदान करता है इसी की पवित्र भावना से मनुष्य के अंदर कर्तव्यनिष्ठा का भाव जागृत होता है तथा संघर्ष करने की क्षमता विकसित होती है इसी से जीवन में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है यह व्यक्तित्व विकास के द्वारा उद्घाटित होते इसी के परिणाम स्वरुप मनुष्य के अंतर्मन में परिवार के साथ समाज एवं देश की सेवा करने की भावना बदलती होती है स्वालंबन का उदय स्वाधीनता से होता है और स्वाधीनता की पूर्णता भी स्वालंबन से होती है इसलिए सब कुछ होने पर भी स्वालंबन के अभाव में 100 दिन तक अधूरी है जहां से नंबर से मनुष्य के अंदर राष्ट्रभक्ति का उदय होता है वहीं राष्ट्रीय पार्क से सो मिलन का भाव प्रबल होता ©Ek villain #स्वालंबन मनुष्य जीवन में #Pinnacle
Ek villain
सृष्टि काल में सर्जन के साथ ही सौंदर्य का भी प्रकट यह हुआ जो शृष्टि करता स्वयं सत्य शिव और सुंदर हो तो सृष्टि का इन गुणों से परिपूर्ण होना स्वभाविक है पर सौंदर्य को निहारने के लिए सुंदर दृष्टि आवश्यक है इसके लिए जीवन सौंदर्य को निकालना जरूरी है जिन गुणों से जीवन को सकारात्मक गति मिली वही जीवन सौंदर्य के कारक होते हैं मिनियन यंत्र खोज की जरूरत नहीं है यह प्राकृतिक जने होने से भी प्रांत है और सकता है उन्हें आचरण में लाने की बचपन जीवन सौंदर्य से लवरेज होता है क्योंकि बच्चा इन गुणों में स्वाभाविक जीता है भारी दुनिया की नकारात्मक से उसका रिश्ता नहीं होता इसलिए उसके चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कान होती है किंतु जैसे जैसे उसका बाहरी जगत से संपर्क बढ़ता है स्वभाविक मुस्कान गायब होती जाती है और वह जीवन के वास्तव में जीवन सुंदर यह अर्जित नहीं स्फूर्ति होता है जैसे केवल सद्गुणों से निखार आता है वैसे ही सुंदर यह बहारें भी होता है और आंतरिक भी पर जीवन का सौंदर्य आंतरिक ही होता है जिसकी केवल भारतीय पुरुष की करण होता है क्योंकि जीवन दाता स्वयं सत चित और आनंद स्वरूप जीवन सौंदर्य का भी शत-शत आनंद स्वरूप होना स्वभाविक है क्योंकि अंश अपने अंशी से भिन्न नहीं हो सकता गांधी जी ने कहा है वास्तविक जीवन सौंदर्य हृदय की पवित्रता में है जब तक हृदय में पवित्रता नहीं होगी जीवन में पवित्रता नहीं आएगी फिर ना तो जीवन में सौंदर्य होगा ना समाज में जिस समय हृदय की पवित्रता से उत्पन्न अतिरिक्त आवाज मुस्कुराहट के रूप में होठों पर खेलती है उसी समय मनुष्य ईश्वर की सबसे निकट होता है वही जीवन का वास्तविक सौंदर्य है स्वस्थ जीवन के लिए उससे हर परिस्थिति में बनाए रखना मानव का धर्म है सामाजिक सौंदर्य का हेतु भी यही है ©Ek villain # जीवन का सौंदर्य मनुष्य जीवन में #Happiness
Ek villain
एकाग्रता मालूम ही प्रयासों से संभव नहीं हो पाती बल्कि यह भी तब विकसित होती है जब किसी कार्य को बौद्ध पूर्ण ढंग से किया जाता है तथा उसके पूर्ण होने पर आनंद ही प्रबल अनुभूति होने लगती है कार्य की संपदा में अनुभव हो रही है आनंद की सुख होती है वास्तव में ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति को उसके आंतरिक शक्ति से जोड़ती है इस कारण में कार्य किया जा रहा होता है तब उसमें स्वयं का आनंद ले आने लगता है लोगों को अपने बचपन के दिन अवश्य यादव होंगे एक बच्चा केवल आनंद से सराबोर रहता है तब वह अनावश्यक रूप से दौड़ते हुए एक दिल्ली को पकड़ने का प्रयास करता है जब तक वह और सब कुछ भूल जाता है उसका सारा ध्यान तितली पकड़ने में लगा रहता है ऐसी स्थिति में यह बच्चा एक ग्रह भाव में जाकर अपने कार्य को संपन्न करता है एक ग्रह का तात्पर्य नहीं है कि हम चुपचाप खाली बैठ जाएं और अपने आपको विचारों से मुक्त कर ले यह कुछ ना कुछ करें एक ताकतवर होकर कार्य को संपन्न करने से है जो उस कार्य के प्रति रुचि का उत्पन्न करता है जब कार्य के प्रति रुचि उत्पन्न होती है ऐसे कार्य संपन्न हो जाते हैं बल्कि उस में संपन्न होने के उपरांत दोनों ही स्थितियों में अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति होती रहती है ©Ek villain #एकाग्रता मनुष्य जीवन में #Travel
