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Mubarak
मत रख इन सायरी यो मे यकिन ऐ इन्सान क्यूं की ये जगह जगह पे रंग बदलती हैं ©Mubarak मत रख इन सायरी यो में यकीन ऐ इन्सान क्यूं कि ये जगह जगह पे रंग बदलती है
Aacky Verma
जान मेरी के सोचे है यो में ही हु तैने मन्ने मट्टी सिमझ लिया मेरी मां ते पूछ उसका हीरा में ही हु . . #aacky
Harshita Dawar
Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat जज्बे यूं ही मयान से तलवार निकला नहीं करती स्त्री जटिल परिस्थिति यो में भी घबराया नहीं करती बन्द मुठ्ठी में नई पहचान लिखा नहीं करती आसमान में पंख फैलाना कभी भुला नहीं करती स्त्री ख़ुद ही नहीं पहचान भुलाया नहीं करती संसार को प्रकाशित कर इतराना नहीं करती औरों की ज़िन्दगी इत्र से महकना नहीं भूलती रिश्तों की मर्यादा को नी निभाना नहीं भूलती भुला दे अगर नज़र से उतारे अगर नज़र से गिराना नहीं भूलती गिरे हुए को उठाना , परोपकार सिखाती ,सीखना नहीं भूलती जब आए बात स्वाभिमान पर सवाल उठना नहीं भूलती गलत सेहन की ताकत रखती गलत पर आवाज़ उठाना नहीं भूलती। #lifequotes #zindagi #women #yqquotes #yqdidi Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat जज्बे यूं ही मयान से तलवार निकला नहीं करती स्त्री जटिल पर
Siddharth Balshankar
जरुरत आज एक लफ्ज दिल में घर कर गया ना जाने लगा की, जैसे रूह को जिस्म की आयत की तरहा, जैसे तपती धुप में प्यासे को, पाणी की चाह की तरहा, जैसे मिनारो मे गुंजती आवाजों की तरहा, जैसे माँझी को तलाश हो किनारे की तरहा हमे इस लफ्ज की आदत हो, सूरज की पेहेली निकलती किरण की तरहा, अवकाश में फेले तारो की रोशनायो की तरहा ये चार लफ्जों का अक्स हमें कुछ यू, अपनासा तो नही लगता, हर वक्त ये लफ्ज इम्तेहान सा तो नही लगता, और कभी खुद को खुदि से पूछा जाये, ये हमे बे आशियाना तो नही लगता, आज मायीसो के दौर में, अंधेरों सुलगती आग की चिंगारी यो में, गरमी के मौसम मे लगे जैसे हवाओं ठंड की चाहत हो जैसे, अपने चारो और ये लफ्ज हमे घुरता हो जैसे हमे शुरुवात के दौर में कोई क्यूँ नहीं मिलता, हादसे गुजर जाते हि ये वक्त का पेमाना, हम पे हुकुमत क्युँ ये करता, आज भी और आने वाले कल मे भी, हर शक्स मे भी ,हर पल मे भी हम इस से दुरिया कब तक दिखायेंगे आप और हम से एक का असल रास्ता दिखायेंगे सभी से एक बात ही कहुँगा, किसी की जरुरत बनो लेकीन जरुरतो का मोहताज मत बनो आज एक लफ्ज दिल में घर कर गया ना जाने लगा की, जैसे रूह को जिस्म की आयत की तरहा, जैसे तपती धुप में प्यासे को, पाणी की चाह की तरहा, जैसे मिना
Siddharth Balshankar
जरुरत आज एक लफ्ज दिल में घर कर गया ना जाने लगा की, जैसे रूह को जिस्म की आयत की तरहा, जैसे तपती धुप में प्यासे को, पाणी की चाह की तरहा, जैसे मिनारो मे गुंजती आवाजों की तरहा, जैसे माँझी को तलाश हो किनारे की तरहा हमे इस लफ्ज की आदत हो, सूरज की पेहेली निकलती किरण की तरहा, अवकाश में फेले तारो की रोशनायो की तरहा ये चार लफ्जों का अक्स हमें कुछ यू, अपनासा तो नही लगता, हर वक्त ये लफ्ज इम्तेहान सा तो नही लगता, और कभी खुद को खुदि से पूछा जाये, ये हमे बे आशियाना तो नही लगता, आज मायीसो के दौर में, अंधेरों सुलगती आग की चिंगारी यो में, गरमी के मौसम मे लगे जैसे हवाओं ठंड की चाहत हो जैसे, अपने चारो और ये लफ्ज हमे घुरता हो जैसे हमे शुरुवात के दौर में कोई क्यूँ नहीं मिलता, हादसे गुजर जाते हि ये वक्त का पेमाना, हम पे हुकुमत क्युँ ये करता, आज भी और आने वाले कल मे भी, हर शक्स मे भी ,हर पल मे भी हम इस से दुरिया कब तक दिखायेंगे आप और हम से एक का असल रास्ता दिखायेंगे सभी से एक बात ही कहुँगा, किसी की जरुरत बनो लेकीन जरुरतो का मोहताज मत बनो #firstquote जरुरत आज एक लफ्ज दिल में घर कर गया ना जाने लगा की, जैसे रूह को जिस्म की आयत की तरहा, जैसे तपती धुप में प्यासे को, पाण