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Mrbrand
Parul Sharma
सुविधाओं के हाथों में सिक्कों की खनक मनुष्य को प्राय: बंदर की भाँति नचाती हैं पारुल शर्मा सुविधाओं के हाथों में सिक्कों की खनक मनुष्य को प्राय: बंदर की भाँति नचाती हैं पारुल शर्मा
Ravendra
Dilip kumar Singh
सुविधाओं के महल से निकलना मुश्किल है बुद्ध के पथ पर चलना मुश्किल है तुम कलियुग की मंथरा हो किसी तपस्वी के साथ चलना मुश्किल है हाथ थाम न सकोगी मेरा तुम्हारा यौवन बिखर जायेगा राग थम जायेगा,तन सिहर जायेगा कोशिश तो तुमने बहुत की पर मुझसे तुम्हारा टकराना मुश्किल है तुम जीत जाओ यह तुम्हारा ख्वाब हो सकता है पर सच यह है कि मुझे हराना मुश्किल है सुविधाओं के महल से निकलना मुश्किल है बुद्ध के पथ पर चलना मुश्किल है तुम कलियुग की मंथरा हो किसी तपस्वी के साथ चलना मुश्किल है हाथ थाम न सको
Divyanshu Pathak
Good morning friends हाथ में हाथ मेरे थमा तो जरा हम कदम हमको अपना बना तो जरा रँग दुनिया का तुझको समझ आएगा आँख से अपने पर्दा हटा तो जरा कद छोटा सभी का क्यूं दिखता तुम्हें है खड़ा तू कहाँ, ये बता तोजरा लोग हो जाएंगे तेरे अपने सभी तू अपना किसी को बना तो जरा सुनते रहते हैं जिनको सुनाता है तू खुद को खुद की कभी तू सुना तो जरा पास आ जाएगी मंजिलें भी सभी तेज अपने कदम तू चला तो जरा तुम करोगे ना शिकवा गिला कोई भी दर्द में खुद को जीना सिखातो जरा तुमको दिखती है सारे जहां में कमी खुद में हैं कितनी कमियाँ गिना तो जरा अपने स्वतंत्र अस्तित्व को समझने के लिए चिरकाल से लोगों ने प्रयास किए। नई-नई तकनीकों के विकास के आधार पर नए आयामों का स्थापन किया। विज्ञान और
Satya Prakash Upadhyay
DeenDayalUpadhyay, यहाँ भारत में नया क्या हो रहा है? जैसा हमेशा होता आया, समय के साथ परिवर्तन है। आधुनिकता के होड़ में ,विकास की परिभाषा बस नूतन है। पीढ़ियों की विरासत को भूल,सीमित संसाधन भरोसे जीवन है। आक्रामकता के आगे मर्यादा,बड़ी व्यथित और मौन है। धर्म,नाम और धाम के साथ, हो रहा अब मन परिवर्तित। संस्कृति और समाज की क्या,अब हो रहे लिंग परिवर्तित। बस अपनी सुध रखने को जब,अफ़सर के हों ज़मीर परिवर्तित। झूठे को तू झूठा मत कहना,हो रहे जज व फैसले परिवर्तित। अपनी वासना को पूरा करने,हो रहे संगी परिवर्तित। सुविधाओं के सुर में भूले,हो गई जलवायु परिवर्तित। बुद्धिजीवी,समाजसेवियों के खाता की राशि परिवर्तित। नेताओं के अपराधों की अब,हो गई दफ़ा परिवर्तित। अविवेकपूर्ण पश्चात्यता का,अनुसरण करना महंगा पड़ गया। जो हिस्सा था जीवन का अपने,उनका पेटेन्ट विदेशों को गया। कूटनीति का शिकार हुए और,अब भी चाहते हैं उनसे दया। शौर्य,ज्ञान और पराक्रम से फिर बनाएंगे सोने की चिड़िया। नया क्या हो रहा है? जैसा हमेशा होता आया, समय के साथ परिवर्तन है। आधुनिकता के होड़ में ,विकास की परिभाषा बस नूतन है। पीढ़ियों की विरासत को भूल,
Anamika Nautiyal
आज यौं डोखरा पुंगड़ा मां फिर रंगत ऐगी यौं सूना पड्या घरों मां फिर हल्ला-गुल्ला व्हैगी कुछ ना व्है त ईं बीमारी न लोग त अपड़ा उब पैटाई धै लगाण बुलाणी रै य धरती अब त कुछ समझ आई जौं छोड़-कुड़ी छोड़ी तुम जै न आज विपदा मां वखी तुमुन शरण पाई हे! मेरा नौन्यालों अब ना जाए छोड़ी क मिथैं तुमारा औण न मेरी आस जगाई गढ़वाली बोली में रची गई मेरी द्वारा दूसरी कविता हिंदी अनुवाद आज इन बंजर पड़े हुए खेतों मैं फिर से हरियाली छा गई है इन सूने पड़े घरों में
Jai Prakash Verma
जिसको मिलती है जितनी सुविधा उसको रहती हैं उतनी दुविधा (पूरा लेख अनुशीर्षक में पढ़े) देवियों और सज्जनों कुछ दिनों से हम सभी लोग अपने घरों में कैद है तमाम सुख साधनों के होते हुए भी जैसे Chill करने के लिए Netflix है आराम करने क
my story_61
Ghanish kaushik
आज ना कोई धर्म है ना जात है सिर्फ प्रकृति की ही बात है नहीं सजो के रखा प्रकृति को तभी तो आई ये काली रात है प्रकृति हमें कुछ नहीं कहती है ,सब दुःख अकेले ही सहती, विनाश करता रहा मानव, अब मिली उसे भी विनाश की सौगात है आज ना कोई धर्म है ना जात है सिर्फ प्रकृति की ही बात है मानव प्रदूषण करता प्रकृति रोती ,अपनी वास्तविक छवि रोज है खोती. हजारों जंगल जलते पशु पक्षी मरते ,दुनिया देख कर भी सोती. मानव समझ नहीं पाया दर्द केद पक्षियों का, तभी तो मिली हमें यह एकांतवास है. आज ना कोई धर्म है ना जात है सिर्फ प्रकृति की ही बात है आज पैसों ओर सुविधाओं के पीछे मानव को अंधा कर दिया ,ओर मानव ने प्रकृति का धंधा कर दिया. मानव ने प्रकृति को यू लंगड़ा कर दिया , सुंदर सी प्रकृति में प्लास्टिक भर दिया. इतना कुछ सहन कर के भी ,प्रकृति मानव का दे रही साथ है . आज ना कोई धर्म है ना जात है सिर्फ प्रकृति की ही बात है. अब मानव को फिर से प्रकृति प्रेमी होना होगा, प्रकृति को भी उसका हक देना होगा. निर्दोष जीवो की हत्या ओर मांस को छोड़ना होगा, प्रकृति को ही अपना भगवान मानना होगा. नहीं समझे अब भी तो यह एक दिन होना मानवों का भी विनाश है . आज ना कोई धर्म है ना जात है सिर्फ प्रकृति की ही बात है. आज ना कोई धर्म है ना जात है सिर्फ प्रकृति की ही बात है नहीं सजो के रखा प्रकृति को तभी तो आई ये काली रात है प्रकृति हमें कुछ नहीं कहती है ,सब