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BANDHETIYA OFFICIAL
नश्वर शरीर का ईश्वर ही मालिक ! नाश हुआ तो आप रहे ये मौलिक, आत्मा परमात्मा में हो ऐसे शामिल, परमेश्वर की जोती जैसे साहिल। @ सरोज रंजन ©BANDHETIYA OFFICIAL नश्वर का ईश्वर ! #Goodevening
Yadav Rajveer
सामर्थ कहां था कब मुझमें, जीवन का भार उठा पाता। दुर्गम दुष्कर जीवन पथ में, अपना किरदार निभा पाता। जब तेरे हाथ में सौंप दिया, पतवार हमारी नैया का, तू चाहे भंवर में छोड़ मुझे, या दे दो दिशा किनारा का। ©Yadav Rajveer #भाव #ईश्वर #साधना #शब्द #विचार
Sneh Prem Chand
काश कोई योग गुरु ऐसा भी होता जो हमें ऐसा अनुलोम विलोम करना सिखा देता, जिसमें अंदर सांस लेते हुए संग प्रेम,सौहार्द,अपनत्व और स्नेह ले जाएं, और बाहर सांस छोड़ते हुए अपने भीतर के ईर्ष्या,द्वेष, अहंकार,क्रोध,लोभ,काम सब छोड़ देवें।। दिल की कलम से ©Sneh Prem Chand अनुलोम विलोम #Hope
Mr Vikas Verma
ईश्वर पर विस्वास PART 21 वैद्यजी ने आगे कहा, सँभाला है, ही पाठ पढ़ा है कि सुबह परमात्मा का आभार करो, शाम को अच्छा दिन गुज़रने का आभार करो, खाते समय उसका आभार करो, सोते समय उसका आभार करो। यहाँ तक आप सभी ने बहुत प्रेम दिया आप सभी का तहेदिल से आभार ओर उस परम पिता परमात्मा का सुक्रया की मैं आप सब के साथ इस कहानी को सांझा कर पाया।🙏🏻🙏🏻 ©Mr Vikas Verma ईश्वर पर विस्वास। कहानी के आखरी शब्द। #NojotoRamleela
Umang Ek Nayi Pahal
अगर बढ़ता रहा नारी का इसी तरह दुरुपयोग , वह दिन भी फिर दूर नहीं जब हों जायेगा इस सृष्टि का विलोप । -✍️निकिता रघुवंशी #NojotoQuote विलोप ✍️
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
कागज तो होता बस बेजान सा , जान तो उसमें शब्द डालते हैं , शब्दों के लिखते ही , बिखर जाती हैं एक खुशबू , यादों की , वादों की , अहसासों की , पढते ही शब्द सब कुछ चलचित्र सा चलने लगता हैं , आँखों के सामने एक अहसास सा , शब्दों से बनती जाती रचनाएं , हर एक के मन की उथल - पुथल की , वो बातें जो हम कहने मे होते हैं असर्मथ , पुर जाती हैं माला सी वो शब्दों के जरिए , भावों को वय्क्त करते शब्द , कोरे कागज पर रंग बिखरते शब्द । ©Ankur Raaz #शब्दो #की #शक्ति #शब्द
कलीम शाहजहांपुरी (साहिल)
उसकी रंगत है जैसे कोई खिलता गुलाब, उसकी बातों से टपके इल्हाम की बारिश.! ©कलीम शाहजहांपुरी (साहिल) शायरी ( इल्हाम का अर्थ होता है अल्लाह,ईश्वर का शब्द)
DR. SANJU TRIPATHI
रात-दिन तेरा खयाल बस तेरा इंतजार करते हैं, शाम ओ सवेरे अब हमको नागिन से डसते हैं। सोचा था तन्हाइयां और वीरानियां मिट जाएंगी, जीवन में बस प्यार की महफिलें सज जाएंगी। अमीरी गरीबी ने हमारे बीच में दीवारें उठा दी, हमारे रिश्ते में प्यार की जगह नफरत भर दी। हर मोड़ हर घड़ी हमारा ही था तिरस्कार किया , रख लेते रिश्ते का मान गर तुमने था प्यार किया। विलोम शब्द रात- दिन शाम- सवेरे तनहाई- महफिल अमीरी- गरीबी प्यार- नफरत तिरस्कार -मान