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HP
सांसारिक सुखों की लालसा और फल की इच्छाओं ने हमे कितना स्वार्थी बना देता है न साहब। यादों को जिन्दा रखने के लिये तस्वीरे चिपकाना कितना आवश्यक हो गया है। जय हिंद सर लालसा
kanchan Yadav
खुद की परछाई से अब डर लगता है कब साथ छोड़ दे कहां पता चलता है सांसों की डोर भी कमजोर पड़ी मन है कि जीने को और करता है खुद की परछाई से अब डर लगता है कब साथ छोड़ दे कहां पता चल लालसा आशा से जी कहां भरता है जितना भी मिले जीवन में कम लगता है खुद की परछाई से अब डर लगता है कब साथ छोड़ दे कहां पता चलता है ©kanchan Yadav #लालसा
सुशील राय "शिवा"
हवाएं दें गवाही, आसमां साक्षी हो। ना हो कोई, तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में हो।। पंछी बजाएं शहनाई, प्रकृति की सुंदर ताल हो। जो न कभी टूट सके, ऐसा ही मधुर मिलन हो।। तुम मेरे मैं तुम्हारा, बस एक ही वचन हो। सुख-दुःख एक समान, जीवन की यही लालसा हो।। ना धन की इच्छा, ना शोहरत की कामना हो। बंधे ऐसे इक बंधन में, जिसमें ना कोई गांठ हो।। साथ चलें जीवनपर्यंत, राह चाहे कितनी भी मुश्किल हो। 'सुशील' की नईया पार करे, बस ऐसा ही खेवईया हो।। ©सुशील राय "शिवा" लालसा #Couple
Arora PR
आदमी मे जीने की अदमय लालसा का गुण तो होना ही चाहिए.... ताकि दर्द और कराह से लेबरेज़ पीड़ित मानवता के लिए हमारी आँखों की तरलता सदा बनी रहे और हम मानवता को अपने प्यार और करुंना से सभी को प्रसन्नता दे सके और उनमे उत्साह का भाव भी भर सके ©Arora PR अदमय लालसा
Parasram Arora
आज मै ख़ामोशी से मुख़ातिब हो रहा हूँ. और उसके सामीपय और सानिध्य मे स्वयं को बहुत छोटा अनुभव क़र रहा हूँ इतना छोटा क़ि मै उसके आगोश मे खुदको गिरा क़र संसार का सारा सुख इक बार मे ही पा लेना चाहता हूँ मै नहीं जनता इस ख़ामोशी का स्त्रोत कहाँ है लेकिन लगता है ये मुझे अपने मूल स्त्रोत से सम्पर्क करा के ही दम लेगी कितना अच्छा लगता है इसका साथ और आधिपत्य क़ि मुझमे एक लालसा बलवाती होने लगती है क़ि ताउम्र मै इसके अंक मे सिमटा रहूंl ©Parasram Arora खामोशी की लालसा.......
SUNIL KUMAR VERMA
एक बार एक व्यक्ति संतुष्टि पाने की लालसा मे अपनी मंजिल की ओर चला जा रहा था.रास्ते मे उसे संतुष्टि मिल गई.वह राहगीर उस संतुष्टि को पहचानता नहीं था इसलिए उसने जिज्ञासा वश पूछा "हे देवी!तुम कौन हो और अकेले कहां जा रही हो?" तब संतुष्टि ने उस राहगीर के सवालों का जवाब देते हुए कहा. "मानव मैं संतुष्टि हूं और मैं अकेले नहीं हूं.देखो तुम्हारे साथ तो चल रही हूं." राहगीर ने संतुष्टि का मजाक बनाते हुए अविश्वास पूर्ण तरीके से कहा. "साथ!कैसा साथ?तुम तो मुझे अभी दिखाई दे रही हो.मै तो कब से अकेला ही सफर कर रहा हूं!" राहगीर की बात सुनकर संतुष्टि ने मुस्कुराते हुए कहा. "यही तो बात है,मुसाफिर..जीवन के सफर मे मै हमेशा हर किसी के साथ चलती रहती हूं.जो संतुष्ट रहते हैं उन्हें दिखाई दे जाती हूं और जो संतुष्ट नही रहते हैं उन्हें मै दिखलाई नही देती हूं." इतना कहकर संतुष्टि वहां से अदृश्य हो जाती है.राहगीर को संतुष्टि की बात समझ मे आ चुकी थी. "अब आप बताएं कि,राहगीर अब क्या करेगा?" ©SUNIL KUMAR VERMA संतुष्टि की लालसा
Parasram Arora
चेतना के तमाम गकियारे अंधेरों की चपेट मे हैँ दर्द की अंतरधारा किस तरफ बह रही कुछ भी पता नहीं लग रहा हैँ व्यथा निधियों क़ो न जाने कौन लूट कर ले गया हैँ फिर भी जीने की अदम्य लालसा आज भी बरकरार हैँ ©Parasram Arora अदम्य लालसा #Happy
Manoj Soni
लालसा अपरिमित है स्वयं का भविष्य में विस्तार है लालसा जैसे ओस बादल को समाहित करने की चेस्टा करे... प्यास वर्तमान में होती है भविष्य में नही आप तृप्त वर्तमान में होते हैं भविष्य में नही ...... इसलिए कल्पनाओं से तृप्ति सम्भव नही वर्तमान गतिमान है इसलिए वर्तमान की कल्पना सम्भव नही वो यथार्थ है ... कल्पनाओं के लिए एक रिक्त ठहरा हुआ आकाश आवश्यक है कल्पनाए भविष्य में तृप्ति की तैयारी है... इसलिए कल्पना भविष्य की होती है मगर प्यास वर्तमान है !!! और तृप्ति भी वर्तमान में निहित है । 'मनु' लालसा और तृप्ति