Nojoto: Largest Storytelling Platform

New दीर्घकालीन जीवन यापन Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about दीर्घकालीन जीवन यापन from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, दीर्घकालीन जीवन यापन.

    PopularLatestVideo
12d3626958e935e509d0e04a8e2c1157

MD Prince

ढोंग से नही ढंग से जीवन यापन कर

ढोंग से नही ढंग से जीवन यापन कर #जानकारी

27 Views

7b66abe8aad18a87d4e236b203e4c14f

Ek villain

जीवन यापन भी एक युद्ध के समान ही तो है जिसमें हर पल हार और जीत का सामना करना पड़ता है मन फिर भी अंधेरा रहता है हर पल मनुष्य कितने ही अंतर दूध से जो तू जीता रहे दूसरों से प्रेम अपेक्षा क्रोध गली निशा अपमान और शुभ आदि के लेनदेन में ना जाने कब तक युद्ध स्तर पर संघर्ष रहता है लेकिन अंत में उसे खुद को ईश्वर के हाथों छोड़ देना होता है सत्य यही है कि यदि ऐसे युद्ध से मुक्ति चाहे तो ईश्वर का स्मरण ही सही मार्ग दिखाता है इससे मन की शांति और संतोष का मार्ग खुल पाता है वास्तव में अध्यात्मा का मार्गो से सुरंग की भांति होता है

©Ek villain #WinterSunset  जीवन यापन करना है तो किसी से युद्ध मत करो योद्धा बनो

#WinterSunset जीवन यापन करना है तो किसी से युद्ध मत करो योद्धा बनो #Society

12 Love

059308850f755107c55a57dfa91fc7bc

Amit Kumar

 नयापन

नयापन #nojotophoto

6 Love

5ff37f34e5fc33b59b3ed65641ca05f7

Motivational indar jeet guru

जीवन दर्शन 🌹
अध्यात्म मार्ग के पथिक अपनी उपासना साधना और आराधना के प्रति निष्ठावान होकर ही जीवन यापन करते हैं  !.i. j

©motivationl indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹
अध्यात्म मार्ग के पथिक अपनी उपासना साधना और आराधना के प्रति निष्ठावान होकर ही जीवन यापन करते हैं  !.i. j

#जीवन दर्शन 🌹 अध्यात्म मार्ग के पथिक अपनी उपासना साधना और आराधना के प्रति निष्ठावान होकर ही जीवन यापन करते हैं !.i. j #Thoughts

3 Love

493213d7e5b0de42eab1796de8442ef7

नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)

जीव और जीवन
जीव वह अलौकिक ईश्वरीय अंश है जो शरीर को गति प्रदान करता है। जब तक वह अलौकिक ईश्वरीय अंश
शरीर में रहता है तबतक शरीर को जीवित और नहीं रहने
पर मृत माना जाता है। किसी भी शरीर में जीव के आने से लेकर जीव का शरीर से जाने तक के काल को जीवन
कहा जाता है। चुकी जीव ईश्वर का एक छोटा सा अंश है
इसीलिए  वह अमर है और जीव के बिना शरीर का अस्तित्व मिट जाता है इसलिए उसे नश्वर कहा जाता है। सही मायने में देखा जाय तो शरीर सुख और दुःख भोगने
का साधन है। कष्ट या सुख शरीर को नहीं जीव को होता है। कर्मों के हिसाब से ही जीव सुख या कष्ट भोगता है। जीव को आत्मा भी कहा जाता है और अनंत आत्माएं
जिस में विलीन हो जाती हैं उसे परमात्मा कहा जाता है।

