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Kamal Singh
थी उम्र उसकी पढ़ने की थी उम्र उसकी खेलने की परिवार की हालत उसके तंग थी घर की शान्ति उसके भंग थी गरिबी ने बचपन छीना हाथ से खिलोने छिने छिना उसका बालपन छिना उसका लडकपन #बाल मजदूरी
Jennie
दिल में थे ढेरों सवाल जिनका था ना कोई जवाब लिए आंखों में आंसू खड़ा मै भी कि फरियाद की गुहार मैंने भी। क्या यही है मेरी ज़िन्दगी ? क्या करनी मुझको मजदूरी ? है ना कोई खुशी ज़रूरी ? कब तक मारू अपनी ख्वाहशें ? क्यों लिखी मेरे जीवन में इतनी खामिए ? मेरी पहचान का कोई वजूद नहीं रहा सिर्फ मालिक के कहने पे करता रहा मेरा भी दिल करता पढ़ने को नहीं जी करता किसी की गुलामी करने को अब जी नहीं करता कुछ सेहने को। महीनों निकाल कर अपना पसीना उस आग में झुलसा कर अपना सीना लाया पगार मै कुछ यूहीं ली बापू ने छीन उसे भी दी लूटा अपने दारू - जुए में ही। पूछता हूं उस खुदा से सवाल मै भी क्यों दी ऐसी गमों भारी ज़िन्दगी मझे ही चाहता मै भी जीना खुशी से रहना अब तो कर दो कोई करम सुनहरा ।। --बाल मजदूरी--
Deepali Singh
ऐ गरीबी...! तुने हमारे बचपन से बढ़ाकर दूरी क्या खूब करवाई बाल मज़दूरी इस बेबसी के दलदल में फँसाकर हमारी चाहतों का गला घोंट ज़रूरतों को भी ना दी मंज़ूरी और लोग हमें बताएँ कि पढाई- लिखाई भी है ज़रूरी ख्वाहिशों का तो पता नहीं बस दो वक़्त के रोटी की कमी करनी है पूरी और कुछ भी नहीं ज़रूरी, फिर कैसे न कहुँ... कि कभी माँ बाप की भी कुछ ऐसी ही थी मजबूरी खुद से क्या पूछूँ बात खुद्दारी पर आई है और उस खुदा ने ही हमें यह राह दिखाई है अब खुद का खुद से नाता नहीं, पेट भर कोई खिलता नहीं और मन की मर्ज़ी मैं बताता नहीं ऐ ख़ुदा...अब तु ही बता अगर मैं किसी का खाता नहीं इसमें मेरी क्या खता? जब तुने ही दी ये सज़ा तो क्यूँ ना रहूँ तुझसे ख़फ़ा? देनी थी जब गरीबी ही हमारे खाते में तो मैं बाल मजदूरी का ही क्यों न खाता? ©Deepali Singh बाल मजदूरी
Pooja Saini
,,बाल मजदूरी,, मजबूरी को मंजूरी समझ लेते हैं लोग लगाना पड़ता है फिर यह बाल मजदूरी का भोग कॉपी, किताब ,कलम , बैग ,सब कुछ तो छूट गया कैसे रखूं एक सौम्य जवानी की कामना? जब यह बचपन ही मुझसे रूठ गया, दब रहे सपने मेरे देखो भार विस्तृत है इस मजदूरी का क्या समझता है कोई पीड़ा मेरी भी? इस विनाशक बीमारी बहुत बुरी का इस रोग से पीड़ित हो रहे मेरे बौद्धिक अंग हैं सिकुड़ रहे सहज -सहज जिस उद्देश्य मेरा जीवन भंग है जा रही कुचली हर इच्छा मेरी खेलकूद होशियारी की पेट की आग रजा रही ये समस्त आडंबर मचा रही शोर इस कलंक की तैयारी की कैसे निकलूं इस दलदल से मैं? हर क्षण धंस रहे कदम है कोसों दूर बस गई सकारात्मकता भी क्योंकि इस बाल श्रम का भी एक विशाल गम है।। ©Pooja Saini #बाल मजदूरी 😌😌 #कविता✍️✍️
Abhishek Singh
जो दिनभर मज़दूरी करते वो बच्चे पढ़ ना पातें हैं, जो सच में शोषित पीड़ित हैं, वो अनपढ़ ही रह जाते हैं। बाल मजदूरी... #ChildLabour