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brijesh mehta
................................... .. ©brijesh mehta प्रेम का कोई समानार्थक, प्रायवाची शब्द नहीं है, दुनिया में!
DrRavikirti Didwania
Sound Similar but Meaning Different Challenge People Become Too "Sel-fish" Sailing Somewhere else and Phishing Someone else... #ravikirtikikalamse #selfishworld #yqdidi #yqbaba #nazariya_badlo_janab #phishing #paraya #waqthitujebatayega द्विअर्थी समानार्थी शब्द प्रय
brijesh mehta
तेरे और उनके प्रेम में जमीन आसमान का फर्क है तेरे प्यार में शक है, वहम है, भरोसा नहीं है। तेरा प्यार तुझे बहुत रुलाएगा, बहुत तड़पाएगा। — % & प्यार, प्रेम, विश्वास, भरोसा सब समानार्थी शब्द है। 💞💞 #मंमाधन #brijeshmehta #manmadhan #lovequotes #lifequotes #lovestory
brijesh mehta
प्रेम का कोई समानार्थक, प्रायवाची शब्द ही नहीं, दुनिया में! यह अकथनीय है, इस अवस्था का वर्णन असंभव है। .. ©brijesh mehta प्रेम का कोई समानार्थक, प्रायवाची शब्द ही नहीं, दुनिया में! यह अकथनीय है, इस अवस्था का वर्णन असंभव है। #मंमाधन
Mahesh Patel
सहेली.. तुम्हारी हर एक बात.. हमारे गले से नहीं उतरती.. सहेली बस अब बस कर.. आंखों से इतनी पिलाई अब नहीं उतरती... लाला..... ©Mahesh Patel सहेली.. नहीं उतरती.. लाला..
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
कागज तो होता बस बेजान सा , जान तो उसमें शब्द डालते हैं , शब्दों के लिखते ही , बिखर जाती हैं एक खुशबू , यादों की , वादों की , अहसासों की , पढते ही शब्द सब कुछ चलचित्र सा चलने लगता हैं , आँखों के सामने एक अहसास सा , शब्दों से बनती जाती रचनाएं , हर एक के मन की उथल - पुथल की , वो बातें जो हम कहने मे होते हैं असर्मथ , पुर जाती हैं माला सी वो शब्दों के जरिए , भावों को वय्क्त करते शब्द , कोरे कागज पर रंग बिखरते शब्द । ©Ankur Raaz #शब्दो #की #शक्ति #शब्द
Akber Hussain
ये वादियों में जब मैं फिरता हूँ। दिल-मिजाज़ में तेरा सुरूर दिल मे चढ़ता है।। जैसे तू शाम की रंगीं -फ़िज़ाओं से होकर। मेरी रूह में उतरती है।। ~अकबर~ मेरे रूह में उतरती है
J P Lodhi.
उभरती लकीरें डरी सहमी ज़िंदगियां शीशों के पीछे से झांक रही, वीरान सड़के बंद बाजारों कर्मवीरों को ताक रही। हंसती खेलती ज़िंदगी में वक्त ने डाला क्यों खलल, कमी रह गई थी सिखाने में सिखा रहा वही सबक। खुदा जाने कब तक यूंही बुरे वक़्त का दौर चलेगा, मालूम नही फिर से बिछड़ा हुआ वक्त कब मिलेगा चरमराती जा रही देश और घरों की अर्थ वयवस्था, बन्द हो गया उत्पादन,बढ़ रही हर दिन अव्यवस्था। उभर रही जन मानस के माथे पर चिंता की लकीरें, घटता जा रहा है भंडार खाली होते जा रहे पतीलें। Jp lodhi #उभरती लकीरें