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Raazkavi

सभ्यता1

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(सभ्यता)

भाग-1
अंधकार की आंधी आई।
 बेशुमार विनाश हुआ।।
 वेद सभ्यता धर्म-कर्म का।
बिल्कुल लुफ्त प्रकाश हुआ।।

 फूट नाम की बीमारी से ।
भाग्य सभी का फूट गया।।
 हिल मिलकर जो रहते थे ।
वह प्यार फर्श पर टूट गया।। सभ्यता1

vibhanshu bhashkar

सभ्यताएँ‼‼
बनती है !! बिगड़ती है !!
हर नई सभ्यता को ,
गुमां होता है,अपने 
आधुनिकता पर!!
चातुर्यता पर!!
भूल जाते है ... 
पिछले सभ्यता के ,विनाश का 
नंगा नाच !!
भूल जाते है...
कि, एक ही होते है
निर्माणकर्ता!! 
विनाशकर्ता!!
भूल जाते है....
मिश्र और नील नदी को
भूल जाते है....
हड़प्पा और सिंधु नदी को
ठीक, उसी तरह,
जिस तरह .....
भूल जाते है...
सियासी गिद्ध !!अपने,
मतदाता या निर्माणकर्ता को,
और विनाश होता है...
उनके सत्ता रूपी...
"सभ्यताओ" का!! #NojotoQuote #सभ्यताएँ...

Vidhi

अच्छे बनो मत
अच्छे दिखो बस
देखो शायद फिर
तुम्हारे भी दिन बहुर जाएं..  #cinemagraph #अच्छेदिन #दिखावा #सफेदपोशी #सभ्यता_का_रहस्य #पूंजीवाद #सामंती_जीवन

Shashi kant Pandey

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Parshant

सभ्यता #nojotophoto

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 सभ्यता

Swapnil

सभ्यता

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जब यूरोपियन अपनी 500 साल पुरानी सभ्यता नही छोड़ सकते तो मेरे भारत तुम अपनी 5000 साल पुरानी सभ्यता केसे छोड़ सकते हो। भारत मत भूलना अपने आदर्श, मत भूलना, सीता, सावित्री, दमयंती, पदमिनी। सभ्यता

Sangam Ki Sargam

बोलना व प्रतिक्रिया देना भी आवश्यक है
परन्तु संयम व सभ्यता का दामन नही छूटना चाहिए।
कोई मेरा लाख बुरा कर दे, मैं बदले की भावना नहीं रखती। #सभ्यता

dilip khan anpadh

सभ्यता
*****
सभ्यता के कुछ बीज
उर्वर ज़मीं पर फेंके थे
आदम और हौवा ने
 उन्हें भनक भी ना लगी
वो कब पनपा
सघन हुआ
और सघन
फिर निगलने लगा
अपने छांव में उगने वाले
तमाम अन्य बिजौद्भव को।
 एक तरफ उसकी सघन छांव में
बंदर से इंसान का सफर तय हुआ
दूसरी तरफ उसकी छांव ने मिटाया
न जाने और कितनी सभ्यताओं को
जो फलित हुआ था
आदम और हौवा जैसे ही
किसी अन्य फरिश्ते से।

आदम और हौवा
दोनो रोए होंगे
जब उसने देखा होगा
तृष्णा,द्वेष और अनिष्ट का फलन
होते उस कल्प-बृक्ष पर
फिर दम तोड़ दिया होगा
और दफन कर दिया होगा
अपने प्रेम चिन्ह को
जो पोषित करते होंगे
ऐसी सभ्यताओं को।
इस आस में
कि इनके बीज से
और न पनप सके
इससे बदतर कुछ और.....

दिलीप कुमार खाँ"""अनपढ़"" #सभ्यता

Sachin Ratnaparkhe

ग़ज़ल
मेरा बोझ है की बस बढ़ता ही जा रहा है,
भरोसा ज़िन्दगी से उतरता ही जा रहा है।

अब रात भी खत्म होने को आई है मगर,
दूर क्षितिज पे सूरज चड़ता ही जा रहा है।

सब कुछ तो हो रहा है नज़रों के सामने,
फिर भी झूठा इतिहास गड़ता ही जा रहा है।

ज़माना बिक चुका अपनी जान की खातिर,
दो कौड़ी में सौदा तय करता ही जा रहा है।

कुछ भी न बचेगा अंत तक इस तरह तो,
सभ्यता का वक्त अब ढलता ही जा रहा है।

की थी नाकामयाब कोशिश सब संभालने की,
मगर मरने वाला भी बेमौत मरता ही जा रहा है। #सभ्यता

Dharmendra Verma

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