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Naresh Madhubniya
kabir pankaj
तुम मेरी रग रग मे हो, मैं उपासक,मेरे देव हो... भूतों की टोली पूजती, तुम भस्म लगाते भी हो... .. कबीर भक्त भोले का है, डर मे ना रहता,ना जीता है... शांत ह्रदय, बाबा की बूटी, बस ये बम बम करता है.... . ©kabir pankaj शिव तुम सर्वत्र हो, कड़ मे वायु मे हो... अग्नि मे, जल मे हो, प्रेम मे, क्रोध मे हो... .. अंत भी,अनंत भी हो, देवों मे महादेव भी हो... तुम ज्ञा
Richa Mishra
सर्वहारा लोगों के बारे में जो आज दौर चल रहा है .... चुनावी दौरी का ! वहीं समय 5 वर्ष पूर्व का था ! हम सभी मित्र घूमने का सोच रहे थे तभी एक मित्र ने कहा - द ० भारत क
Richa Mishra
सर्वहारा लोगों के बारे में जो आज दौर चल रहा है .... चुनावी दौरी का ! वहीं समय 5 वर्ष पूर्व का था ! हम सभी मित्र घूमने का सोच रहे थे तभी एक मित्र ने कहा - द ० भारत क
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
Alone #विचार #Dil_Ki_Awaz_Labzon_Ke_Sath चलो कुछ करते है चलो कुछ करते है ना भूतों की कहानियों से फिर से डरते है ना वो जो कितने ही जहाजों के मालिक हुआ करते थे कभी चलो आज उन्ही राहों में फिर से चलते है ना हां चलो आज फिरसे बचपन मे चलते है ना कितने मासूम से थे हम,दिल कितना पाक था हमारा बिना कोई स्वार्थ के हम बनते थे एक दूसरे का सहारा चलो आज फिर से उसी निस्वार्थ भाव मे ढलते है ना एक दूसरे का हाथ थामे आज फिर बाहर निकलते है ना की चलो आज फिरसे बचपन मे चलते है ना रात का इंतज़ार रहता था क्योंकि जुगनू टीम टीम करके आती थी माँ की गौद में झट से सो जाते थे जब माँ लोरी गाकर सुनाती थी तो चलो न आज उन्ही जुगनुओं से फिरसे मिलते है ना माँ की गौद में सोकर फिरसे उसी तरह लोरी सुनते है ना हाँ चलो फिरसे आज बचपन मे चलते है ना लुक्का छिपी, गिल्ली डंडे के संग ही तो अपने दिन गुजरते थे मलंग होकर भीगते थे जब भी आसमान से बौछारे बरसते थे क्यों न आज फिरसे उन्ही खेलो के बीच दिन गुजारते है ना बारिशों की बूंदों को फिरसे अपने पलको पर उतारते है ना चलो न आज फिरसे बचपन की उन गलियों में चलते है ना बे मतलब ही छोटी छोटी बातों पर जो हम रुठ जाया करते थे माँ चॉकलेट देकर तो पिताजी कहानी सुनाकर हमे मनाया करते थे वो रूठने मनाने के रंगों को फिरसे जीवन मे भरते है ना वो बचपना जो मर चुका है उसे फिरसे जीवित करते है ना हाँ चलो न फिरसे हम उस बचपन मे चलते है ना कभी मिक्की माउस,कभी डोनाल्ड डक तो कभी शक्तिमान हम बन जाते थे सेहत की चिंता कभी न थी बेफिक्री से हम कुछ भी खाते थे मिक्की डोनाल्ड से आओ फिरसे हम बातें करते है ना वो बेफिक्री जो कहीं खो चुकी है ,उसे फिरसे ढूंढने निकलते है ना चलो न आज फिरसे हम बचपन मे चलते है ना स्कूल न जाने के न जाने कितने सारे बहाने हम बना लिया करते थे जो दोस्त कभी रूठते थे तो उन्हें झट से ही तो मना लिया करते थे देखो न जिंदगी आज हमसे रुठ चुकी है उसे हम फिरसे मनाते है ना जिंदगी के भंवर में न फंसते चले जाएं ऐसा कोई बहाना बनाते है ना देखो न वो बचपन हमे पुकार रहा है हम फिरसे एक बार बच्चे बनते है ना हम फिरसे बचपन की गलियों में चलते है ना ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) #विचार #Dil_Ki_Awaz_Labzon_Ke_Sath चलो कुछ करते है चलो कुछ करते है ना भूतों की कहानियों से फिर से डरते है ना वो जो कितने ही जहाजों के माल