©नागेंद्र किशोर सिंह
  #जीव और जीवन

#जीव और जीवन #विचार

444 Views

d6737c94bed331f7e00d0af325c4815b

Neeraj Vishwkarma

जीवन कितना छोटा सा लगता है 
जीवन की इन बड़ी बड़ी जरूरतों के आगे । 
 जीव का जीवन

जीव का जीवन

0 Love

066811aab7a3e073fd1b62ee2f65b250

vaishnavi chingale

एकांतात रडणारा माणूस चार चौघात नेहमीच हसत  असतो..... #एकांत #रडणे #हसणे#जीवन#जिवन
7247cd8b839a982fbcd40afdb47192a8

KK Mishra

 चन्द्र यान

चन्द्र यान #nojotophoto

2 Love

f9002252d9922385c853590ebed6e46b

ashwanishalya

#आजाद 
आपकी आंखों में आंसू होंगे जब आप सुनेंगे चंद्र शेखर आजाद जी की मां को कैसे जीवन यापन करना पड़ा

#myvoice

#आजाद आपकी आंखों में आंसू होंगे जब आप सुनेंगे चंद्र शेखर आजाद जी की मां को कैसे जीवन यापन करना पड़ा #myvoice #कविता

97 Views

806b1b78f7d96a26424387e94537fa70

अदिती मनुलालजी अग्रवाल श्रीकृष्णर्पनमस्तु ॐ शांति शांति ॐ

जीव+वन=जीवन Kamlesh Kandpal

जीव+वन=जीवन Kamlesh Kandpal #विचार

37,145 Views

ae3e1d2a4e614feb1c0d391f4c946cec

Deepak Kurai

गौतम बुद्ध 

यह एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ।

 इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय
 क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। 
 उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका
 इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन
 महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। 
29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम
 नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर
 संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य
 दिव्य
 ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की
 ओर चले गए । 
 वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि
 वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से
 भगवान बुद्ध बन गए।

कई ग्रंथों में यह मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है.

©Deepak Kurai #BuddhaPurnima2021 

गौतम बुद्ध की जीवनी
#जीवन

#BuddhaPurnima2021 गौतम बुद्ध की जीवनी #जीवन #विचार

37 Love

87209b0448606cb488455d90cfa96bdb

UTKARSH DWIVEDI

नयापन - उत्कर्ष वर्धन द्विवेदी

नयापन - उत्कर्ष वर्धन द्विवेदी

5,808 Views

b3d973517a3f194a21a1391db5db067b

Dr Vijendra Vishal

#ourstory 
#DrVijendraVishal
#नईसुबह
#नयापन
179300e27843c8bb92d6a7af11c700f9

SUNIL SAXENA SIWAN

लॉक डाउन से एक सीख मिली है, 
जीवन यापन के खर्च तो बेहद कम है !
सिर्फ लाइफस्टाइल ओर दिखावा
 ही खर्चीला होता है!! 
- Sunil Saxena लॉक डाउन से एक सीख मिली है, 
जीवन यापन के खर्च तो बेहद कम है !
सिर्फ लाइफस्टाइल ओर दिखावा ही खर्चीला होता है!!!

लॉक डाउन से एक सीख मिली है, जीवन यापन के खर्च तो बेहद कम है ! सिर्फ लाइफस्टाइल ओर दिखावा ही खर्चीला होता है!!! #विचार

6 Love

68e9524901c7a0916a83649cf1409a54

Rajni Sardana

हाँ.. पानी की मुझे है तलाश
और मन में है अभी भी विश्वास
अभी भी दुनियाँ में इंसानियत है जिंदा
सुनो.. भर रखना एक प्याला पानी का
बेहाल है प्यास से हर परिंदा

©Rajni Sardana
  #परिंदा #paani #प्यास #इंसानियत#जीव #जीवन
07f666402efb8c77bb681602dc4bc880

