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Chandan kumar
*रिश्तों की दलदल से ...कैसे निकलेंगे* , , *जब हर साजीश के पिछे ...अपने निकलेंगे* ",
gaTTubaba
शरीर का नहीं रूह का दर्द हैं आंसू कैसे निकलेंगे ? पोंछनेवाला कोई नहीं हैं जानते हैं वो आख़िर कैसे निकलेंगे ? आंखोनें समझा दिया उनको की मत निकलो वरना दुनियावाले हमें कमजोर समझेंगे !!! ©gaTTubaba शरीर का नहीं रूह का दर्द हैं आंसू कैसे निकलेंगे ? पोंछनेवाला कोई नहीं हैं जानते हैं वो आख़िर कैसे निकलेंगे ?
Poonam Suyal
जीवन बन गया है भूल भुलैया (अनुशीर्षक में पढ़ें) जीवन बन गया है भूल भुलैया ज़िंदगी उलझी है इस क़दर, सुलझाने का इसे रास्ता नहीं आता नज़र हर लम्हा दिल रहता है बेचैन, जी रहे हैं पीकर ज़िंदगी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।। च़चल मन की वो खुशी , देख सके क्या आप । मन ही मन खिलता रहा , सुनकर ये पदचाप ।। चंचल मन ने बाँध ली , आज प्रेम की डोर । कैसे निकलेंगे सजन , नैना है चितचोर ।। चंचल दिखती है पवन , छेड़े मन के तार । आने वाले हैं सजन , लायी खत इस बार ।। चंचल मन वैरी हुआ , करके उनसे प्रीति । सुधि भी वह लेता नहीं , निभा रही मैं रीति ।। २७/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।
Vedantika
(देखा एक ख़्वाब तो…) सुरभि और संजय बरसात के मौसम में अपनी कार में लॉन्ग ड्राइव पर निकले थे। बाहर हल्की बूंदाबांदी हो रही थी जिसकी छींटों से कार के शीशे भीग गए थे। सुरभि ने अपनी ओर की खिड़की का शीशा थोड़ा सा नीचा किया और हाथ बाहर निकाल कर उंगलियों से शीशे पर तरह तरह के चित्र एक गीत गाते हुए बनाने लगी। संजय ने उसे ऐसा करने से रोका नहीं क्योंकि सुरभि बहुत दिनों बाद खुश लग रही थी। वो अभी कुछ दूर ही गए थे कि एक तेज आवाज के साथ गाड़ी रुक गई। सुरभि को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई। उसने संजय से पूछा- “क्या हुआ संजय, आपने कार क्यो रोक दी? सुरभि की बात सुनकर संजय ने हँसते हुए कहा- “मैंने कार नहीं रोकी डियर, लगता हैं, कार को भी तुम्हारे ये अजीब कारनामे पसंद नहीं आए।” यह सुनकर सुरभि ने संजय की और देखा और मुस्कुराने लगी। वे दोनों कार से नीचे उतरे और संजय ने कार की खराबी देखने के लिए डिक्की खोल दी। काफी देर
Royal thinking
सीखते रहे उम्र भर दुश्मनों से लड़ने का हुनर हमें कहाँ पता था, क़ि अपने भी कातिल निकलेंगे कातिल निकलेंगे
Royal thinking
सीखते रहे उम्र भर लहरों से लड़ने का हुनर हमें कहाँ पता था, क़ि किनारे भी कातिल निकलेंगे आपका दिन मंगलमय हो किनारे भी कातिल निकलेंगे
poetrywithvineet
वो बन संवर के मेहबूब से मिलने निकलेंगे। ज़माने के सितम उसमे अवरोध बनकर निकलेंगे। की भले ही हम सोच कर थोड़ा नाराज़ है पर चलो अच्छा है वो मिलकर खुश होकर निकलेंगे। की सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से दुआ किए होंगे वो। इसबार मिलादो भगवान अगली बार व्रत करके निकलेंगे। इसबार उनके पसंद नीले रंग की कुर्ती पहने है। अगली बार पक्का हम गेरुआ रंग का पेहन के निकलेंगे। -poetrywithvineet वो बन कर निकलेंगे #alone
Ek villain
आर्थिक चुनौतियों का सामना शीर्षक से लेख अपने आलेख में संजय गुप्ता ने रूस युद्ध सिगरेट पर हमले से उत्पन्न वैश्विक आर्थिक व्यवस्था का यथार्थ मिलन किया करो ना महामारी से त्रस्त सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को रूस और यूक्रेन के मध्य छिड़ी जंग से अब तबाह कर दिया गया रूस पर अमेरिका के सहयोगी देशों का द्वारा प्रतिबंध लगाना कच्चे तेल के दाम पर भारी वृद्धि से भारत समेत तमाम देश में गाय की मार झेल रहे हैं ऐसे में तमाम देश में व्यवस्था चलने और आम जनता को महंगाई की मार से बचाने के लिए सरकारों के पसीने छूट रहे हैं भारत जैसे देश में आम लोगों को पेट्रोलियम उपयोगकर्ताओं को राज्य सरकारों को मिलकर व्यवस्था को सुधारने के लिए कार्य करना चाहिए जिससे बढ़ती महंगाई की मार से आम जनता को बचाया जा सके अभियान को बढ़ावा देकर देश को आना चाहिए ©Ek villain #आत्मनिर्भरता से निकलेंगे रास्ता #LostInSky