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Chandan Yadav
जब जिस्म से राख झड़ने को थी वो अघोरी दर-दर भटका संग मेरे ~ चंदन जब जिस्म से राख झड़ने को थी वो अघोरी दर-दर भटका संग मेरे ~ चंदन यादव #po
Brisket Roy
पत्तों की ख्वाहिश झड़ने में कहां थी , वो तो बदमिजाज मौसम की मेहरबानी थी । कोई शाखों से पूछ लो, बोझ हल्का होने के तले , क्या बिछड़ने की कहानी थी । ©Brisket Roy पत्तों की ख्वाहिश झड़ने में कहां थी , वो तो बदमिजाज मौसम की मेहरबानी थी । कोई शाखों से पूछ लो, बोझ हल्का होने के तले , क्या बिछड़ने की कहानी
Raj 94myfm
Ravendra
Sahil Bhardwaj
ममता आँखों में नमी, पर होंठों पे मुस्कुराहट वो रखती है हमारी हर इक चीज़ का ख़याल वो रखती है उसका दर्द हम समझ जाये न कहीं खुशियों का नक़ाब लगाये वो घूमा करती है... **************************** रात भर दिये सी वो जलती है पहर दर पहर वो बदलती है तकलीफ ना हो हमें कहीं सारी रात वो जगती है... ---------
JALAJ KUMAR RATHOUR
हम उम्र के साथ बढ़ते हैं और ताज्जुब की बात ये है कि ताउम्र बढ़ते हैं। हमारे साथ कई और लोगों की भी उम्र बढती है। अगर दुनियाँ में सभी लोगों की उम्र समान होती तो शायद कोई बच्चा कभी बड़ा नही होता, कोई जवान कभी बुढा नही होता और कोई बुढ़ा कभी जवानी की दुआ नहीं मांगता। ये भी हो सकता था। कि निखार वाली लड़कियों के नखरे ताउम्र चलते और युवा बालों के झड़ने से ना डरते। अगर ऐसा होता तो कोई बाप बेटे पर निर्भर ना होता। दिन महीने और सदियों का भी कोई महत्व नहीं होता। तुम मेरे साथ ताउम्र रहती। मैं ताउम्र तुमसे अपने प्रेम का ईजहार न किये सिर्फ तुम्हारा दोस्त रहता।वक्त और वातावरण का ठहराव रहता। मैं चारों पहर तुम्हारे साथ रहता।धर्म, जाति से परे हमारा एक अलग जहाँ होता,जिसका खुद का आसमां होता और जहाँ दिल और तारों के टूटने का डर ना होता। ऐसी जगह अपना एक छोटा सा घर होता। जहाँ उम्र सिर्फ एक अपरिवर्तंनशील अंक होता। ....... #जलज कुमार राठौर हम उम्र के साथ बढ़ते हैं और ताज्जुब की बात ये है कि ताउम्र बढ़ते हैं। हमारे साथ कई और लोगों की भी उम्र बढती है। अगर दुनियाँ में सभी लोगों की
JALAJ KUMAR RATHOUR
आज जब किसी ने पूछा कि तुम्हारा कोई कल था क्या? तो मुझे तुम्हारी याद आ गयी। बहुत सोचा तब जाकर समझ आया कि तुम मेरा कल थोड़े ही थी।तुम तो वो पल थी। जिसके , मेरे पास ठहर जाने की दुआ, उस ईश्वर से ,मैं पल पल करता था। मुझे नहीं पता क्यूँ मैं तुम्हारे सामने आ जाने पर खुद में कंपन महसूस करता था पर हाँ जब तुम मेरा हाथ थाम स्कूल के पास वाला चौराह पार करवाती थी ना। तब मैं खुद को संपन्न महसूस करता था। किसी के कल होने के लिए क्या क्या शर्तें होती हैं मुझे नहीं पता पर हैं किसी की जीवन का पल भर होने के लिए आपमें उस शक्स को हँसाने या रुलाने की काबिलियत होनी जरूरी हैं।तुम में ये काबिलियत थी जो सिर्फ मुझ पर ही प्रयोग करती थी तुम।.... .... #जलज कुमार राठौर #Hopeless हम उम्र के साथ बढ़ते हैं और ताज्जुब की बात ये है कि ताउम्र बढ़ते हैं। हमारे साथ कई और लोगों की भी उम्र बढती है। अगर दुनियाँ में सभ