Vicky Yadav

जी हां थोड़ा इंतजार करो चंद्र देव हम फिर आएंगे,
जो ठाना है कर दिखाएंगे
माना थोड़ी चूक होगई,
मगर सीखने की और भूख होगई,
वो हर तकनीक हमारी थी,
कुछ नई कुछ पुरानी थी,
दुनियां ने फिर भी यह मान लिया है,
भारत के ताकत को पहचान लिया है,
विक्रम लेंडर पूरी तरह सुरक्षित है,
हम गुरुकुल से यूनिवर्सिटी तक शिक्षित है,
अबकी कदम हम अंगद वाला जमाएंगे,
जी हां थोड़ा इंतज़ार करो चंद्र देव हम फिर आएंगे।
विक्की यादव "शौर्य" चंद्र यान 2

चंद्र यान 2

4 Love

9cb56c3700392517f331a68b5c416b61

Meena Ji

@₹##@ चंद्र यान 3 ₹₹#@#

@₹##@ चंद्र यान 3 ₹₹#@# #Poetry

27 Views

4439c69bb5bcd47b4f90a11fb77d6462

शिव झा

17 जुलाई/जन्म दिवस  
*भारतीयता के सेतुबंध बालेश्वर अग्रवाल*

भारतीय पत्र जगत में नये युग के प्रवर्तक श्री बालेश्वर अग्रवाल का जन्म 17 जुलाई, 1921 को उड़ीसा के बालासोर (बालेश्वर) में जेल अधीक्षक श्री नारायण प्रसाद अग्रवाल एवं श्रीमती प्रभादेवी के घर में हुआ था।  

बिहार में हजारीबाग से इंटर उत्तीर्ण कर उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. (इंजिनियरिंग) की उपाधि ली तथा डालमिया नगर की रोहतास  इंडस्ट्री में काम करने लगे। यद्यपि छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आकर वे अविवाहित रहकर देशसेवा का व्रत अपना चुके थे।

1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर उन्हें गिरफ्तार कर पहले आरा और फिर हजारीबाग जेल में रखा गया। छह महीने बाद रिहा होकर वे काम पर गये ही थे कि सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया। अतः वे भूमिगत होकर संघर्ष करने लगे। उन्हें पटना से प्रकाशित ‘प्रवर्तक पत्र’ के सम्पादन का काम दिया गया।

बालेश्वर जी की रुचि पत्रकारिता में थी। स्वाधीनता के बाद भी इस क्षेत्र में अंग्रेजी के हावी होने से वे बहुत दुखी थे। भारतीय भाषाओं के पत्र अंग्रेजी समाचारों का अनुवाद कर उन्हें ही छाप देते थे। ऐसे में संघ के प्रयास से 1951 में भारतीय भाषाओं में समाचार देने वाली ‘हिन्दुस्थान समाचार’ नामक संवाद संस्था का जन्म हुआ। दादा साहब आप्टे और नारायण राव तर्टे जैसे वरिष्ठ प्रचारकों के साथ बालेश्वर जी भी प्रारम्भ से ही उससे जुड़ गये।

इससे भारतीय पत्रों में केवल अनुवाद कार्य तक सीमित संवाददाता अब मौलिक लेखन, सम्पादन तथा समाचार संकलन में समय लगाने लगे। इस प्रकार हर भाषा में काम करने वाली पत्रकारों की नयी पीढ़ी तैयार हुई। ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को व्यापारिक संस्था की बजाय ‘सहकारी संस्था’ बनाया गया, जिससे यह देशी या विदेशी पूंजी के दबाव से मुक्त होकर काम कर सके। 

उन दिनों सभी पत्रों के कार्यालयों में अंग्रेजी के ही दूरमुद्रक (टेलीप्रिंटर) होते थे। बालेश्वर जी के प्रयास से नागरी लिपि के दूरमुद्रक का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। तत्कालीन संचार मंत्री श्री जगजीवन राम ने दिल्ली में तथा राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने पटना में इसका एक साथ उद्घाटन किया। भारतीय समाचार जगत में यह एक क्रांतिकारी कदम था, जिसके दूरगामी परिणाम हुए। 

