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Ajay Daanav
हृदय से उपजे विचार हो तुम शब्दों का मेरे श्रृंगार हो तुम करती हुई झंकृत मन-वीणा सातों सुरों की झनकार हो तुम हूं मैं कविता छंदों में गढ़ी कविता का मेरी सार हो तुम हृदय से उपजे विचार हो तुम प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता।
Akash Chaudhary
प्रेम को परिभाषित नहीं करते पात गन्दी रेत से लथपथ वो पत्ते जो कभी वृक्ष के वक्ष से कलाएं करते थे, कितनी ही चिड़िया तुमको छूकर गुजरी, मैं तुम पर आज ढूंढने बैठ गया उनके पैरों के निशान, क्या मन नहीं है तुम्हारा तुम उनको परिभाषित करो, क्या नहीं बताना चाहते मुझे अपने प्रेम के विषय में, तुम्हारी व्यथा और प्रेम से परिचित हूं मैं समझ रहा हूं पात तुम्हे मैं, तुम्हे पुरानी चिड़िया की याद आयी होगी, चलो मैं अपने दरवाजे से इंतजार में हूं जब चाहना तब दास्तां सुनाना......, तुम्हारा मौन समझता हूं मैं, तुम बता रहे हो शायद मुझे प्रेम कभी शब्दों से नहीं किया जाता वो होता है बस ,बस होता है।। ©Akash Chaudhary प्रेम को परिभाषित नही किया जाता।।❤️
Shravan Goud
सपनो को पुरा करना है तो वर्तमान मजबुत कीजिए और भविष्य की योजना बनाकर रखिए, समयानुसार उसको कार्यान्वित कीजिए। समयानुसार योजनाओं का कार्यान्वयन कीजिए।
Shashank मणि Yadava "सनम"
भले बड़े बन जाओ यारों, लेकिन माँ को याद रखो।। मंदिर जाने से बेहतर है, माँ को अपने पास रखो।। माँ के प्यार, दुआ से बढ़कर, न कोई भगवान है।। जिसने माँ को मान दिया, वो सबसे सुखी इंसान है।। प्रभु पूजा की ख्वाहिश यारों, जब भी मन में लाता हूँ।। सच कहता हूँ यारों तब, मंदिर मस्जिद न जाता हूँ।। अपनी माँ की ममता के, आँचल में मैं सो जाता हूँ।। ©Shashank मणि Yadava "सनम" #Mother's love,,,,, माँ को परिभाषित करती हुई पंक्तियाँ
Ek villain
नई अंतर्राष्ट्रीय पेंशन योजना यानी एनपीएस और पुरानी पेंशन को लेकर सरकारी कर्मचारी आंदोलन के मूड में है इस सिलसिले में कई कर्मचारी संगठनों को अलग सप्ताह 228 29 मार्च की हड़ताल आन किया है बुनियादी रूप से यह मामला अब राजनीतिक हो गया था हाल ही के विधानसभा चुनाव में इसकी गूंज सुनाई दी गई थी एनपीएस और पुरानी पेंशन योजनाओं के गुण दोष पर चर्चा करने के साथ पर राजनीतिक रूप से यह ऐसा मुद्दा बन गया है जो सीधे-सीधे वोटों के गणित से जुड़ गया है सवाल यह है कि केवल सरकारी ढांचे से जुड़े लोगों को बुढ़ापे में आर्थिक सुरक्षा कवच अनिवार्य है क्या देश के हर नागरिक को ऐसी सामाजिक सुरक्षा के दायरे में नहीं होना चाहिए कई देशों में पहले ही प्रधान है भारत में सामाजिक सुरक्षा के मानकों पर खरी नहीं रहा है सरकारी कोष से एक बड़ा हिस्सा अधिकारियों के खर्चा होता है इसकी तार्किकता का परीक्षण की भी स्थिति प्रशासन सुधार आयोग ने नहीं किया मसलन एक परिवार के लाखों की पेंशन हासिल होती है और उसी में कम भाव को मामला पेंशन एनपीएस से पूर्व पेंशन में विगत भरमार मिलती है 2014 में आईएएस पीसीएस मॉडल को संस्थागत पेश किया गया लेकिन नतीजा कुछ और नई कहानी कहती है पुरानी पेंशन एक मुश्त राशि की मासिक देती है जो समाज कर्मचारी की अंतिम तिथि यह है कि सरकारों को 1 साल पुराना आसान है जैसे राज्यों के मुख्यमंत्री कर रहे हैं ©Ek villain #पुरानी पेंशन योजनाओं का जटिल प्रश्न #Hope
Saurav Das
मेरे साथ मुस्कुराते हुए अपने गम को छूपा लेती है, दूसरों की नज़र न लगे,अपने आचल में छूपा लेती है! हमेशा जीत माँ की हुई है हर परिस्थिति से लड़ने में! लाखों,करोड़ो शब्द कम पड़ जाएंगे, माँ को परिभाषित करने में!! ©Saurav Das #शब्द #कम #है #माँ #को #परिभाषित #करने_में #माँ_दिवस्_की_हर्दिक
Saurav Das
एक दाग है जो सिने में छूपाया है! ये सराहना देने कौन आया है? जिसे मालूम नहीं संघर्ष का मतलब! वो ज़िन्दगी को परिभाषित करने आया है!! ©Saurav Das #ज़िन्दगी #परिभाषित #Light
Shashank मणि Yadava "सनम"
चलते-चलते राहों में जब, मन विह्वल जो जाता है दिल की परिधि में प्रेम का यूँ, नीरज नीरस हो जाता है।। मन की बेचैनी, मेरे मन में, व्याकुलता भर जाती है न जाने क्यों रातों में जब, नींद न अक्सर आती है।। सच कहता हूँ यारों तब, मंदिर-मस्जिद न जाता हूँ अपनी माँ की ममता के, आँचल में मैं सो जाता हूँ।। ©Shashank Yadav माँ के अस्तित्व को परिभाषित करती हुई कविता,,, dedicated to all mothers