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Rashmi Vats

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Tarakeshwar Dubey

फुहार #fourlinepoetry #कविता

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फुहार
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झिमिर-झिमिर पड़े रेशमी फुहार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
दुअरा पर गमके बेला, कचनार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।

सुनु ए सखी सब परसो के बतिया,
राधा रानी के अइले संहतिया।
वगिया मे झूला पड़े कदम के दारि,
सखि सब चलु मल्हार गावे।

धरती के चुनर भईल बा धानी,
उमड़-उमड़ बहे सरयू के पानी।
वंशी के धुन डोले गोकुल के नारि,
सखि सब चलु मल्हार गावे।

रुनझुन-रुनझुन नाचेले गइया,
चीं-चीं-चीं-चीं चहके वन के चिरइया।
गोपियन सजी सब सोलहो श्रृंगार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।

©Tarakeshwar Dubey फुहार

#fourlinepoetry

vinay vishwasi

आज का दोहा
दिनांक - ०७/०७/२०२०


सावन में पड़ने लगी,रिमझिम मस्त फुहार।

उपवन  में  छाने  लगी, फिर से  नई बहार।।८३।।

 #दोहा #फुहार #विश्वासी

Anamika

##फुहार की बूंदें##

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    गरमी तपती धूप में,
      फुहार की कुछ बूंदें...
     मन को तृप्त कर,
            चहेरे की सारी शिकन मिटा गयी..
  यही है परमात्मा तेरी आलौकिक शक्ति,
           कही धूप तो कहीं छाया..... ##फुहार की बूंदें##

Nisha Singh

कविता रिमझिम फुहार

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Shambhu Nath Pankaj

सावन की रिमझिम फुहार

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RV Chittrangad Mishra

प्यार का फुहार #Hopeless #शायरी

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इश्क की सिर्फ फुहार अच्छी होती है
क्योंकि
जब इश्क की बाढ़ आती है
तो दुनिया उजाड़ जाती है

©R.V. Chittrangad  9839983105 प्यार का फुहार
#Hopeless

Saumya Agnihotri

बारिश की फुहार #parent #विचार

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दुनियां की दिखावट का शोर जब हमारे मन के भीतर की शीतलता को निगलने लगता है, जब हमें हमारी चेतना की आवाज़ सुनाई देना बंद हो जाती है जो उस दिखावट झूठी सजावट का हिस्सा नहीं बनना चाहती, तब वो बारिश की फुहारें ही हैं जो उस शोर को खुद में समाहित कर हमें सिखाती हैं अपनी ही धुन में बरसना, वो फुहारें अपनी शीतल धुन में उस शोर को इतना हल्का कर देती हैं ताकि हम फिर से सुन सकें अपने अंतर्मन की आवाज़ और अपनी ही धुन में बह सकें। प्रकृति कभी भी हमें उस शोर का हिस्सा नहीं बनने देना चाहती, वह चाहती है हम जीवन में सहज और सरल रहें क्योंकि जब तक यह सरलता हम में रहती है, हम अपने अस्तित्व से वाकिफ रहते हैं लेकिन ज्यों ही दिखावे की झूठी चादरें हम ओढ़ लेते हैं दूरियां बढ़ने लगती हैं हमारी स्वयं से।।

©Saumya Agnihotri बारिश की फुहार

#parent

Shashi Bhushan Mishra

#सावन की इक फुहार# #कविता

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फूल, कली, तितलियाँ बदल गए श्रृंगार से,
मन हरा-भरा हुआ सावन की इक फुहार से,

घुल गई हवाओं में ख़ुश्बू धरा के ज़िस्म की,
तो शांत हो  गए अगन  उमस  भरे ग़ुबार से, 

नशे में मस्त तितलियाँ फूलों के गिर्द घूमती,
काली घटा ने ला दिए दिवस यहाँ ख़ुमार से,

लगी झड़ी है भोर से दिवस अभी खुला नहीं,
कि हर नयन से झाँकता है बाँकपन दयार से,

पखेरूओं के पंख धुल गए मगन हैं शाख पर, 
खिले खिले धुले हैं तन को बादलों ने प्यार से,

कृषक मगन हैं बो रहे खुशी के बीज देखिए, 
हरित  हुए  हैं  धान से जो खेत थे उजाड़ से, 

बादल गरज रहे सघन चमक रही है बिजलियाँ, 
उफन  रही  नदी  नहर  डरा  रही  दहार  से, 

'गुंजन' हृदय विकल सकल जहान की करे दुआ, 
भरे  सभी  के  ज़ख्म  आज  मेघ  की  बहार  से,
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #सावन की इक फुहार#

Durgesh Bahadur Prajapati

खुश्बू की फुहार हूँ मैं...

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 खुश्बू की फुहार हूँ मैं...
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