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#Mr.India
गौरव दीक्षित(लव)
मुग़लों को नाकों चने चबवाने वाले मेवाड़ के शेर #MaharanaPratap और चेतक की हिम्मत का कोई जवाब नहीं था! जिसकी #तलवार_की_छनक से #अकबर_का_दिल_घबराता था, वो अजर अमर वो शूरवीर वो #मेवाड_का_महाराणा कहलाता था। आज के दिन ही वो शहीदी को प्राप्त हुए थे॥ ---------------- #शत्_शत्_नमन ------------------ मुग़लों को नाकों चने चबवाने वाले मेवाड़ के शेर #MaharanaPratap और चेतक की हिम्मत का कोई जवाब नहीं था! जिसकी #तलवार_की_छनक से #अकबर_का_दिल_घ
Divyanshu Pathak
मातृभूमि की सेवा से जो पीठ नहीं दिखलाता है घास फूस की रोटी खाकर अपना काम चलाता है दुश्मन चाहे हो कोई भी नही अपना भाल झुकाता है धन्य धरा वो मेवाड़ी है जिसमें महाराणा आता है ! 😊🌷#शुभरात्री🌷😊 : मेवाड़ को बचाने के लिए आखिरी सांस तक लड़ने वाले महाराणा प्रताप 6 बार अकबर को बादशाह मानकर मेवाड़ मे राज चलाने की पेशकश ठुकर
Devesh Dixit
आजादी की खातिर, जो फिरंगियों से लड़ गए। दिमाग लगाया शातिर, देश को आजाद करा गए। फिरंगियों का लहू बहाया, उन्हें नाकों चने भी चबवा दिए। ऐसा उनको मजा चखाया, की दांतों तले उंगली दबा लिए। हिल गए थे वो अंदर से, जब वीरों ने हरकत दिखाई थी। हो रहे थे वो जर्जर से, जब आफत भी उनकी आई थी। कई शाजिशें रची उन्होंने, कितनों को सूली पर चढ़ा दिया। कितने कुकर्म किए उन्होंने, कितनी मुश्किलों को खड़ा किया। शाजिशों पर लगा ताला, होंसलों को उनके डगमगा दिया। मारा जैसे मुँह पर चांटा, ऐसे ही उनको फिर चौंका दिया। शत शत नमन करें उन वीरों को, जिन्होंने देश को आजाद करा दिया। याद करें उनकी देश भक्ति को, जिन्होंने तिरंगा अपना फहरा दिया। .................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #आजादी_की_खातिर #nojotohindi आजादी की खातिर, जो फिरंगियों से लड़ गए। दिमाग लगाया शातिर, देश को आजाद करा गए। फिरंगियों का लहू बहाया,
Shivank Shyamal
कविता- “स्वर्णिम विजय वर्ष” मैं स्वर्णिम 'विजय वर्ष' तुमको, अपनी आखों से दिखलाऊंगा। धीरे धीरे 'जग-जीत'ने की गाथा, इस कविता से बतलाऊंगा।। इकहत्तर की जंग में, भारत की सेना ने ऊँचा नाम किया। रण में 'दुर्गा', 'सैम बहादुर' की, नीति का जग ने सम्मान किया।। सरहद, धरती, अम्बर, सागर, चहुं ओर परचम लहराया था। दो हिस्सों में टूटा पाक, फ़िर घुटनों पर रोते आया था। 'निर्मल', 'इक्का', 'होशियार' ने, 'अरुण' सा लोहा मनवाया था। सीने में दुश्मन के 'तलवार', 'त्रिशूल', और 'ट्राइडेंट' घोप दिखलाया था। 'कुल दीप' के नेक इरादे, ना पाक मनसूबों पर भारी थे। भारत के 'विक्रांत' सैनिक, ख़ुद में ही चिंगारी थे।। मिट्टी में जीता, 'लोंगेवाला' और 'बसंतर', असमान में 'कैक्टस लिली' खिलाया है। ना ये अंतिम बार हुआ था, ना ये पहली बार हुआ है, भारत ने दुश्मन को, नाकों चने चबवाया है।। वैसे तो सत्य, अहिंसा, सत्यशील के, सरगम के अनुयाई है। पर भारत से न भिड़ने में ही, दुश्मन की भलाई है।। ©Shivank Shyamal कविता- “स्वर्णिम विजय वर्ष” मैं स्वर्णिम 'विजय वर्ष' तुमको, अपनी आखों से दिखलाऊंगा। धीरे धीरे 'जग-जीत'ने की गाथा, इस कविता से बतलाऊंगा।। इ
SANGHARSH KE MOTI
आज़ाद .... क्रांति की मशाल लिए , वो निकला था घर से, बांध के माँ भारती की, चुनर अपने सर से, यही था कफ़न उसका, यही उसकी ढाल था, दिल में रोष लिए, वो भारत का लाल था, ना खबर थी शाम की , ना फिकर थी भोरों की, भारत के इस लाल ने , नींद उड़ा दी गोरों की, गुलामी में जन्म लिया, ना गुलाम मरूँगा , आज़ाद था, आज़ाद हूँ, आज़ाद रहूँगा, थी प्रतिज्ञा अडिग उसकी, पत्थर की लकीर सी, अंग्रेजी हुकूमत की छाती में, चुभती थी तीर सी, क्रांतिकारी दल बनाया, कांकोरी को अंजाम दिया, गोरों की साँसों को, बन्दुक से विराम दिया, छलनि था शरीर उसका, सीने पर वार था, गोलियों की होलियां थी, पर मूंछों पर ताव था, कई बार भेष बदले, बदले उसने नाम कई , माँ भारती की स्वाधीनता हेतु, किये बड़े काम कई, छल से घेरा शत्रु ने जब, भारत माँ को याद किया, अकेला भिड़ा सेना से वो, दुश्मन से दो - दो हाथ किया, अकेले अंग्रेजी सेना को, नाकों चने चबवा दिए , अंतिम गोली रही जब शेष, तब स्वयं अपने प्राण लिए, जीते जी छू ना सके, वो माटी के लाल को , शहीद का लहू देख, रोना आये काल को, आओ मिलकर याद करे , हम शेखर महान को, चंद्रशेखर नाम जिसका, भारत के आज़ाद को, All WORKS COPYRIGHT PROTECTED @jitendrarathore ⇜जितेन्द्र राठौर⇝ हिंदी कविताएँ\ संघर्ष के मोती #freedomfighter #aazad #hindipoem #hindikavita ©Sangharsh Ke Moti #ChandraShekharAzaad आज़ाद | चंद्रशेखर आज़ाद पर कविता | क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद | Poem on Chandra Shekhar Aazad Hindi नमस्कार दोस्तों
अर्पिता
किसी इंसान को चने के जाड़ पर इतना भी मत चढ़ाओ, की वो आपके पीछे ही पड़ जाये.... ©अर्पिता #चने का झाड़
Anamika singh
एक हुँक सी उठी, जब उसने मुँह मोड़ा, फिर... मैं जोर से हसीं आखिर पसंद भी मेरी ही थी... चने के झाड से उतरना ☺️