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Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
चंचल Mahaur स्वर'
जरा सा हुजूम क्या उमड़ा उसके दीदार को पूरे शहर को खबर हो गयी उसके आने की ! चंचल माहौर #हुजूम
Abeer Saifi
मुर्दा दिलों का वहाँ पर हुजूम हो गया मैं नहीं मरा जनाज़ा ख्वाहिशों का था हुजूम - भीड़
Abeer Saifi
मुर्दा दिलों का वहाँ पर हुजूम हो गया मैं नहीं मरा जनाज़ा ख्वाहिशों का था हुजूम - भीड़
Jogendra Singh writer
आपके अनुसार Nojoto का पर्यायवाची क्या है Answer in comment section ©Jogendra Singh Rathore 6578 nojoto ka पर्यायवाची #Light
Asheesh indian
आज हुजूम की आखिरी रात है कुछ बड़ा होने को है मयखाने में कोई कमी न छोड़ना_ए_साखी तू भी बदमस्त जाम पिलाने में नज़रें देख न पाएंगी तुझको, कल से शायद कल हम रहें या ना रहें, इस जमाने में बिछड़ कर तुझसे, कल हम कहीं और होंगे कल से वो तुम्हारे अपने, और हम गैर होंगे खैर, मिलना तो नहीं था हमारी किस्मत में मगर, कभी तुम्हें वक्त मिले हमें याद करने का तो, पहले की तरह की तरह मुस्कुराकर जरा सी पलकें झुका लेना ©Asheesh indian हुजूम :- जिंदगी #HeartBreak
J P Lodhi.
शहरों की राहों से गांव के वास्ते, हुजूम निकल पड़े, भूख की मार से,माली हालात से गरीब बिलख पड़े। छूट गए काम धंधे,शहर में न घर उनके पैर उठ पड़े, शहर में खैर न खुद को समझ के गैर,कदम उठ पड़े। कुलबुलाने लगे थे पेट उनके,खाली हो गई थी थाली, छोड़कर शहर को लोग पकड़ने लगे राहें गांव वाली। वक्त की पुकार को अनसुना कर गांव को बढ़ने लगे, महामारी के डर से, भूख के भय से याद आ गए सगे। जान की परवाह कर बगैर, हुजूम में हूजूम मिल गए, महामारी के सोर में,भाड़े के घर से गांव याद आ गए। आमदानी कुछ नही,रहने को घर नही राहें पकड़ ली, बसें ट्रेन थम गई सूनी सड़कों पे जिंदगियां चल पड़ी। #हुजूम चल पड़े
Pradyumna sharma
सैनिक की राखी ********************* वो भोली है वो मासूम है मेरी छोटी बहन जैसे गुलाब की पंखुड़ियों का हुजूम है मैं देश का सिपाही हूँ, एक रक्षक हूँ एक भाई हूँ हु माँ भारती का बेटा मैं, अपनी बहन की परछाई हूँ लेकिन इस बार उसकी चंद्र सी मुख आभा पर मोती से अश्रुओं का क्रंदन है उससे कैसे कहूँ मैं सरहद नहीं छोड़ सकता बहना क्यूँकि यही तो रक्षाबंधन है दुश्मन घात घातक है पर हममें भी माँ भारती की ताकत है अब तुम ही बताओ मेरी बहना राखी पर कैसे आऊँ मैं हमारे हाथों में तुम्हारी सी और कई बहनों की हिफाज़त है और यहाँ तो बस हमें तिरंगे में लिपटने की ही इज़ाज़त है ©Pradyumna sharma हुजूम= भीड़ #pradyumnasharma #RakshaBandhan2021