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Sultan Mohit Bajpai
रुक जा प्रिये रुदन की वेला समाप्ति पर है । रोती ही जा रही हो घावों को देखकर तुम ।। तेरी देह पर पड़ी है चांदी सी चंद्र किरणे । खिलती ही जा रही हो रजनी की सेज़ पर तुम ।। क्या हो गया है आखिर ,क्यों रो रही हो ,आंखे । भरती ही जा रही हो घूँघट की ओट में तुम ।। गिरती है ओस आंख से , जैसे कि अश्रु मोती । चुनती ही जा रही हो आँचल के अंक में तुम ।। केशो में मेघ सा जल ,लगती हो अप्सरा तुम । क्यो मुग्ध कर रही हो आंखों से देखकर तुम ।। --सुल्तान मोहित बाजपेयी रुदन की वेला.. #NojotoHindi #Nojoto #EmotionalHindiQuotestatic #NojotoWodHindiQuotestatic #Quotes #Shayari #Poetry
Shruti Gupta
युह तो मेघ घने हैं नभ में फिर भी इंतजार में किसके सावन बरसे ना, मानो वियुग हुए बूंदों के जैसे प्रिय मिलन को हा मुझ सा तरस रहा। Full poem युह तो मेघ घने हैं नभ में फिर भी इंतजार में किसके सावन बरसे ना, मानो वियुग हुए बूंदों के जैसे प्रिय मिलन को हा मुझ सा तरस रहा।
amar gupta
युह तो मेघ घने हैं नभ में फिर भी इंतजार में किसके सावन बरसे ना, मानो वियुग हुए बूंदों के जैसे प्रिय मिलन को हा मुझ सा तरस रहा। Full poem युह तो मेघ घने हैं नभ में फिर भी इंतजार में किसके सावन बरसे ना, मानो वियुग हुए बूंदों के जैसे प्रिय मिलन को हा मुझ सा तरस रहा।
रजनीश "स्वच्छंद"
विरोधाभास।। मैं मर्त्यलोक का वासी हूँ, जीवन की बात सुनाता हूँ। क्षणभंगुर, अनन्त नहीं, बस मन की बात सुनाता हूँ। क्षुधा निवाला मेरी कहानी, हर भूखा एक नायक है। शब्दबाण लेखन में भर, जन जन की बात सुनाता हूँ। धरा जो उसकी जननी है, एक हिस्सा उसका भी हो, एक टुकड़े की नहीं, मैं कण कण की बात सुनाता हूँ। जिन हाथों ये महल बने, भौतिकता का आधार रहे। उनके कष्ट-आंसू और उनके क्रंदन की बात सुनाता हूँ। इस भोग-विलासी दुनिया के आधार रहे जो रक्त-कण, सूखी उनकी जमीं और उनके गगन की बात सुनाता हूँ। रौंदे गए जो कुसुम-कली, पतझड़ का सालों मौसम है, बंजर धरा में पसरे-पले उस उपवन की बात सुनाता हूँ। भोग लगाया ईश्वर को, मज़ारों को चादर से पाटा है, पीठ से चिपके पेट और निर्वस्त्र तन की बात सुनाता हूँ। कुछ बासन्ती अंधे ऐसे जिनको पतझड़ का भास नहीं, उनको उनकी ही बस्ती की रुदन की बात सुनाता हूँ। आर्त्तनाद से गूंजी धरती, कानो में तेल डाल जो सोये थे, ले लेखनी भर स्याही, हक-गर्जन की बात सुनाता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" विरोधाभास।। मैं मर्त्यलोक का वासी हूँ, जीवन की बात सुनाता हूँ। क्षणभंगुर, अनन्त नहीं, बस मन की बात सुनाता हूँ। क्षुधा निवाला मेरी कहानी, ह
indra patel
