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KP EDUCATION HD

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©KP EDUCATION HD
  ऑस्ट्रेलिया के पूर्व ऑलराउंडर शेन वॉटसन ने कहा कि इस खिताबी मुकाबले में टीम इंडिया फेवरेट है. रोहित शर्मा की टीम ने टूर्नामेंट में शानदार खे

ऑस्ट्रेलिया के पूर्व ऑलराउंडर शेन वॉटसन ने कहा कि इस खिताबी मुकाबले में टीम इंडिया फेवरेट है. रोहित शर्मा की टीम ने टूर्नामेंट में शानदार खे #न्यूज़

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Ashwani Dixit

कैंडिल नहीं प्रोटेस्ट नहीं, नहीं लेख अख़बार।
घोड़े बेचकर सो गए सब, चोरों के सरदार।।

चोरों के सरदार, नन को ही दोषी बतलायें।
विशप खुले में घूमता, अब कोई न चिल्लाए।।

अपराधी के धर्म यहां, आउट-रेज करवाते।
अगर नैरेटिव सेट नहीं, चुपके से सो जाते।। जालंधर विशप नन रेप कांड पर विशेष - 
कैंडिल नहीं प्रोटेस्ट नहीं, नहीं लेख अख़बार।
घोड़े बेचकर सो गए सब, चोरों के सरदार।।

चोरों के सरदार, नन को

जालंधर विशप नन रेप कांड पर विशेष - कैंडिल नहीं प्रोटेस्ट नहीं, नहीं लेख अख़बार। घोड़े बेचकर सो गए सब, चोरों के सरदार।। चोरों के सरदार, नन को

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sandy

 सुशांतला कॉलेजला पाठवण्याच्या तयारीनंतर निरजचे ऑफिसला जाण्याआधीचे शोधाशोधीचे सत्र संपवून दोघांना अनुराधाने गाडीत बसवून 'टाटा' केला आणि मग नि

सुशांतला कॉलेजला पाठवण्याच्या तयारीनंतर निरजचे ऑफिसला जाण्याआधीचे शोधाशोधीचे सत्र संपवून दोघांना अनुराधाने गाडीत बसवून 'टाटा' केला आणि मग नि #nojotophoto

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Ravendra

डीएम डॉ. दिनेश चन्द्र ने गल्ला मण्डी परिसर का किया निरीक्षण
स्ट्रांग रूम के लिए चयनित स्थल का लिया जायज़ा 

बहराइच 18 अप्रैल। नगरीय निकाय साम

डीएम डॉ. दिनेश चन्द्र ने गल्ला मण्डी परिसर का किया निरीक्षण स्ट्रांग रूम के लिए चयनित स्थल का लिया जायज़ा बहराइच 18 अप्रैल। नगरीय निकाय साम #न्यूज़

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Harshita Dawar

Written by Harshita ✍️✍️
#Jazzbaat
तूं कण में पवन पत्थर सा।
मैं पदेल प्राणी मांटी सा।
प्रेम नि:शब्द है।
प्रेम नि:स्वार्थ सम्पूर्ण भाव है।
कठोर तपस्या भी है।
परोपकार भी है।
बिशन गर्मी भी है।
उबलते अंगारों भी है।
शीतल सुशील सर्व गुणों।
समपूर संतुलन बनाए रखें एहसास है।
कस्तूरी की महक भी है।
मीग्नैनी भी है।
चन्दन सी काया लिए।
मनमोहन भाषिणी भी है।
पर्वतों सा अडिग भी है।
पानी सा आर पार भी है।
तितली सा चंचल भी है।
नीलाम सा गहरा भी है।
चमेली सा श्वेत वस्त्र धारण।
सा साफ़ भी है।
मिथिला की मीठी वाणी।
कपूर सा शुद्ध
गुलढं के फूलों सी फायदे मंद।
कुछ शहद सी मिठास है।
भीनी सी अदरक सी चाय।
की वो चुसिकियों सा स्वाद भी है।
मनमोहन एहसास भी है।
प्यार लिखूं।या किताब लिखूं।
तेरे होने का एहसास लिखूं।
हाथों की हरारात लिखूं।
ये मनभावन भाव लिखूं।।
बस लिखूं तो क्या लिखूं 
तेरे मेरे सपने लिखूं।
तूं है तेरे होने से संसार है।
प्रेम संबंधों से चलता संसार है।
मिठास लिए बोलो में।।
दिलों में शामिल बेमिसाल है।
प्रेम तपस्या है।
प्रेम कीर्तिमान है।
बस प्रेम है।
बस प्रेम है।
प्रेम से पहले
कुछ नहीं है।
प्रेम से यादें है।
प्रेम से बोलिए।
प्रेम नि:स्वार्थ।
नि:स्वाद ।नि:संदेह।
नि:पक्ष।
प्रेम विकराल है।



