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Dharmendra Gopatwar
Title:: तिला मात्र चंद्राचं कौतुक...... by Dharmendra Gopatwar बसलो होतो मी तिच्याजवळ ती चंद्राला बघत होती..... तिचं मी रूप न्याहाळत होतो , ती मात्र चंद्राची स्तुती करत होती मी तिच्या गौरवर्ण रुपावर हृदय हारलो, ती मात्र चंद्रावर मोहित होती मला तिच्या सौंदर्याचं तर , तिला मात्र चंद्राचं च कौतुक वाटत होत.... मी तिच्या जवळ बसल्या बसल्या मला पहिली कविता सुचली ... तो ही तिच्या सौंदर्यावर , आणि ती चंद्रावर मोहित होऊन तिच्या वहीत शंभर कविता केलेलं होत ....... ती चंद्रावर कविता करताना तिला तो चंद्रावरचा डाग ला तिलेची सज्ञा देऊन चंद्राचं कौतुक पर वाक्य लिहीत होती ... मी मात्र तिच्या मानेवरचा तो तीळ बघून माझ्या कवितेत तिच्या सौंदर्याचा वर्णन करीत होतो .... तिच्या डोळ्यात बघता चंद्राचे प्रतिबिंब दिसतं होत माझ्या डोळ्यात मात्र तीच च रूप बसलं .... त्या रात्रीला चंद्राचा त्या पांढऱ्याशुभ्र प्रकाशात तिच्या डोळ्यांना मोह झाला होता , मला मात्र असं वाटतं होत की , तिच्या रुपामूळे चं चंद्राच्या रुपात आणि त्याच्या प्रकशात आणखी भर पडलेलं असावं.... त्या रात्री चंद्राच्या प्रकाशात आम्ही दोघे बसलेलो ती मुळात होती कवी ... पण तिच्या सुवर्ण रूपावर ओळी लिहिता - लिहिता मी कवी झालो .... ती चंद्रासोबत ताऱ्या वर दोन ओळी रचली मी तिच्या भोवताली चमकणाऱ्या काजव्यांवर चार ओळी माझ्या कवितेत सामाविष्ट केल्या...... ती कविता करताना चंद्रासोबत तारे आकाश यावर तिच्या कवितेची चौथी ओळ पूर्ण केली ..... ती चंद्राला न्याहाळत कविता करताना तिची फक्त चारोळी च झाली पण मी तिच्या सौंदर्यावर अख्खं कविताच केला ....✍️ AUTHOR_DHARMENDRA GOPATWAR कवी- मन (मनातलं ओझं पानावर) ©Dharmendra Gopatwar #तिला मात्र चंद्राचं कौतुक
Jitendra Kumar Som
तीसरी पुतली चंद्रकला की कहानी तीसरे दिन जब वह सिंहासन पर बैठने को हुआ तो चंद्रकला नाम की तीसरी पुतली ने उसे रोककर कहा, 'हे राजन्! यह क्या करते हो? पहले विक्रमादित्य जैसे काम करों, तब सिंहासन पर बैठना!' राजा ने पूछा, 'विक्रमादित्य ने कैसे काम किए थे?' पुतली बोली, 'लो, सुनो।' तीसरी पुतली चन्द्रकला ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है - एक बार पुरुषार्थ और भाग्य में इस बात पर ठन गई कि कौन बड़ा है? पुरुषार्थ कहता कि बगैर मेहनत के कुछ भी संभव नहीं है जबकि भाग्य का मानना था कि जिसको जो भी मिलता है भाग्य से मिलता है। परिश्रम की कोई भूमिका नहीं होती है। उनके विवाद ने ऐसा उग्र रूप ग्रहण कर लिया कि दोनों को देवराज इन्द्र के पास जाना पड़ा। झगड़ा बहुत ही पेचीदा था इसलिए इन्द्र भी चकरा गए। पुरुषार्थ को वे नहीं मानते जिन्हें भाग्य से ही सब कुछ प्राप्त हो चुका था। दूसरी तरफ अगर भाग्य को बड़ा बताते तो पुरुषार्थ उनका उदाहरण प्रस्तुत