आपातकाल में इंदिरा गांधी ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ पर ताले डलवा दिये; पर बालेश्वर जी शान्त नहीं बैठे। भारत-नेपाल मैत्री संघ, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा अन्तरराष्ट्रीय सहयोग न्यास आदि के माध्यम से वे विदेशस्थ भारतीयों से सम्पर्क में लग गये। कालान्तर में बालेश्वर जी तथा ये सभी संस्थाएं प्रवासी भारतीयों और भारत के बीच एक मजबूत सेतु बन गयी।

वर्ष 1998 में उन्होंने विदेशों में बसे भारतवंशी सांसदों का तथा 2000 में ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन’ किया। प्रतिवर्ष नौ जनवरी को मनाये जाने वाले ‘प्रवासी दिवस’ की कल्पना भी उनकी ही ही थी। प्रवासियों की सुविधा के लिए उन्होंने दिल्ली में ‘प्रवासी भवन’ बनवाया। वे विदेशस्थ भारतवंशियों के संगठन और कल्याण में सक्रिय लोगों को सम्मानित भी करते थे। जिन देशों में भारतीय मूल के लोगों की बहुलता है, वहां उन्हें भारतीय राजदूत से भी अधिक सम्मान मिलता था। कई राज्याध्यक्ष उन्हें अपने परिवार का ही सदस्य मानते थे। 

‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के प्रतिरूप बालेश्वर जी का न निजी परिवार था और न घर। अनुशासन और समयपालन के प्रति वे सदा सजग रहते थे। देश और विदेश की अनेक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया था। जीवन का अधिकांश समय प्रवास में बिताने के बाद वृद्धावस्था में वे ‘प्रवासी भवन’ में ही रहते हुए विदेशस्थ भारतीयों के हितचिंतन में लगे रहे। 23 मई, 2013 को 92 वर्ष की आयु में भारतीयता के सेतुबंध का यह महत्वपूर्ण स्तम्भ टूट गया। 

(संदर्भ : हिन्दू चेतना 16.8.10/प्रलयंकर 24.5.13/पांचजन्य 2.6.13) #जीवन #जीवनी #साहित्य #भारतीय #इतिहास #राष्ट्रीय #राष्ट्रीय_स्वयंसेवक_संघ 

#IndiaLoveNojoto
1c9e7fc5edb1c39243aba76156f741bf

भरतसिंह राठौङ

चन्द्र यान -3 लोन्च

चन्द्र यान -3 लोन्च #न्यूज़

68 Views

fdd7e950418d66bfac323774cc66613f

Kavi Himanshu Pandey

#NojotoHindi चन्द्र यान 3

Hindi चन्द्र यान 3 #Poetry #nojotohindi

2,305 Views

8d54cc5bace10447a7a0291cd91ce9f2

Vinod Mishra

"मित्रता एक दीर्घकालिक इत्र है."
   @विनोद कुमार मिश्र प्रवक्ता अंग्रजी

"मित्रता एक दीर्घकालिक इत्र है." @विनोद कुमार मिश्र प्रवक्ता अंग्रजी #विचार

47 Views

eaec071087c33c08bb01daf36029d583

अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज

*आज का नयापन #ओ पीपल के पीले पत्ते#* 

ओ पीपल के पीले पत्ते तुझको झड़ना होगा एक दिन,

जीर्ण शीर्ण दुषित सी है तेरी काया तुझको संडना होगा एक दिन।

नव कोंपल के जन्म आगमन में तुमको गिरना होगा एक दिन,

बहुत हुआ पुरातन का नंगा नाच , तुझको जलना होगा एक दिन,

काल चक्र के फेरो में  बड़े बड़े भुपो के प्रासाद उजाड़ दिये , 

विश्व नया है लोग नये सोच नयी चाहता है हर मन।   
         *राहुल* *आरेज* नयापन ओ पीपल के पीले पत्ते