JALAJ KUMAR RATHOUR
रिश्तों की कश्मकश में खुद को आज भी ढूंढता हूँ मैं। तारों सा खुद टूट कर कई लोगों की ख्वाहिशों को पूरा किया था मैंने। मुझे नही पता था कि रिश्तों को इतना सम्भाल कर रखना पड़ता है। मैं तो सोचता था रिश्ते हमें सम्भाल कर रखते हैं। लेकिन अब लगता है कि हम और रिश्ते दोनो एक दूसरे के बिन अधूरे हैं। वैसे सच कहूँ तो कुछ रिश्ते हमारे जीवन में फरिश्ते बन जाते हैं और कुछ रिश्ते एक उकेरा हुआ घाव, जिनके इलाज का हिसाब हम किश्तों में चुकाते हैं। ऐसा ही एक रिश्ता तो तुमसे जुड़ा था मेरा। जो आया तो फरिश्ता बनकर था मगर जाते जाते एक घाव दे गया। ऐसा घाव जिसका मरहम सिर्फ तुम थीं। .... #जलज कुमार राठौर #Hopeless हम उम्र के साथ बढ़ते हैं और ताज्जुब की बात ये है कि ताउम्र बढ़ते हैं। हमारे साथ कई और लोगों की भी उम्र बढती है। अगर दुनियाँ में सभ
JALAJ KUMAR RATHOUR
आज तुम्हारी आँखों में जब आँसू देखे तो खुद पर बड़ा रोना आया। जीवन में कुछ लम्हें ऐसे जरूर आते हैं जब हम गलत ना होते हुए भी खुद को गलत मान लेते हैं। शायद खुद को झूठी तसल्ली देने के लिए , तुम न आसुँओ को हमेशा पी लेती थीं और मैं बहा देता था। इसी लिए तो कभी कभी मैं नही पहिचान पाता था तुम्हारी मुस्कान में छिपा दर्द। अपने सपनो के चक्कर में,मैंने कभी सोचा ही नही था कि कुछ तुम्हारे भी तो सपने होंगे। मुझे लेकर या हमारे बेनाम रिश्ते को लेकर। तुम भी तो मेरी हर बात को मान लेतीं थीं। क्यूँ नही तुमने कभी रोका मुझे,बचपन में तुम्हारे जिन हाथों की हथेलियों पर मेहंदी से में आठ पत्ती बाला फूल बनाता था और बीच में तुम मेरे नाम के दो अक्षर लिख मुस्करा देती थी। आज कैसे देख लूँ उन हाथों में किसी और का नाम।तुम्हारी जिन आँखों के आँसुओं को कभी मैं अपनी हथेलियों से बटोर लेता था। तुम्ही बताओ कैसे बहने दूँ उन आँखों से आँसू। आज मैं असाहय हूँ। उस प्रेमी की तरह जो हार जाता है। बेरोजगारी से, समाज से, जातियों से और उन चार लोगों से जिनकी दुहाई हमें ताउम्र दी जाती है।....... #जलज कुमार राठौर #Hopeless हम उम्र के साथ बढ़ते हैं और ताज्जुब की बात ये है कि ताउम्र बढ़ते हैं। हमारे साथ कई और लोगों की भी उम्र बढती है। अगर दुनियाँ में सभ
Asheesh indian
रिश्तों का बाजार..... ©Asheesh indian मैंने रिश्तों के बाजार में अक्सर देखा है जो इंसान जितना ज्यादा रिश्तों को बचाने के लिए झुकता है वो इंसान लोगों की नजर में उतना ही बुरा होता