Ek villain
उद्देश्य पूर्ण जीवन के लिए आवश्यक है कि हम हर परिस्थिति में सहायता और प्रसंता से जीने का अभ्यास करें प्रसंता दुनिया का सर्वश्रेष्ठ रसायन है जो निरंतर इसका सेवन करता है और इनके बाधाओं को सहज ही पार कर लेता है सफलता प्राप्त करना और जीवन में सफल होना दोनों के लिए प्रसंता अति आवश्यक है प्रसन्न लोग कठिन परिस्थितियों में भी सदैव संतुलन रह सकते हैं वह देर सवेरे अपने लक्ष्य को अवश्य ही प्राप्त कर लेते हैं जीवन में कभी प्रसन्नता और सहजता का दामन ना छोड़ेंगे की प्रसन्नता है तो जीवन है जीवन में कभी जब कोई संकट आए न मन घबराए हौसले पस्त होने लगे तो संतुलन का अभ्यास करें और प्रसन्न बने रहे सहजता और प्रशंसा की किरण निराशा का संगठन धीरे पर की जाती है सफलता पाने के लिए जरूरी है कि विश्वास को जीना मेरे लिए कोई कार्य संभव नहीं है पूरी तमन्ना से किया जाए प्रतिफल तुरंत देता है बस नियत साफ होनी चाहिए शहजादा से बसंतपुर धारण कर ऋषि मुनि भी अजर अमर हो गए योग समर्थन हो गए शब्दों में प्रसंता को 1 साल तक से धमाणा तांत्रिकों ने प्रशंसकों परमेश्वर की प्रसन्न करने वाले एक मंदिर समझा है प्रसंता चित्र है ना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है खतरों से घबराए मत जीवन को सफल बनाएं संघर्ष आप को और निखारने के लिए आता है तो उसकी खुशी के साथ निपटे चिंता वह परेशानियों से अपनी इच्छाशक्ति से निपटे सतत किसी न किसी काम में व्यस्त रहे तो मस्त रहें ©Ek villain #प्रसंता मनुष्य जीवन में #Hope
Jeeshabh Bharti
नमक की तरह हो गई है मेरी ज़िन्दगी लोग स्वादानुसार इस्तेमाल करते हैं..... हर मनुष्य के जीवन का एक सच
Ek villain
मनुष्य के खुशहाल जीवन यापन में धन अर्थ अर्थ अर्थ की महिता बहुत भूमिका होती है अर्थ के अभाव में एक खुशहाल और स्वस्थ जीवन की कल्पना व्यर्थ है बिना अर्थ के धर्म का भी पालन नहीं कर सकते दान याद परोपकार सब के लिए धन की आवश्यकता होती है किंतु भी संगीत यह है कि हम अर्थ को प्राप्त करना चाहते हैं लेकिन उसके लिए उचित पुरुष अर्थ अर्थ अर्थ कर्म नहीं करते मनीषियों का मत है कि लक्ष्मी सदा परिश्रम और धर्म युक्त प्रसाद से प्राप्त होती है उत्साह संपन्न विधि पूर्वक कार्य करने वाले व्यसनों से दूर रहने वाले डेड निशा व्यक्ति अवश्य ही धन और संपत्ति को प्राप्त करते हैं शास्त्रों में कहा गया है लक्ष्मी औद्योगिक पुरुषों को प्राप्त होती है तथा उन्नति प्रगति और संप्रदान एकमात्र साधन उद्योग तथा पुरुषार्थ है परिश्रम के अभाव में व्यक्ति किसी भी संबंधों का अभाव नहीं कर सकता महा ऋषि भरथरी नीति शतक में कहते हैं उद्योग पुरुष लक्ष्मी का उपार्जन करता है परंतु कायर मनुष्य भाग्य के भरोसे बैठा रहता है भाग्य को ठुकरा मारकर अपने कार्य में डेढ़ से निगम हो जाता है यदि फिर भी उसे सफलता नहीं मिली तो वह भाग्य में नहीं बल्कि अपने कार्य पद्धति में दोष होता है वास्तव में लक्ष्मी सदैव ही शर्म और उद्योग की अनुगामी रही है लोग परिश्रम से दूर भाग की माला जपते रहते हैं किंतु भाग्य हमेशा पुरुषार्थ से जगह करता है जिसके द्वारा हमारी सफलता के बंद द्वार भी खुल जाते हैं मत्स्य पुराण में वर्णन है कि आलसी और भाग्य पर निर्भर रहने वाले व्यक्तियों को आधारित की प्राप्ति नहीं होती इसलिए पुरुषार्थ करने में हमको आगे रहना चाहिए लक्ष्मी भाग्य पर भरोसा रखने वाले एवं असली मनुष्य को त्याग कर पुरुषार्थ करने वाले व्यक्तियों को जतन पूर्वक डेड पूर्वक वर्णन करती है इसलिए हम सदा पुरुषार्थ सिद्धार्थ कर्म सील रहना चाहिए ©Ek villain # पुरुष अर्थ मनुष्य जीवन में #Moon