नयापन ओ पीपल के पीले पत्ते #कविता

2 Love

2b6a3df1bd13999bd03c568b545af044

Ankita Tripathi

कब तक बेंचते रहोगे अपने सपनों को
कभी इन्हें संजों के देखो बड़ी खुशी मिलती है 
     नयापन #YQbaba #YQdidi #YoPoWriMo #tpmd #_qb

1 Love

5998fff945aba460e6383c21e44f9dc1

Krish Vj

चिंतन:_ जीवन और मृत्यु            मानव जीवन कर्म पर आधारित है। जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है । जीवन और मृत्यु एक सिक्के के दो पहलू है, अर्थात "प्रारंभ

मानव जीवन कर्म पर आधारित है। जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है । जीवन और मृत्यु एक सिक्के के दो पहलू है, अर्थात "प्रारंभ #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kkpc16 #अल्फाज_ए_कृष्णा

0 Love

4439c69bb5bcd47b4f90a11fb77d6462

शिव झा

7 अगस्त/जन्म-दिवस
पुरातत्ववेत्ता  : डा. वासुदेवशरण अग्रवाल

ऐतिहासिक मान्यताओं को पुष्ट एवं प्रमाणित करने में पुरातत्व का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। सात अगस्त, 1904 को ग्राम खेड़ा (जिला हापुड़, उ.प्र) में जन्मे डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ऐसे ही एक मनीषी थे,जिन्होंने अपने शोध से भारतीय इतिहास की अनेक मान्यताओं को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया।

वासुदेव शरण जी ने 1925 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से कक्षा 12 की परीक्षा प्रथम श्रेणी में तथा राजकीय विद्यालय से संस्कृत की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा देखकर उनकी प्रथम श्रेणी की बी.ए की डिग्री पर मालवीय जी ने स्वयं हस्ताक्षर किये। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम.ए. तथा कानून की उपाधियाँ प्राप्त कीं। इस काल में उन्हें प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डा. राधाकुमुद मुखर्जी का अत्यन्त स्नेह मिला।

कुछ समय उन्होंने वकालत तथा घरेलू व्यापार भी किया; पर अन्ततः डा. मुखर्जी के आग्रह पर वे मथुरा संग्रहालय से जुड़ गये। वासुदेव जी ने रुचि लेकर उसे व्यवस्थित किया। इसके बाद उन्हें लखनऊ प्रान्तीय संग्रहालय भेजा गया, जो अपनी अव्यवस्था के कारण मुर्दा अजायबघर कहलाता था।

1941 में उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय ने पाणिनी पर शोध के लिए पी-एच.डी की उपाधि दी। 1946 में भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख डा0 मार्टिमर व्हीलर ने मध्य एशिया से प्राप्त सामग्री का संग्रहालय दिल्ली में बनाया और उसकी जिम्मेदारी डा0 वासुदेव शरण जी को दी। 1947 के बाद दिल्ली में राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय स्थापित कर इसका काम भी उन्हें ही सौंपा गया। उन्होंने कुछ ही समय बाद दिल्ली में एक सफल प्रदर्शिनी का आयोजन किया। इससे उनकी प्रसिद्धि देश ही नहीं, तो विदेशों तक फैल गयी।

पर दिल्ली में डा. व्हीलर तथा उनके उत्तराधिकारी डा. चक्रवर्ती से उनके मतभेद हो गये और 1951 में वे राजकीय सेवा छोड़कर काशी विश्वविद्यालय के नवस्थापित पुरातत्व विभाग में आ गये। यहाँ उन्होंने‘कालिज ऑफ़ इंडोलोजी’ स्थापित किया। यहीं रहते हुए उन्होंने हिन्दी तथा अंग्रेजी में लगभग 50 ग्रन्थों की रचना की। 

