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Rashmi Vats
Holi is a popular and significant Hindu festival celebrated as the Festival of Colours, Love, and Spring. रिमझिम रिमझिम बरसे फुहार। भीगे भुवन पाकर नेह अपार। पुलकित हो जाए निर्जन वन, मोर, पपीहे गाएं गीत मल्हार। पड़े फुहार ऐसी अंतर्मन। वरण हो जाए वेदना और क्रंदन । नर्तन करे मन तरंग, पूर्ण हो जाएं कल्पनाओं के रंग। रश्मि वत्स। ©Rashmi Vats #रंग #फुहार
Tarakeshwar Dubey
फुहार """""""' झिमिर-झिमिर पड़े रेशमी फुहार, सखि सब चलु मल्हार गावे। दुअरा पर गमके बेला, कचनार, सखि सब चलु मल्हार गावे। सुनु ए सखी सब परसो के बतिया, राधा रानी के अइले संहतिया। वगिया मे झूला पड़े कदम के दारि, सखि सब चलु मल्हार गावे। धरती के चुनर भईल बा धानी, उमड़-उमड़ बहे सरयू के पानी। वंशी के धुन डोले गोकुल के नारि, सखि सब चलु मल्हार गावे। रुनझुन-रुनझुन नाचेले गइया, चीं-चीं-चीं-चीं चहके वन के चिरइया। गोपियन सजी सब सोलहो श्रृंगार, सखि सब चलु मल्हार गावे। ©Tarakeshwar Dubey फुहार #fourlinepoetry
vinay vishwasi
आज का दोहा दिनांक - ०७/०७/२०२० सावन में पड़ने लगी,रिमझिम मस्त फुहार। उपवन में छाने लगी, फिर से नई बहार।।८३।। #दोहा #फुहार #विश्वासी
Anamika
गरमी तपती धूप में, फुहार की कुछ बूंदें... मन को तृप्त कर, चहेरे की सारी शिकन मिटा गयी.. यही है परमात्मा तेरी आलौकिक शक्ति, कही धूप तो कहीं छाया..... ##फुहार की बूंदें##
Nisha Singh
ये रिमझिम, बारिश की फुहार,, लागे उमड़ा है, मेघ का धरा के लिए प्यार,, इक दूजे बिन, दोनों जैसे हों निराधार,, तपती धारा को, मिल गया जिसके लिए तरसी वो प्यार,, पा नन्हीं बूंदों का, स्पर्श पुलकित हो जाता अंतर मन,, प्रकट करती, खुशी अपनी बिखेर हरियाली चहुं ओर,, नव पल्लव, विपट हो जाते अनेक,, झूम उठे मन, खुशी के गाएं मिलकर गीत ...!! ©Nisha Singh #कविता #रिमझिम फुहार
RV Chittrangad Mishra
इश्क की सिर्फ फुहार अच्छी होती है क्योंकि जब इश्क की बाढ़ आती है तो दुनिया उजाड़ जाती है ©R.V. Chittrangad 9839983105 प्यार का फुहार #Hopeless
Saumya Agnihotri
दुनियां की दिखावट का शोर जब हमारे मन के भीतर की शीतलता को निगलने लगता है, जब हमें हमारी चेतना की आवाज़ सुनाई देना बंद हो जाती है जो उस दिखावट झूठी सजावट का हिस्सा नहीं बनना चाहती, तब वो बारिश की फुहारें ही हैं जो उस शोर को खुद में समाहित कर हमें सिखाती हैं अपनी ही धुन में बरसना, वो फुहारें अपनी शीतल धुन में उस शोर को इतना हल्का कर देती हैं ताकि हम फिर से सुन सकें अपने अंतर्मन की आवाज़ और अपनी ही धुन में बह सकें। प्रकृति कभी भी हमें उस शोर का हिस्सा नहीं बनने देना चाहती, वह चाहती है हम जीवन में सहज और सरल रहें क्योंकि जब तक यह सरलता हम में रहती है, हम अपने अस्तित्व से वाकिफ रहते हैं लेकिन ज्यों ही दिखावे की झूठी चादरें हम ओढ़ लेते हैं दूरियां बढ़ने लगती हैं हमारी स्वयं से।। ©Saumya Agnihotri बारिश की फुहार #parent
Shashi Bhushan Mishra
फूल, कली, तितलियाँ बदल गए श्रृंगार से, मन हरा-भरा हुआ सावन की इक फुहार से, घुल गई हवाओं में ख़ुश्बू धरा के ज़िस्म की, तो शांत हो गए अगन उमस भरे ग़ुबार से, नशे में मस्त तितलियाँ फूलों के गिर्द घूमती, काली घटा ने ला दिए दिवस यहाँ ख़ुमार से, लगी झड़ी है भोर से दिवस अभी खुला नहीं, कि हर नयन से झाँकता है बाँकपन दयार से, पखेरूओं के पंख धुल गए मगन हैं शाख पर, खिले खिले धुले हैं तन को बादलों ने प्यार से, कृषक मगन हैं बो रहे खुशी के बीज देखिए, हरित हुए हैं धान से जो खेत थे उजाड़ से, बादल गरज रहे सघन चमक रही है बिजलियाँ, उफन रही नदी नहर डरा रही दहार से, 'गुंजन' हृदय विकल सकल जहान की करे दुआ, भरे सभी के ज़ख्म आज मेघ की बहार से, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #सावन की इक फुहार#