करता जिन्होंने मेहनत से सब कुछ अर्जित किया था। इन्द्र असमंजस में पड़ गए और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे। काफी सोचने के बाद उन्हें विक्रमादित्य की याद आई। उन्हें लगा सारे विश्व में इस झगड़े का समाधान सिर्फ वही कर सकते हैं। उन्होंने पुरुषार्थ और भाग्य को विक्रमादित्य के पास जाने के लिए कहा। पुरुषार्थ और भाग्य मानव वेष में विक्रमादित्य के पास चल पड़े। विक्रमादित्य को भी झगड़े का तुरंत कोई समाधान नहीं सूझा। उन्होंने दोनों से छ: महीने बाद आने को कहा। जब वे चले गए तो विक्रमादित्य ने काफी सोचा। समाधान के लिए वे सामान्य जनता के बीच वेष बदलकर घूमने लगे। काफी घूमने के बाद भी जब कोई संतोषजनक हल नहीं खोज पाए तो दूसरे राज्यों में भी घूमने का निर्णय किया। काफी भटकने के बाद भी जब कोई समाधान नहीं निकला तो उन्होंने एक व्यापारी के यहां नौकरी कर ली। व्यापारी ने उन्हें नौकरी उनके यह कहने पर दी कि जो काम दूसरे नहीं कर सकते हैं वे कर देंगे। कुछ दिनों बाद वह व्यापारी जहाज पर अपना माल लादकर दूसरे देशों में व्यापार करने के लिए समुद्री रास्ते से चल पड़ा। अन्य नौकरों के अलावा उसके साथ विक्रमादित्य भी थे। जहाज कुछ ही दूर गया होगा कि भयानक तूफान आ गया। जहाज पर सवार लोगों में भय और हताशा की लहर दौड़ गई। किसी तरह जहाज एक टापू के पास आया और वहां लंगर डाल दिया गया। जब तूफान समाप्त हुआ तो लंगर उठाया जाने लगा। मगर लंगर किसी के उठाए न उठा। अब व्यापारी को याद आया कि विक्रमादित्य ने यह कहकर नौकरी ली थी कि जो कोई न कर सकेगा वे कर देंगे। उसने विक्रम से लंगर उठाने को कहा। लंगर उनसे आसानी से उठ गया। लंगर उठते ही जहाज तेज गति से बढ़ गया लेकिन टापू पर विक्रमादित्य छूट गए। उनकी समझ में नहीं आया क्या किया जाए। द्वीप पर घूमने-फिरने चल पड़े। नगर के द्वार पर एक पट्टिका टंगी थी, जिस पर लिखा था कि वहां की राजकुमारी का विवाह पराक्रमी विक्रमादित्य से ही होगा। वे चलते-चलते महल तक पहुंचे। राजकुमारी उनका परिचय पाकर खुश हुई और दोनों का विवाह हो गया। कुछ समय बाद वे कुछ सेवकों को साथ ले अपने राज्य की ओर चल पड़े। रास्ते में विश्राम के लिए जहां डेरा डाला वहीं एक संन्यासी से उनकी भेंट हुई। संन्यासी ने उन्हें एक माला और एक छड़ी दी। उस माला की दो विशेषताएं थीं- उसे पहनने वाला अदृश्य होकर सब कुछ देख सकता था तथा गले में माला रहने पर उसका हर कार्य सिद्ध हो जाता। छड़ी से उसका मालिक सोने के पूर्व कोई भी आभूषण मांग सकता था। संन्यासी को धन्यवाद देकर विक्रमादित्य अपने राज्य लौटे। एक उद्यान में ठहरकर संग आए सेवकों को वापस भेज दिया तथा अपनी पत्नी को संदेश भिजवाया कि शीघ्र ही वे उसे अपने राज्य बुलवा लेंगे। उद्यान में ही उनकी भेंट एक ब्राह्मण और एक भाट से हुई। वे दोनों काफी समय से उस उद्यान की देखभाल कर रहे थे। उन्हें आशा