इनमें भारतीय कला, हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन, मेघदूत: एक सांस्कृतिक अध्ययन, कादम्बरी: एक सांस्कृतिक अध्ययन, जायसी पद्मावत संजीवनी व्याख्या, कीर्तिलता संजीवनी व्याख्या, गीता नवनीत,उपनिषद नवनीत तथा अंग्रेजी में शिव महादेव: दि ग्रेट ग१ड, स्टडीज इन इंडियन आर्ट.. आदि प्रमुख हैं।

डा. वासुदेवशरण अग्रवाल की मान्यता थी कि भारतीय संस्कृति ग्राम्य जीवन में रची-बसी लोक संस्कृति है। अतः उन्होंने जनपदीय संस्कृति, लोकभाषा, मुहावरे आदि पर शोध के लिए छात्रों को प्रेरित किया। इससे हजारों लोकोक्तियाँ तथा गाँवों में प्रचलित अर्थ गम्भीर वाक्यों का संरक्षण तथा पुनरुद्धार हुआ। उनके काशी आने से रायकृष्ण दास के ‘भारत कला भवन’ का भी विकास हुआ।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के वंशज डा. मोतीचन्द्र तथा डा. वासुदेव शरण के संयुक्त प्रयास से इतिहास, कला तथा संस्कृति सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए। उनकी प्रेरणा से ही डा. मोतीचन्द्र ने ‘काशी का इतिहास’जैसा महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा। वासुदेव जी मधुमेह से पीड़ित होने के बावजूद अध्ययन, अध्यापन, शोध और निर्देशन में लगे रहते थे। इसी रोग के कारण 27 जुलाई 1966 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अस्पताल में उनका निधन हुआ। #जीवनी #जन्मदिन #इतिहास #जीवनअनुभव #जीवन #भारतीय #History #BirthDay 

#InspireThroughWriting
6158c0be9dc61b90fad6bf50a1319824

Shankar Kamble

*भावार्थ काय शोधू आयुष्य वेचताना भाग्य इतुके लाभले मज भाव कोवळे जपताना* ...

 *लवलेश ना लयाचा आरंभ अंत पार* 
 *हसऱ्यां फुलांसवे मी नितं स्वच्छंदी रमताना* ...

 *उकलली मनाच्या खोल तळाशी* *खूणगाठ बांधलेली* 
 *शहाण्यांच्या जगात वेडा मी एक हासताना* ...

 *सांज होता उडून गेले पंख पसरूनी* *क्षण निसटले* 
 *कशास गुंता उगा सोडवू शांत स्तब्ध मी खग बघताना* ...

 *जीवनरस हा नितं प्रवाहित खंड त्याला कदा नसे* 
 *सुखदुःखाचे गरळ पचवूनी प्रवाही स्वैर तो वाहताना...*

©Shankar Kamble #आयुष्य #जीवन #जीवनअनुभव #जगणे_येथे_महाग_झाले #जीवनगाणे #जीव #आयुष्य_जगताना 
#Drown
4439c69bb5bcd47b4f90a11fb77d6462

शिव झा

8 अगस्त/राज्याभिषेक-दिवस
*प्रतापी राजा कृष्णदेव राय*

एक के बाद एक लगातार हमले कर विदेशी मुस्लिमों ने भारत के उत्तर में अपनी जड़ंे जमा ली थीं। अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर को एक बड़ी सेना देकर दक्षिण भारत जीतने के लिए भेजा। 1306 से 1315 ई. तक इसने दक्षिण में भारी विनाश किया। ऐसी विकट परिस्थिति में हरिहर और बुक्का राय नामक दो वीर भाइयों ने 1336 में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। 

इन दोनों को बलात् मुसलमान बना लिया गया था; पर माधवाचार्य ने इन्हें वापस हिन्दू धर्म में लाकर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना करायी। लगातार युद्धरत रहने के बाद भी यह राज्य विश्व के सर्वाधिक धनी और शक्तिशाली राज्यों में गिना जाता था। इस राज्य के सबसे प्रतापी राजा हुए कृष्णदेव राय। उनका राज्याभिषेक 8 अगस्त, 1509 को हुआ था।

