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Prashant Kumar Pandey
Asif Hindustani Official
Asif Hindustani Official
soul search
वो पैरों की छाप गीली मिट्टी पर वो सोंधी सी महक वो बूढ़ों की छुअन वो पानी में घुलता पसीना तेरे शरीर को सटा कर वो छाते के छोर पकड़ना गीले बालों से कुर्ते की भिजाई पलकों के बीच से आंखें चुराना वो बरसात के मौसम के पल सब याद करती हूं जब जब बरसात होती है आंखों में आंसू बन पानी संग बह जाते हैं जब जब बुंदे पड़ती है उनकी चुभन महसूस करती हूं वो गीली मिट्टी अब चप्पल से साफ कर लेती हूं छाते को कस कर पकड़ लेती हूं जब जब बरसात होती है वो पैरों की छाप गीली मिट्टी पर वो सोंधी सी महक वो बूढ़ों की छुअन वो पानी में घुलता पसीना तेरे शरीर को सटा कर वो छाते के छोर पकड़ना गीले बा
Dipti Joshi
मेरे अंदर मचल रही है एक कविता जो प्रतिदिन खटखटाती है दरवाज़ा मेरे मस्तिष्क का जिसे जन्म लेना है मेरी कलम की स्याही से जो बाहर निकल कर सो जाना चाहती है कागज़ के फर्श पर और खुद को ढक लेना चाहती है मख़मली प्रेम की चादर से मेरी कविता गढ़ना चाहती समाजिक असमंजस वो बनना चाहती है किसी स्त्री का आईना किसी पुरुष के अंतरमन की आवाज़ बच्चों की मित्र और बूढ़ों की आशा वो कविता रोज़ खटखटाती है दरवाज़ा मेरे मस्तिष्क का जिसे मैं सींच रही हूँ अपने अंदर और दे रही हूँ थोड़ा और वक्त ताकी वो फैला सके भरपूर उजाला आज की इस अँधेरी दुनिया में। © दिप्ती जोशी मेरे अंदर मचल रही है एक कविता जो प्रतिदिन खटखटाती है दरवाज़ा मेरे मस्तिष्क का जिसे जन्म लेना है मेरी कलम की स्याही से जो बाहर निकल कर स
नेहा उदय भान गुप्ता
दादा दादी पढ़े अख़बार, बन ठन कर पोता चलाता हैं लैपटॉप। कुछ ऐसा ही हैं आज की पीढ़ी में, अपना यें जनरेशन गैप।। नहीं समझते आज के नासमझ बच्चें, बड़े बूढ़ों की प्यारी सीख। यूट्यूब गूगल क्रोम से लेते हैं, अपनी नेह शिक्षा अपनी सीख।। नई पीढ़ी के बच्चों को कौन बताएं, रेडियो, अखबार और टेलीविजन की बातें। फेसबुक, इंसटा व वॉट्सएप पर ही, राग वो अपना हैं गातें।। दादा दादी, नाना नानी सब की कहानी हुई अब बहुत पुरानी। एक था राजा एक थी रानी, की भी रह गई अपनी अधूरी कहानी।। अपनों के संग बैठें हुए, बीत गई ना जानें कितनी सदियां। हम दो हमारे दो के चक्कर में, सुनी रह गई अपनी बगियां।। बड़े बूढ़ों के संग अब, नहीं बताते अपनें दर्द और गम सारे। हल्की सी चोट और बुखार पर, लगा देते हैं यें स्टेटस प्यारे।। पीढ़ी दर पीढ़ी के साथ ही, लुप्त हो गए अब संस्कार हमारे। नया जोश नया ख़ून इनका, नहीं सीखतें बड़े बूढ़ों के अनुभव सारे।। आधुनिकता के साथ ही, ले आएं संस्कारों में भी जनरेशन गैप। कौन बताएं कौन समझाए, अपनों की कमी को नहीं पूरा करेगा रैप।। दादा दादी पढ़े अख़बार, बन ठन कर पोता चलाता हैं लैपटॉप। कुछ ऐसा ही हैं आज की पीढ़ी में, अपना यें जनरेशन गैप।। नहीं समझते आज के नासमझ बच्चें,
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
दादा दादी पढ़े अख़बार, बन ठन कर पोता चलाता हैं लैपटॉप। कुछ ऐसा ही हैं आज की पीढ़ी में, अपना यें जनरेशन गैप।। नहीं समझते आज के नासमझ बच्चें, बड़े बूढ़ों की प्यारी सीख। यूट्यूब गूगल क्रोम से लेते हैं, अपनी नेह शिक्षा अपनी सीख।। नई पीढ़ी के बच्चों को कौन बताएं, रेडियो, अखबार और टेलीविजन की बातें। फेसबुक, इंसटा व वॉट्सएप पर ही, राग वो अपना हैं गातें।। दादा दादी, नाना नानी सब की कहानी हुई अब बहुत पुरानी। एक था राजा एक थी रानी, की भी रह गई अपनी अधूरी कहानी।। अपनों के संग बैठें हुए, बीत गई ना जानें कितनी सदियां। हम दो हमारे दो के चक्कर में, सुनी रह गई अपनी बगियां।। बड़े बूढ़ों के संग अब, नहीं बताते अपनें दर्द और गम सारे। हल्की सी चोट और बुखार पर, लगा देते हैं यें स्टेटस प्यारे।। पीढ़ी दर पीढ़ी के साथ ही, लुप्त हो गए अब संस्कार हमारे। नया जोश नया ख़ून इनका, नहीं सीखतें बड़े बूढ़ों के अनुभव सारे।। आधुनिकता के साथ ही, ले आएं संस्कारों में भी जनरेशन गैप। कौन बताएं कौन समझाए, अपनों की कमी को नहीं पूरा करेगा रैप।। दादा दादी पढ़े अख़बार, बन ठन कर पोता चलाता हैं लैपटॉप। कुछ ऐसा ही हैं आज की पीढ़ी में, अपना यें जनरेशन गैप।। नहीं समझते आज के नासमझ बच्चें,
Shree
कहां हो तुम... क्या कहूं, कहां नहीं! (Act of God) **ईश्वर और मैं** हर एक कहानी किसी ना किसी की आपबीती होती है। जैसे हर एक कहानी का स्रोत और रचनाकार ईश्वर होता है, उसी प्रकार उसके पात्र पहले
Ekta Singh
कुछ रिश्ते मन से फ़ना हो जाते हैं। कुछ रिश्ते कागज पे फ़ना हो जाते हैं। जो कभी दरवाजे की दस्तक को ना समझे, ऐसे रिश्ते बूँदों की तरह बस फ़ना हो जाते। ©Ekta Singh # बूँदों की तरह