फ़िक्र सदा के लिए अनुशीर्षक:– फिक्र सदा के लिए एक रिश्ता सादगी का हर रोज़ पनप रहा है कुछ मेरे,कुछ बीच तुम्हारे हर रोज़ खूबसूरती से बदल रहा है
Sunita D Prasad
मात्र संवेदनाओं,समृद्धियों और सफलताओं से पूर्ण नहीं होता.. ये 'जीवन यज्ञ'। इसे चाहिए.. तुम्हारे द्रवित नैनों से गिरती अश्रुधार की प्रत्येक बूँद 'प्रक्षालन' हेतु..। इसे चाहिए.. तुम्हारे निःस्वार्थ भाव से किए तप और पूजा प्रार्थनाओं का 'पंचामृत'। इसे चाहिए.. तुम्हारे टूटे वचनों और अधूरे प्रयत्नों का 'यज्ञोपवीत'..। इसे चाहिए.. तुम्हारी हर छोटी भूल और पाप की 'कुशा' ..। इसे चाहिए.. तुम्हारी अस्थि मज़्ज़ा रक्त का 'आसन'..। इसे चाहिए.. तुम्हारे श्वासों और आकांक्षाओं की अनगिनत 'आहुतियाँ'..। इसे चाहिए.. तुम्हारी देह के चिन्तः घृत का आचमन,हर 'स्वाहा' पर। इसे चाहिए.. हर संबंध और हर स्वार्थ की अंतिम पराकाष्ठा की 'समिधा'..। इसे चाहिए.. तुम्हारी सोच के हर केल-पत्र पल्लव की छाया । इसे चाहिए.. तुम्हारी इच्छा के सभी सुवासित-कोमल पुष्प की 'मालाएँ'..। इसे चाहिए.. तुम्हारी हर अंतिम जमा पूँजी की 'सामग्री' । इसे चाहिए.. तुम्हारे हृदय के पिघलते लावे की 'लपट' । इसे चाहिए.. तुम्हारे भाव ,लज्जा ,प्रेम और हर संबंध की पूर्ण 'आहुति'..। इसे चाहिए.. तुम्हारी सारी चिरौरियों ,गिड़गिड़ाहटों और रुदन की 'आरती'..। इसे चाहिए.. तुम्हारे सारे सुकर्मों से अर्जित 'प्रसाद'..। तब ...... तब जा कर..ये जीवन तुमसे कुछ संतुष्ट हो, तुम पर कृपा करता है और प्रसन्न हो तुमको देता है.. मृत्यु का 'वरदान..। मात्र संवेदनाओं,समृद्धियों और सफलताओं से पूर्ण नहीं होता.. ये 'जीवन यज्ञ'। इसे चाहिए.. तुम्हारे द्रवित नैनों से गिरती अश्रुधार की प्रत्येक
Unconditiona L💓ve😉
""रहो अखंड सौभाग्यवाती"" _______❤👸❤_______ [ Part -3.🌀 ] " माँ " [Full *Captured in Caption ] #रहो_अखंड_सौभाग्यवती- 3💌,,पार्ट 1,2, ज़रूर रीड करें 🙏😔😔 ___________________________________________________________ ❤❤जिसने भी poke किये है
Vikas Sharma Shivaaya'
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ हिंदू धर्म के समस्त देवी-देवताओं के भी इष्ट भोलेलाथ का मूल मंत्र "ॐ"- जिस कारण इस धर्म से संबंध रखने वाला हर व्यक्ति इसका जाप करता है, कहा जाता है “ॐ” कार दिव्य नाद है- नाद एक संगीत उपकरण है- कहा जाता है यह केवल एक मंत्र नहीं बल्कि परम संगीत है। संपूर्ण सृष्टि के सभी स्वर इस एक शब्द “ॐ” में पिरोए हैं। यहां तक कि पेड़ों पर बैठे पखेरुओं का कलरव, उच्च हिम शिखरों की शांति, पहाड़ों से उतरते झरनों की मर्मर, वृक्षों से गुजरती हवाओं की सरसर, महासागरों में लहरों का तर्जन, आकाश में बादलों का गर्जन सभी का सार है “ओंकार”। “ॐ” कार शब्द बीज है, कहा जाता है समस्त शब्द इसी से जन्मे हैं। इसी से उन्हें जीवन मिलता है और अंत