महाराजा कृष्णदेव राय हिन्दू परम्परा का पोषण करने वाले लोकप्रिय सम्राट थे। उन्होंने अपने राज्य में हिन्दू एकता को बढ़ावा दिया। वे स्वयं वैष्णव पन्थ को मानते थे; पर उनके राज्य में सब पन्थों के विद्वानों का आदर होता था। सबको अपने मत के अनुसार पूजा करने की छूट थी। उनके काल में भ्रमण करने आये विदेशी यात्रियों ने अपने वृत्तान्तों में विजयनगर साम्राज्य की भरपूर प्रशंसा की है। इनमें पुर्तगाली यात्री डोमिंगेज पेइज प्रमुख है।

महाराजा कृष्णदेव राय ने अपने राज्य में आन्तरिक सुधारों को बढ़ावा दिया। शासन व्यवस्था को सुदृढ़ बनाकर तथा राजस्व व्यवस्था में सुधार कर उन्होंने राज्य को आर्थिक दृष्टि से सबल और समर्थ बनाया। विदेशी और विधर्मी हमलावरों का संकट राज्य पर सदा बना रहता था, अतः उन्होंने एक विशाल और तीव्रगामी सेना का निर्माण किया। इसमें सात लाख पैदल, 22,000 घुड़सवार और 651 हाथी थे।

महाराजा कृष्णदेव राय को अपने शासनकाल में सबसे पहले बहमनी सुल्तान महमूद शाह के आक्रमण का सामना करना पड़ा। महमूद शाह ने इस युद्ध को ‘जेहाद’ कह कर सैनिकों में मजहबी उन्माद भर दिया; पर कृष्णदेव राय ने ऐसा भीषण हमला किया कि महमूद शाह और उसकी सेना सिर पर पाँव रखकर भागी। इसके बाद उन्होंने कृष्णा और तुंगभद्रा नदी के मध्य भाग पर अधिकार कर लिया। महाराजा की एक विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने जीवन में लड़े गये हर युद्ध में विजय प्राप्त की।

महमूद शाह की ओर से निश्चिन्त होकर राजा कृष्णदेव राय ने उड़ीसा राज्य को अपने प्रभाव क्षेत्र में लिया और वहाँ के शासक को अपना मित्र बना लिया। 1520 में उन्होंने बीजापुर पर आक्रमण कर सुल्तान यूसुफ आदिलशाह को बुरी तरह पराजित किया। उन्होंने गुलबर्गा के मजबूत किले को भी ध्वस्त कर आदिलशाह की कमर तोड़ दी। इन विजयों से सम्पूर्ण दक्षिण भारत में कृष्णदेव राय और हिन्दू धर्म के शौर्य की धाक जम गयी।

महाराजा के राज्य की सीमाएँ पूर्व में विशाखापट्टनम, पश्चिम में कोंकण और दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप के अन्तिम छोर तक पहुँच गयी थीं। हिन्द महासागर में स्थित कुछ द्वीप भी उनका आधिपत्य स्वीकार करते थे। राजा द्वारा लिखित ‘आमुक्त माल्यदा’ नामक तेलुगू ग्रन्थ प्रसिद्ध है। राज्य में सर्वत्र शान्ति एवं सुव्यवस्था के कारण व्यापार और कलाओं का वहाँ खूब विकास हुआ।

उन्होंने विजयनगर में भव्य राम मन्दिर तथा हजार मन्दिर (हजार खम्भों वाले मन्दिर) का निर्माण कराया। ऐसे वीर एवं न्यायप्रिय शासक को हम प्रतिदिन एकात्मता स्तोत्र में श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। #जीवनी #राजा #अभिषेक #राज्यभिषेक #इतिहास #साहित्य #भारत #जीवन #राज #स्मरण
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile