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Manzar Raza
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे वो दिन कि जिसका वादा है जो लोह-ए-अज़ल में लिखा है जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां रुई की तरह उड़ जाएँगे हम महकूमों के पाँव तले ये धरती धड़-धड़ धड़केगी और अहल-ए-हकम के सर ऊपर जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से सब बुत उठवाए जाएँगे हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम मसनद पे बिठाए जाएँगे सब ताज उछाले जाएँगे सब तख़्त गिराए जाएँगे बस नाम रहेगा अल्लाह का जो ग़ायब भी है हाज़िर भी जो मंज़र भी है नाज़िर भी उट्ठेगा अन-अल-हक़ का नारा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो और राज करेगी ख़ल्क-ए-ख़ुदा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो हम भी देखेंगे Faiz Ahmad Faiz
Shahjad Khan
हम भी देखेंगे तेरी रंगे वफा कौन सी है जिस पर मरता है जमाना वह अदा कौन सी है या तो कर कतल मुझे या चिपकाले अपने सीने से इन दोनों में से बता तेरी रजा कौन सी हैै ©Shahjad Khan हम भी देखेंगे तेरी रंगे वफा #walkingalone
Pnkj Dixit
🌷 हम भी देखेंगे स्वप्न हकीकत बनेंगे ... देखेंगे वो आएँगे आँगन में.... देखेंगे धड़केगा धड़कन का दिल बेधड़क रू-ब-रू नयन दर्पण में ..... देखेंगे महकेगी खुशियों की दुनिया... देखेंगे गूँजेगी किलकारी कानों में... देखेंगे मम्मी पापा सताए माहिका सब मुझको नटखटपन शरारत भाई बहन का.. देखेंगे ऐ जी , ओ जी , लो जी , ..... हम भी सुनेंगे देख देखकर मुस्कुराएगा जमाना ... हम भी देखेंगे १३/१०/२०१८ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' ©Pnkj Dixit 🌷 हम भी देखेंगे स्वप्न हकीकत बनेंगे ... देखेंगे वो आएँगे आँगन में.... देखेंगे धड़केगा धड़कन का दिल बेधड़क रू-ब-रू नयन दर्पण में ..... देखे
Eklakh Ansari
शह-ए-वारिस से दिल अपना लग्गा कर हम भी देखेंगे दर-ए-वारिस पे सर अपना झुका कर हम भी देखेंगे ~ फ़राज़ वारसी ©Eklakh Ansari शह-ए-वारिस से दिल अपना लग्गा कर हम भी देखेंगे दर-ए-वारिस पे सर अपना झुका कर हम भी देखेंगे ~ फ़राज़ वारसी #देवा_शरीफ़ #EklakhAnsari
Mohammad Arif (WordsOfArif)
हम भी देखेंगे वो लोग भी देखेंगे जुल्मों सितम करने वाले हम भी देखेंगे तख्त नशी आज तू है कल नहीं होगा लगा दें जितने भी पहरे हम भी देखेंगे जुगनूओ की तरह रात भर जगते है सब तू अखबार में जो चाहे छपा दे हम भी देखेंगे लाख पहरे लगा दे अब डर नहीं लगता सब धीरे धीरे उठाए जायेंगे हम भी देखेंगे तू ने गलती की है वापस लेना होगा तेरे अपने भी आयेंगे सब हम भी देखेंगे इतना क्यूं डरता है लोगों से तू बता जरा आरिफ हट जा चेहरा उनका हम भी देखेंगे हम भी देखेंगे वो लोग भी देखेंगे जुल्मों सितम करने वाले हम भी देखेंगे तख्त नशी आज तू है कल नहीं होगा लगा दें जितने भी पहरे हम भी देखेंगे जु
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
💜💙💚💛🧡सुकून के पल🧡💛💚💙💜 फुर्सतें बैठी हैं बड़ी फुर्सत से फुर्सत के इंतजार में जिंदगी गुजार दी उलझकर रिश्तों की जीत हार में।। खुश हैं आज भी हम बह रही है जिंदगी अपनी बयार में सब कुछ भूल कर हम भी अब जी रहें हैं सुकून के पल प्यार में।। सारी उम्र गवा दी जिनके लिए क्यों रोएं अब उनके इंतजार में वो चला रहे हैं अपनी जिंदगी तो हम भी जीवन गुजारेंगे अब बहार में।। सुकून भरी फुर्सत में जिएंगे क्यों मनाएं शोक रिश्तों की हार में अब जिएंगे खुलकर जिंदगी हम भी देखेंगे रब अब अपने यार में।। ❤️🧡💛💚💙💜❤️🧡💛💚💙💜❤️🧡💛 ✍️ ©Ankur Mishra 💛🧡सुकून के पल🧡💛 फुर्सतें बैठी हैं बड़ी फुर्सत से फुर्सत के इंतजार में जिंदगी गुजार दी उलझकर रिश्तों की जीत हार में।। खुश हैं आज भी हम
2novicity
मोहब्बत हमने माना जिन्दगी बर्बाद करती है ये क्या कम है के मर जाने पे दुनिया करती है ये क्या कम है अजी हां हां ये क्या कम है के मर जाने पे दुनिया करती है किसी के इश्क में दुनिया लुटाकर हम भी देखेंगे तेरे कदमों पर सर अपना झुकाकर घड़ी भर को तेरे नजदीक आकर तेरी महफ़िल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे मोहब्बत हमने माना जिन्दगी बर्बाद करती है ये क्या कम है के मर जाने पे दुनिया करती है ये क्या कम है अजी हां हां ये क्या कम है के मर जाने पे
Baaj
बारिश का सुहावना मौसम है आज, अब , न ही तुम, चाय की चुस्कियों के बीच में और बिजली के शोर में, सिसकियाँ हैं गुम। ये खिड़की के साथ वाले बिस्तर पर, ये नमी वाली टपकती बूँदे कौन सी हैं! किसी गरीब की छत टपक रही है, किसी असहाय व्यक्ति की उम्मीदें। लालटेन के उजाले में सर पकड़े, कल को तो कल की चिँता पड़ी है, मेहनत छोटी है इस आँधी के आगे, इस तूफ़ान से मगर हिम्मत बड़ी है। -बाज इतना भाग दौड़ करके ज़िन्दगी में, कभी कभी तो लगता है, सब व्यर्थ है, क्यों इतना ज़ोर लगाना, एक पल चैन के लिए, कभी सोचूँ तो लगे कर दिया घोर अनर्थ
Chanchal Jaiswal
ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत वाणी थी तूर्य हुई हुई कभी तूणीर बाण हुआ कभी गाण्डीव प्रखर पाञ्चजन्य का नाद शिखर। पुलकित मेधा सौरभ भर-भर फड़कता शौर्य साहसी भुजदल। केशर सा जगमग भाल भानु उत्तुंग हिमालय सा सीना हरियाला हृदय भावभीना कण्ठ-कण्ठ जयघोष विपुल स्पंदन-स्पंदन राष्ट्रवन्दन। गौरवशाली इतिहास प्रवर प्रेरित होते जनगण सुनकर नन्हें-नन्हें से बाल नवल विकसेगा इनमें भारत कल। (शेष कविता caption में...) ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत वाणी वो तूर्य हुई हुई कभी तूणीर बाण हुआ कभी गाण्डीव प्रखर पाञ्चजन्य का नाद शिखर। पुलकित मे