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B.L Parihar
चाहे प्रेम में रख, चाहे रख मुझे वार में, चाहे सृजन में रख, चाहे रख मुझे संहार में,, चाहे मिलन में रख, चाहे रख मुझे वियोग में,,, चाहे खुशी में रख, चाहे रख मुझे तू सोग में,,,, चाहे बंदगी में रख, चाहे रख मुझे बन्दिशों में,,,,, मै तो हूं तेरे मन की दबी सी चाह सी कहीं से भी उग आऊंगा,,,,,,,, हां, कहीं से भी उग आऊंगा मैं, तेरे थके मन को छांव देने प्रेम की तेरे रुके कदमों को राह देने नए सफर की तेरी मायूस आंखो में सपने देने नए जीवन के... हां, तेरे लिए मै कभी भी कहीं से भी उग आऊंगा।।।।। ©B.L Parihar #आऊंगा
Jeevan Nidhi Tiwari
तुम्हें अहसास करना चाहता हूँ, तुम्हे प्यार करना चाहता हूँ, जानता हूँ तुम चली आओगी मेरे एक बार कहने पर, जानता हूँ गेट खोलते ही भींच लोगी बाहों में कसकर, जानता हूँ चूमोगी मेरा चेहरा जैसे तारों ने आसमां को ढक लिया हो, जानता हूँ खुद को भूल जाएंगे उस पल जैसे शिव ने समाधि कर लिया हो, एकाग्रता,विचलन कहलाये, दिनकर तारों से बतलाये, चाहे जलधर शशि को पाए, मिलेंगे हम पर ऐसे नहीं, ऐसे जैसे ऊपर आसमां और है नीचे महीं। जीवननिधि , #gif #मिलन #मिलन
Shiv Narayan Saxena
खाली जगह में झूले और झूलों में खाली जगह कुछ और वज़ह चाहिये मिलने को प्यार में? ©Shiv Narayan Saxena मिलन. मिलन.
kushalshayarjk08
लहरें से सीखो साहिल से मिलना पोधों से सीखो झोको से हिलना कलियो से सीखो हर मौसम में खिलना ©Kushal-SinGing_SouL मिलन #मिलन #samandar
Rajendra Kumar Ratnesh
खेतों की पगडंडियों पर, लड़खड़ाकर चलने । बंधु मैं लौट कर आऊँगा फिर। भेड़, बकरियां, गाय-भैंसों की, धूल उड़ाते झुण्ड को देखने, नदी किनारे बगुले की , मछली पकड़ते झुण्ड को देखने। बंधु मैं लौट कर आऊँगा फिर। भूला नहीं वो पुरानी खेलें-गिल्ली-डंडा, आंख- मिचौली उपले की बंदूकें, कालिख पोते, डरावनी डकैतों वाली मुखड़ा। बंधु मैं लेकर यादें लौटकर आऊँगा फिर। दादी, माँ के हाथों की वो स्वादिष्ट व्यंजन खाने, पापा की जेब से, मां की साड़ियों के पल्लू में बंधे, सिक्के चुराने।। बंधु मैं ये सब दोहराने लौटकर आऊँगा फिर। चैन की सांसें लेने, वृक्षों की छांव में सोने, वो सुहावनी मौसम में, हर फसलों की सौंधी लेने। बंधु मैं लौट कर आऊँगा!! - राजेन्द्र कुमार मंडल सुपौल (बिहार) ratneshwriter@gmail.com ©Rajendra Kumar Ratnesh #लौटकर आऊंगा
Parasram Arora
मैं आऊंगा एक ठंडी हवा के झोंको की तरह तब मैं आऊंगा बादलो की. पीठ पर बैठी शितल बूंदो क़ि तरह और बरस जाऊंगा तुमरी इस अतृप्त धरती पर. और तुम्हारी बस्ती को भर दूंगा मिट्टी की सौंधी सुगंधो से ©Parasram Arora मैं आऊंगा