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saurabh
फिर एक आस जगाई तुमने फिर झूठ की कलाई थमाई तुमने हमने मरके जीना अभी ही सीखा था जी जी के मरने की तरकीब बताई तुमने संधि
Shashi Bhushan Mishra
सच से रखूँ राब्ता अपनी ख़बरों की तफ़तीश करूँ, घर के शातिर चोरों से ही पहले मैं दस-बीस करूँ, ख़्वाब करूँ पूरे लकीर मैं खींचूँ बड़ी सफलता की, करूँ ज्ञान संवर्धन हर दिन उन्नीस से इक्कीस करूँ, आजादी का वर्ष पचहत्तर देश नया आयाम गढ़े, अमृत बेला में हो "विकसित राष्ट्र" मुकुट निज शीष धरुँ, हो चहुंमुखी विकास देश अपना समृद्ध बने जग में, बने आत्मनिर्भर भारत यह विनती मैं जगदीश करूँ, ऊँच-नीच का भेद मिटे कर्तव्यपरायण हो जनता, देश-भक्ति का भाव हृदय में जगे यही आशीष करूँ, जन-जन में विश्वास नया पीड़ा हर लूँ मन की 'गुंजन', नई चेतना भरूँ हृदय में ख़ुद को मैं वागीश करूँ, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #ख़ुद को मैं वागीश करूँ#
Ankita Tripathi
..... पैमान-संधि,करार प्यार का खुमार ❤ Note 👉 cheap comments r not allowed 😁 #yqbaba #yqdidi #YoPoWriMo #tpmd #yourquote #merasach #नफ्स़
SURAJ आफताबी
वो भी है कुछ ख़जालत से भरी - भरी मैं भी हूँ कल से अनोखे इज़्तिराब में अब्सारों से यूँ टपक रहा था नशा जैसे घोल दी हो शराब को शबाब में मैं कातिब कुछ अल्फ़ाज़ों से खफ़ा - खफ़ा वो गज़ल मीर की कही गई हो ईशाद में हम भी जागे शब भर इब्तिदा-अ-तअश्शुक में वो भी सोये नहीं पहली मुलाकात के इश्तियाक़ में कौनसा जचेगा आज उन्हें पहरान आयना भी इज़्तिराब में हम भी आयने से पूछ रहे बता कैसे बढ़ायें हाथ इत्तिहाद में बढ़ चले हैं आज़र्दाह कदम एक दूजे की ज़ानिब "आफताब" धक-धक फुवादी सल्तनत की बता रही चन्द लम्हे बचे है इम्तिहान में खजालत - शर्म, हया इज़्तिराब - अधीरता, व्याकुलता इब्तिदा-अ-त'अश्शुक - प्यार की शुरुआत इश्तियाक - चाह इज़्तिराब- बैचेनी इत्तिहाद - संधि, मि