थी कि उनके राजा कभी उनकी सुध लेंगे तथा उनकी विपन्नता को दूर करेंगे। विक्रमादित्य पसीज गए। उन्होंने संन्यासी वाली माला भाट को तथा छड़ी ब्राह्मण को दे दी। ऐसी अमूल्य चीजें पाकर दोनों धन्य हुए और विक्रम का गुणगान करते हुए चले गए। विक्रम राज दरबार में पहुंचकर अपने कार्य में संलग्न हो गए। छ: मास की अवधि पूरी हुई, तो पुरुषार्थ तथा भाग्य अपने फैसले के लिए उनके पास आए। विक्रमादित्य ने फैस ला दिया कि कि भाग्य और पुरुषार्थ एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्हें छड़ी और माला का उदाहरण याद आया। जो छड़ी और माला उन्हें भाग्य से संन्यासी से प्राप्त हुई थीं। उन्हें ब्राह्मण और भाट ने पुरुषार्थ से प्राप्त किया। पुरुषार्थ और भाग्य पूरी तरह संतुष्ट होकर वहां से चले गए। कहानी सुनाकर पुतली बोली- बोलो राजा, क्या आप में है ऐसा न्यायप्रिय फैसला देने की दक्षता और अमूल्य वस्तुएं दान में देने का ह्रदय और सामर्थ्य? राजा फिर सोच में पड़ गए और तीसरे दिन भी सिंहासन पर नहीं बैठ सके। चौथे दिन चौथी पुतली कामकंदला ने सुनाई विक्रमादित्य की दानवीरता की कथा। ©Jitendra Kumar Som #happyholi तीसरी पुतली चंद्रकला की कहानी
Vickram
WATER please keep the ponds around you clean पानी और जिंदगी का सफर भी एक सा था,, पर पानी तो हमेशा ही काम आया जिंदगी के, कभी जिंदगी बना पानी तो कभी आंसू भी,, तेरे हर काम में अक्सर पानी ही काम आया,, ये शामिल रहा हमेशा खून और पसीने में,, तेरी जिंदगी की हर जरूरत में काम आया,, ये बहता ही रहा जिंदगी के लिए अक्सर,,, इंसान तो खुद के लिए भी कहां जी पाया,, water,, ©Vickram क्रिप्या अपने आस पास के तालाबों को साफ रखें
yogesh atmaram ambawale
हे बाप्पा, जिद्द आमुची अशीच राहू दे, पुन्हा प्रयत्न करून यशस्वी होऊ, आशीर्वाद तुझा कायम राहू दे. जरी नाही जमलं आज, उद्या पुन्हा जवळ येऊ, हे बाप्पा, चंद्राला सांगून दे साथ तुझी चांगली राहू दे. शुभ संध्या मित्र आणि मैत्रिणीनों आताचा विषय आहे चंद्राला सांगून दे... #चंद्राला #collab #yqtaai Best YQ Marathi Quotes पेज ला भेट द्या. तु
K.L. SONKAR
Rohan Roy
बूंदों को तालाब बनते देखा है। तालाबों को दरिया बनते देखा है। दरिया को समंदर बनते देखा है। समुद्र में लहरे उठते देखा है। तुम बूंदों की औकात पूछते हो। ये बूंदे ही तो लहरों का जरिया है। मैंने इन लहरों में, जर्रे-जर्रे को मिलते देखा है। ©Rohan Roy बूंदों को तालाब बनते देखा है। तालाबों को दरिया बनते देखा है | #RohanRoy | #dailymotivation | #inspirdaily | #motivation_for_life | #rohanro
ALOK Sharma
सुनामी तालाबों से नही समंदर से आती है । नदी कितनी भी बड़ी हो इसी में समाती है ।। ©ALOK Sharma...✍️ #सुनामी #तालाबों से नही #समंदर से आती है । #नदी कितनी भी बड़ी हो इसी में समाती है ।। #Ocean #Nojoto #nojotohindi #Sa