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Prashant Mishra
तवे की 'आखिरी रोटी' का हिस्सेदार चला गया ज़मीं को छोड़करके वो खुदा के द्वार चला गया सुकूँ से सोते थे सब लोग, रात भर जागता था वो हमारे घर का एक अनमोल "पहरेदार" चला गया --प्रशान्त मिश्रा "RIP रॉकी"
Anu Mittal
प्रेम की सबसे खूबसूरत बात यह है कि प्रेम पाने वाले को भी खुशी देता है , और देने वाले को भी ... अनु 'इंदु' अनु मित्तल ' इंदु ' मुहब्बत के नाम
Anu Mittal
ऐसे ही दिन थे कुछ अलसाये हुए... यही मौसम ,और यही मंजर था ऐसे ही शाम के धुंधलके थे... उसके काँधे पे जब मेरा सर था कोई शिकवा न कुछ शिकायत थी यह तो बस इश्क की रिवायत थी... ऐसे ही बेबसी के आलम में साथ छूटा था, हाथ छूटा था उसको खोना ही उसको पाना था उसको खो कर ही हमने जाना था वक्ते रुखसत फ़िर मोड़ मुड़ते हुऐ उसने मुझको जो मुड़ के देखा था खामोश आँखों पे अश्कों का पहरा था न मैंने रोका था न ही वो ठहरा था फ़िर उसने धीरे से ,अनमने मन से उसने जाने को क़दम बढ़ाया था पीठ थी मेरी तरफ़ ,अलविदा के लिये अपने बालों को भी सहलाया था न मैंने रोका था न अलविदा ही कहा वो मुझको मुड़ मुड़ के बस देखता ही रहा..... अनु मित्तल "इंदु " मुहब्बत के नाम अनु मित्तल ' इंदु '
Anu Mittal
बहुत दिनों से तबियत मेरी उदास नहीँ तुम्हारा ग़म भी क्या अब मेरे आस पास नहीँ अज़ब सी आग में जलता है यह बदन मेरा मगर यह क्या कि होंठों पे मेरे प्यास नहीँ तमाम रात अज़ब इँतिशार में गुज़री , तसव्वुरात में दहशत नहीँ,हिरास नहीँ यह औऱ बात कि ग़ाफ़िल नहीँ हूँ मैं उससे वो देख कर भी मुझे मुझसे नाशनास नहीँ गले लगाता हूँ जब भी ख्यालों में उसको कोई कसक नहीँ,सांसें भी बदहवास नहीँ अनु इंदु मुहब्बत के नाम : अनु मित्तल 'इंदु '
Anu Mittal
क्या बताऊं कि इस दिल में है क्या मुकाम तेरा ख़ुद कलामी में भी इस दिल ने लिया नाम तेरा मैं तुझे भूल न पाऊँ , यह सज़ा है मेरी मैं अपने आप से लूँगा , अब इंतकाम तेरा न जाने किससे मुख़ातिब हूँ , अपनी गजलों में लोग कहते हैं कि इनमें है , बस क़याम तेरा मेरे हिज्रों में , विसालों में , मेरे साथ रहो दम ए आख़िर में भी ,लब पर हो फ़क़त नाम तेरा मेरे कातिल , मेरे दिलदार, मसीहा मेरे हरेक शक्ल में , लाज़िम है एहतराम तेरा अनु ' इंदु ' मुहब्बत के नाम अनु मित्तल' इंदु '
Anu Mittal
तुम्हें याद है वो मेरे घर की खिड़की जहां बैठी रहती थी कमसिन सी लड़की किताबों के पीछे वो चेहरा छुपाये अपनी मुहब्बत को, दिल में दबाये तेरी इक झलक को, वो उसका तरसना वो मिलने को तुमसे दिल का तड़पना वो खोई सी आँखें , वो मीठी सी सिहरन न दिल अपने बस में , न काबू में धड़कन वो सोने के दिन थे , वो चांदी की रातें जब आंखों से आंखों की होती थी बातें बहानों से उसका , वो छत पर यूँ आना तुम्हें देख कर भीगी जुल्फें सुखाना वो छोटे से खत में , थीं लम्बी सी बातें सोये से दिन थे वो जागी सी रातें उसे देख कर वो तेरा गुनगुनाना वो गीतों में ही हाल दिल का सुनाना रह रह के नजरों का मिलना मिलाना तुम्हें देख कर उसका नजरें चुराना दिल की वो बातें , वो वादे वो कसमें कुछ भी नहीं था मगर अपने बस में ....... अनु "इंदु " मुहब्बत के नाम ... अनु मित्तल ' इंदु '