समय में इसी में मिल जाना है। कुछ मान्यताओं की मानें तो वेद ही नहीं बाइबिल भी “ॐ” से ही उपजी है-बाइबिल भी इसी सच्चाई को दुहराती है कि प्रारंभ में ईश्वर था, और ईश्वर शब्द के साथ और फिर उसी शब्द से सब प्रकट हुआ। गीता तथा गायत्री भी इसी से प्रकट हुई है। इसीलिए वेद कहते हैं कि “ॐ” को जिन्होंने जान लिया, उनके लिए इसके बाद जीवन में कुछ और जानने के लिए शेष नहीं रहता। सृष्टि का बीज है “ॐ” कार-सृष्टि की सभी ऊर्जाओं का परम स्रोत है यह “ॐ” कार। अनन्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा के विभिन्न स्तर, आयाम और ऊर्जा धाराएं “ॐ” कार से ही प्रवाहित हुई हैं। यही कारण है कि उपनिषद् में वर्णन मिलता है “ॐ” कार से सब पैदा हुआ तथा “ॐ” कार में सभी का जीवन है और अन्त में सब कुछ “ॐ” कार में ही विलीन होगा। सृष्टि के सूक्ष्मतम से महाविराट् होने तक के सभी रहस्य इस “ॐ” कार में ही समाए हैं। ध्यान बीज है है “ॐ” कार- कहा जाता है जो भी इसका ध्यान करता है उसके सभी रहस्य उजागर होते हैं, शक्ति के स्रोत उफ़नते हैं। यह “ॐ” कार हममें है, तुममें है, सबमें है। परंतु अभी यह बन्धन में है और जब तक यह बन्धन में रहेगा मनुष्य के भीतर रुदन का हाहाकार मचा रहेगा तथा वेदनाएं हमें सालती रहेंगी। “ॐ” कार के बंधन मुक्त होते ही रुदन की चीत्कार संगीत के उल्लास में बदल जाती है। बंधन से मुक्ति केवल “ॐ” कार के ध्यान से ही संभव है। विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 277 से 288 नाम 277 प्रतापनः जो अपनी किरणों से धरती को तप्त करते हैं 278 ऋद्धः जो धर्म, ज्ञान और वैराग्य से संपन्न हैं 279 स्पष्टाक्षरः जिनका ओंकाररूप अक्षर स्पष्ट है 280 मन्त्रः मन्त्रों से जानने योग्य 281 चन्द्रांशुः मनुष्यों को चन्द्रमा की किरणों के समान आल्हादित करने वाले 282 भास्करद्युतिः सूर्य के तेज के समान धर्म वाले 283 अमृतांशोद्भवः समुद्र मंथन के समय जिनके कारण चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई 284 भानुः भासित होने वाले 285 शशबिन्दुः चन्द्रमा के समान प्रजा का पालन करने वाले 286 सुरेश्वरः देवताओं के इश्वर 287 औषधम् संसार रोग के औषध 288 जगतः सेतुः लोकों के पारस्परिक असंभेद के लिए इनको धारण करने वाला सेतु 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की ©Vikas Sharma Shivaaya' ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ हिंदू धर्म के समस्त देवी-देवताओं के भी इष्ट भोलेलाथ का मूल मंत्र "ॐ"- जिस कारण इस धर्म से संबंध रखने वाला हर व्यक्ति
Kumar.vikash18
हमारी बिटिया READ IN CAPTION 👇 हमारी बिटिया हर दिन की तरह आज भी तड़के मैं सैर पर निकला, और दिनों की तरह आज भी मेरी श्रीमती जी मेरे साथ ही थीं! हम दोनों का विगत कई वर्षों