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Shailendra Kumar pathak
संगठन गढ़े चलो,सुपंथ पर बढ़े चलो। भला हो जिसमें देश का, वो काम सब कि ये चलो।। युग के साथ मिल के सब,कदम बढा़ना सीख लो, एकता के स्वर मे गीत, गुनगुनाना सीख लो,भूलकर भी मुख मे, जाति पंथ की न बात हो, भाषा प्रान्त के लिए कभी न रक्त पात हो,फूट का भरा घड़ा है, फोड़ कर बढ़े चलो।। संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो....
Rekha Singh Sisodia
गीतिका आधार छंद - तारासरालगा मापनी - 221 2121 1221 212 समान्त - आती पदांत - रही मुझे शूलों भरी सुराह भी भाती रही मुझे । बन
संगीत कुमार
चीन तू अब सम्भल जा खुद न सर्वशक्तिमान समझ ये तुम जान लो अन्त तेरा हो के रहेगा अब नहीं चलेगी धूर्तता हर हिन्दुस्तानी जाग चुका द्वार तुम्हारे आ जायेगा सब हेकरी तेरा खत्म होगा चालबाज तू शैतान है विश्व का दुश्मन बना हुआ अब तेरा नहीं चलेगा तू नष्ट हो जायेगा बुद्ध को हमने दिया शांति पाठ हमने दिया तुम हिंसा पे उतारु हो ये न अब बर्दाश्त होगा नीचता को त्याग दो श्रेष्ठता को अपना लो धूर्तता तुम छोड़ दो कुपथ को त्याज दो बुद्ध को तुम मानते हो हिंसा को त्याग दो अभी भी सम्भल जा युद्ध को विराम दो © (संगीत कुमार /जबलपुर) ✍🏽स्व-रचित 🙏🙏🌹 चीन तू अब सम्भल जा खुद न सर्वशक्तिमान समझ ये तुम जान लो अन्त तेरा हो के रहेगा अब नहीं चलेगी धूर्तता हर हिन्दुस्तानी जाग चुका द्वार तुम्ह
R.S. Meena
नर और नारी बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। नजर जिस तरफ गई, वहीं पर एक फसाना है ।। हो किसी भी जाति का, पहनावे का ढंग अनोखा है, एक जाति 'नर' है तो 'नारी' को मिला अवसर दूजा है। प्रकृति के बनाये नियमों को देने लगे चुनौती, 'नर' बन गया 'नारी' और 'नारी' भी माँगे मनौती। आजाद हवा से निकले, हर पल एक बहाना है । बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। घटने की जब बात चली तो, नारी ने अपने कदम बढ़ायें, 'नर' को पहनने दो पुरे वस्त्र, वे तो न्यून से ही काम चलायें। सौन्दर्य तो सौन्दर्य है, नहीं चाहिए इसे कम वस्त्र का दिखावा, मर्यादा में हो जब 'नारी' कभी पार ना पाएँ 'नर' का छलावा। नजरों में गिरने से, खुद ही खुद को बचाना है। बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। पाप करे 'नर' और भुगते उसका फल 'नारी' यहाँ, 'नर' की 'साधक' बने तो बने कभी 'बाधक' भारी वहाँ। पुर्ण धवल नहीं दोनों में कोई, है बराबर की भागीदारी, कुपथ पर चलने से रोके, है ये दोनों की निरा जिम्मेदारी। 'नर' और 'नारी' को ही, पथ से कांटो को हटाना है । बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। नर और नारी बदलने की रुत है या बदला हुआ जमाना है। नजर जिस तरफ गई, वहीं पर एक फसाना है ।। हो किसी भी जाति का, पहनावे का ढंग अनोखा है, एक जाति
अज्ञात
जय सियाराम 🙏🙏 ©Rakesh Kumar Soni भाग-2 नेति नेति सब करत बड़ाई कहत सुधा,सुधि कर्ण में जाई..!!21!! निंदक जन भी सहज लजावें परहित काज करत जब पावें..!!22!! नाम रूप सम कर्म प्र