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Mohan Sardarshahari
तेरी खुली जुल्फों से ढका वो चेहरा लगता है जैसे चांद बादलों से घिरा हो तेरे उस चेहरे में ऐसा उलझा मन मेरा जैसे पंखुड़ी में बंद कोई भौंरा हो।। ©Mohan Sardarshahari पंखुड़ी का भौंरा #morningcoffee
Vickram
एक नाटक सा चल रहा था मेरी जिंदगी में हमें मालूम ही नहीं की किरदार कौन सा मिला था,, मैं फिर भी अच्छा निभा रहा था किरदार अपना,, मेरी इस कहानी का सीर्शक भी लापता था ,, ©Vickram नाटक जिंदगी का,,
vinod maurya
इश्क़ का मज़ा कुछ ऐसा है,जैसे होली पर पी कर नाटक करना। जब नशा उतर जाता है तो,इश्क़ का नाटक खत्म हो जाता है। सच्चा इश्क़ होता कहा है,सिर्फ इश्क़ होने का नाटक चलता है। जिसमे किसी एक की ज़िन्दगी बर्बाद होती है। विनोद मौर्य...✍️ इश्क़ का नाटक....
Nee K 07
नहीं होता हमसे अब झूठे प्यार का नाटक , हमेशा के लिए निकल जाओ मेरी जिंदगी से , अब खोल दिए हैं मैने अपने दिल के फाटक । ©N k #प्यार का नाटक
rija shayari
की...... जीश्म हमारा पाने के लिए प्यार करने का झूठा तुम नाटक करते हो जीश्म हमारा खेरात में नहीं बिकता जो तुम लूटने को फिरते हो ।।। ©rija shayari प्यार करने का नाटक
Rajkumar Nagar
नए किरदार, आते जा रहे हैं, मगर नाटक, वहीं पुराना चल रहा है ©Rk Nagar ज़िंदगी का नाटक #Quote
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी शोषण की गाथा ऐसी जनता के हित मारे बैठे है लहू लुहान मुल्क की हालत संवेदना खूंटी पर टाँगे बैठे है जन गण मन गण की गाथाओ का चीरहरण नेता कर बैठे है समाजवाद की व्यवस्थायो को सूली पर चढ़ाये बैठे है खेत खलियान कमाई का जरिया धरती पुत्रो का नीलाम कर बैठे है काले कानूनो का बनता अब भारत शहीद की कुर्बानी को झूठ लाते है आजादी का नाटक है जनता के अरमान सियासी दाव पेचों से घोटे जाते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" आजादी का नाटक है #farmersprotest
Atul Jaolya 'Neilson'
*_पंखुड़ी_* सारी इंसानियत को तोड़ के, निचोड़ के वो आए थे जो थी फूल सी अधखिली सी पंखुड़ी उसे वो दरिंदे नोचने को आए थे रोती रही वो बिलखती रही छटपटाती छूटने को गुड़िया रानी तड़पती रही न दिल पसीजा रोजेदारों का न अल्लाह की याद आई हवस थी बस निगाहों में शर्म ओ हया थी बेच खाई आग बुझी जब हवस की तो तिल तिल कर टुकड़े किए कुछ कर न सकी पंखुड़ी चली गई सपने लिए ये समाज करता है क्यूं इज्ज़त का ये ढोंग धतूरा जब फूल सी बच्ची पल पल बिखरे कोई समेट न पाए उसको पूरा क्या सोचते हो बदल डालो गर बदलना पड़े संविधान को कोई पंखुड़ी फ़िर न हो शिकार बदल डालो इस विधान को - कवि अतुल जौल्या 'Neilson' #पंखुड़ी #कविता #poetry