 #pyar #quote #yqquotes #yqdidi #yqhindi #feelings #dedicated 
Written by Harshita ✍️✍️
#Jazzbaat
तूं कण में पवन पत्थर सा।
मैं पदेल प्राणी मा

#Pyar #Quote #yqquotes #yqdidi #yqhindi #feelings #dedicated Written by Harshita ✍️✍️ #jazzbaat तूं कण में पवन पत्थर सा। मैं पदेल प्राणी मा

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Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुंदरकांड🙏
दोहा – 17
प्रभु श्री राम के चरणों में मन रखकर कार्य करें
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥17॥
तुलसीदास जी कहते है कि हनुमान जी का विलक्षण बुद्धिबल देख कर सीता जी ने कहा कि हे पुत्र !जाओ, रामचन्द्र जी के चरणों को हृदय मे रख कर मधुर मधुर फल खाओ ॥17॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी फल खाते है और कुछ राक्षसों का संहार करते है
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा।
फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥
रहे तहाँ बहु भट रखवारे।
कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥1॥
सीताजी के वचन सुन कर उनको प्रणाम करके हनुमान जी बाग के अन्दर घुस गए।फल फल तो सब खा गए और वृक्षों को तोड़ मरोड़ दिया॥जो वहां रक्षा के लिए राक्षस रहते थे उनमे से कुछ को मार डाला और कुछ ने जाकर रावण से पुकार की (रावण के पास गए और कहा)॥

राक्षस रावण को हनुमानजी के बारे में बताते है
नाथ एक आवा कपि भारी।
तेहिं असोक बाटिका उजारी॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे।
रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥2॥
कि हे नाथ! एक बड़ा भारी वानर आया है ।उसने तमाम अशोकवन का सत्यानाश कर दिया है॥उसने फल फल तो सारे खा लिए है, और वृक्षोंको उखड दिया है।और रखवारे राक्षसों को पटक पटक कर मार गिराया है,उनको मसल-मसलकर जमीन पर डाल दिया है॥

रावण और राक्षसों को भेजता है
सुनि रावन पठए भट नाना।
तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥
सब रजनीचर कपि संघारे।
गए पुकारत कछु अधमारे॥3॥
यह बात सुनकर रावण ने बहुत से राक्षस योद्धा भेजे।उनको देखकर युद्ध के उत्साह से हनुमान जी ने भारी गर्जना की॥हनुमानजी ने उन तमाम राक्षसों को मार डाला।जो कुछ अधमरे रह गए थे,वे वहा से पुकारते हुए भागकर गए॥

अक्षयकुमार का प्रसंग
रावण अक्षय कुमार को भेजता है
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।
चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥4॥
फिर रावण ने मंदोदरि के पुत्र अक्षय कुमार को भेजा।वह भी असंख्य योद्धाओं को संग लेकर गया॥उसे आते देखते ही हनुमानजी ने हाथ में वृक्ष लेकर उस पर प्रहार किया और
उसे मारकर फिर बड़े भारी शब्दसे (महाध्वनि से, जोर से) गर्जना की॥
आगे मंगलवार को ...,

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 682 से 693 नाम 
682 स्तुतिः स्तवन क्रिया
683 स्तोता सर्वरूप होने के कारण स्तुति करने वाले भी स्वयं हैं
684 रणप्रियः जिन्हे रण प्रिय है
685 पूर्णः जो समस्त कामनाओं और शक्तियों से संपन्न हैं
686 पूरयिता जो केवल पूर्ण ही नहीं हैं बल्कि सबको संपत्ति से पूर्ण करने भी वाले हैं
687 पुण्यः स्मरण मात्र से पापों का क्षय करने वाले हैं
688 पुण्यकीर्तिः जिनकी कीर्ति मनुष्यों को पुण्य प्रदान करने वाली है
689 अनामयः जो व्याधियों से पीड़ित नहीं होते
690 मनोजवः जिनका मन वेग समान तीव्र है
691 तीर्थकरः जो चौदह विद्याओं और वेद विद्याओं के कर्ता तथा वक्ता हैं
692 वसुरेताः स्वर्ण जिनका वीर्य है
693 वसुप्रदः जो खुले हाथ से धन देते हैं
🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏
दोहा – 17
प्रभु श्री राम के चरणों में मन रखकर कार्य करें
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधु

🙏सुंदरकांड🙏 दोहा – 17 प्रभु श्री राम के चरणों में मन रखकर कार्य करें देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधु #समाज

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Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏

दोहा – 11

सीताजी मन में सोचने लगती है
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥
फिर सब राक्षसियाँ मिलकर जहां तहां चली गयी-तब सीताजी अपने मनमें सोच करने लगी की –एक महिना बितने के बाद यह नीच राक्षस (रावण) मुझे मार डालेगा ॥11॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