Ek villain
मनुष्य की अनुपस्थिति से आम अनुष्का से तो संभव हुआ मन के अंदर मनुष्य और मनुष्य का वास है ओडिशा मनुष्य के भीतर बैठा है दानव अमन उसके भीतर सो रहा है पशु यदि मानव अपनी मानवता से प्रतीत हो जाए तो फिर यह चोला ही व्यर्थ है मानव शरीर तभी सार्थक है तो उसमें मानवता भी सभी मर्यादा विद्वान हो मनुष्य चरित्र को ईश्वर से अपने अवतारों में प्रकट होकर स्वयं जिया है मानवता के मूल देव दूतों ने भी समय-समय पर प्रदर्शित किए हैं कि अपने सिद्धांतों और आदेशों के सवाल द्वारा मनाता को स्थापित करने वाले महापुरुष के महत्व को सदा सुरक्षित रखा इसका अमूल ने संसार का बड़ा हिट किया था उसके नर्क बना दिया था यह धरती स्वर्ग से भी अधिक सुंदर थी उसने धर्म को क्षति पहुंचाई मर्यादा को भंग किया और आ सकते और सत्य न्याय को घोषित किया पृथ्वी पर आ सकता फैलाई प्रकृति के नियमों को समेट दिया उसने अनाचार और अत्याचार को दिन आचार्य बनाया हम उस ने मनुष्य को संकट उत्पन्न कर दिए वह अपने ही शत्रु बन बैठा और चलता रहा जो आज भी जारी है बहुत मन करता है और समृद्धि का राज हो लेकिन हम उन्हें बार-बार विशेषताएं करता है हम उनसे सकता है तो हम उस वातावरण को आता है कि नहीं होता यदि होता है तो और एक और जीवन में भी यह शरीर के अंदर एक मनुष्य मनुष्य का तनाव व्याप्त है लोग कभी आते हैं तो कभी देखते हैं सभी जनों का जीवन ऐसी विसंगतियों से भरा है फिर भी सफलता का यही है कि अपने भीतर बैठे अशोक को जगाया ना जाए लेकिन उस वक्त रहे ©Ek villain #मनुष्य के जीवन में ईश्वर #Thoughts
Ek villain
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास भए प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी लिखते हैं इस प्रकट सबसे वह हर मनुष्य में राम तत्व प्रकट करने का संदेश देते हैं श्री राम को धर्म शास्त्रों से नारायण नहीं बल्कि नर के रूप में स्थापित किया है राम को ऊर्जा शक्ति के रूप में जब देखते हैं तब स्पष्ट होती है कि राज दशरथ के आंगन में श्री राम के प्रकट होने का निहितार्थ दस इंद्रियों वाले शरीर रूपी रथ में आत्मा रूपी श्रीराम मौजूद है आत्मा रूपी उर्जा जब तक शरीर में है तब तक यह रात बोलता बोलता है उसी की उर्जा से निकल जाने पर शरीर बहुत हो जाता है रति के निकलते ही आरती आरती से व्यक्ति शमशान तक चला जाता है मां दुर्गा शक्ति की प्राकृतिक और भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं जहां धर्म मर्यादा और सत्य होता है वही शक्ति स्वयं को स्थापित करती है मनुष्य शरीर की ऊर्जा सदाचार से तेज युक्त होती है व्यक्ति में आत्मबल बढ़ता है उसके विवेक उस राम सा बना देते हैं मानव शरीर मूल धार से 708 पत्रों में स्थापित है इन चक्रों को ऊर्जावान बनाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में योग की महत्ता पर अर्जुन को उपदेश दिया राम का चरित्र पढ़ते सुनते सुनते हुए हर कार्य मधुर हो सकते हैं राम को पाने के लिए वह ब्रह्म दुनिया के अतिरिक्त दुनिया को जीतना होगा ©Ek villain #राम तत्व मनुष्य जीवन में #Love
Aslam Khaan
मनुष्य के जीवन दवाई की तरह होती है, जो दिखता तो बुरा है, लेकिन वो हमें बेहतर बनाने के लिए होता है।" ©Aslam Khaan मनुष्य जीवन