सीताजी और त्रिजटा का संवाद
माता सीता, त्रिजटा को, श्रीराम से विरहके दुःख के बारे में बताती है
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी।
मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
तजौं देह करु बेगि उपाई।
दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥
फिर त्रिजटाके पास हाथ जोड़कर सीताजी ने कहा की हे माता-तू मेरी सच्ची विपत्तिकी संगिनी (साथिन) है॥सीताजी कहती है की जल्दी उपाय कर
नहीं तो मै अपना देह तजती हूँ(जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मै शरीर छोड़ सकूँ)क्योंकि अब मुझसे अति दुखद विरहका दुःख सहा नहीं जाता॥

सीताजी का दुःख
आनि काठ रचु चिता बनाई।
मातु अनल पुनि देहि लगाई॥
सत्य करहि मम प्रीति सयानी।
सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥
हे माता! अब तू जल्दी काठ ला और
चिता बना कर मुझको जलानेके वास्ते जल्दी उसमे आग लगा दे॥
हे सयानी! तू मेरी प्रीति सत्य कर- रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी कानो से कौन सुने?सीता जी के ऐसे शूल के सामान महा भयानाक वचन सुनकर॥

त्रिजटा सीताजी को सांत्वना देती है

सुनत बचन पद गहि समुझाएसि।
प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी।
अस कहि सो निज भवन सिधारी॥
त्रिजटा ने तुरंत सीताजी के चरण पकड़ कर उन्हे समझायाऔर प्रभु रामचन्द्रजी का प्रताप, बल और उनका सुयश सुनाया और  सीताजी से कहा की हे राजपुत्री! हे सुकुमारी!अभी रात्री है, इसलिए अभी आग नहीं मिल सकत ऐसा कहा कर वहा अपने घरको चली गयी॥

सीताजी को प्रभु राम से विरह का दुःख आसमान के तारे

कह सीता बिधि भा प्रतिकूला।
हिमिलि न पावक मिटिहि न सूला॥
देखिअत प्रगट गगन अंगारा।
अवनि न आवत एकउ तारा॥
तब अकेली बैठी बैठी सीताजी कहने लगी की क्या करूँ विधाता ही विपरीत हो गया-अब न तो अग्नि मिले और न मेरा दुःख कोई तरहसे मिट सके॥ऐसे कह तारो को देख कर सीताजी कहती है की ये आकाश के भीतर तो बहुत से अंगारे दिखाई दे रहे है,परंतु पृथ्वी पर पर इनमे से एक भी तारा नहीं आता॥

चन्द्रमा और अशोक वृक्ष
पावकमय ससि स्रवत न आगी।
मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका।
सत्य नाम करु हरु मम सोका॥
सीताजी चन्द्रमा को देखकर कहती है कि यह चन्द्रमा का स्वरुप अग्निमय दिख पड़ता है,पर यह भी मानो मुझको मंदभागिन जानकार आग को नहीं बरसाता॥अशोक के वृक्ष को देखकर उससे प्रार्थना करती है कि -हे अशोक वृक्ष!मेरी विनती सुनकर तू अपना नाम सत्य कर।अर्थात मुझे अशोक अर्थात शोकरहित कर।मेरे शोकको दूर कर (मेरा शोक हर ले)॥

सीताजी को दुखी देखकर हनुमानजी को दुःख होता है

नूतन किसलय अनल समाना।
देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
सो छन कपिहि कलप सम बीता॥
तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान है ,तुम मुझको अग्नि देकर मुझको शांत करो॥इस प्रकार सीताजीको विरह से अत्यन्त व्याकुल देखकर हनुमानजी का वह एक क्षण कल्प के समान बीतता गया॥

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 466 से 477 नाम
466 स्ववशः जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय के कारण हैं
467 व्यापी सर्वव्यापी
468 नैकात्मा जो विभिन्न विभूतियों के द्वारा नाना प्रकार से स्थित हैं
469 नैककर्मकृत् जो संसार की उत्पत्ति, उन्नति और विपत्ति आदि अनेक कर्म करते हैं
470 वत्सरः जिनमे सब कुछ बसा हुआ है
471 वत्सलः भक्तों के स्नेही
472 वत्सी वत्सों का पालन करने वाले
473 रत्नगर्भः रत्न जिनके गर्भरूप हैं
474 धनेश्वरः जो धनों के स्वामी हैं
475 धर्मगुब् धर्म का गोपन(रक्षा) करने वाले हैं
476 धर्मकृत् धर्म की मर्यादा के अनुसार आचरण वाले हैं
477 धर्मी धर्मों को धारण करने वाले हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏

दोहा – 11

सीताजी मन में सोचने लगती है
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥
फिर सब रा

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 11 सीताजी मन में सोचने लगती है जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥ फिर सब रा #समाज

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