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Ajeet Kumar
तुमसे प्रिय, ये मधुर स्नेह-स्पंदन है, देख तुम्हें, धड़कन में कभी त्वरण तो कभी मंदन है, तुम अप्सरा ठहरी, देवी गुणवती प्रेम बिना, प्रेमी तुम्हारा अकिंचन है, तुमसे ही ये प्रेमरूपी खेल भी है जहाँ जुदाई और अपना मेल भी है एक पल भावपूूर्ण तिरस्कार, फिर अभिनंदन भी है तुमसे प्रिय, ये मधुर स्नेह-स्पंदन है, देख तुम्हें, धड़कन में कभी त्वरण तो कभी मंदन है, तुम अप्सरा ठहरी, देवी गुणवती प्रेम बिना, प्रेमी तुम्हा
atrisheartfeelings
कुछ महत्वपूर्ण बातें .... Please read in caption.... बहुत मेहनत के बाद यह चिन्ह तैयार किया हैं अतः आप से निवेदन हैं कि आप इसे हर students से सहभागिता करें...*✍🏻✍🏻✍🏻 1) + = जोड़
Parasram Arora
त्वरा और तेजस्वीता हमारे जीवन मे तभीआ सकती है ज़ब हम यह मानकर चलना छोड़ दे कि यहां सब कुछ निश्चित है..... और इस निश्चितता में हम स्वयम भी निश्चित हो जाय व्यक्ति यदि संवेदन शील हो और जीवन त्वरा से जीता हो तो मृत्यु के आँचल से भी जीवन के रहस्य निचोड़े जा सकते हैँ ©Parasram Arora त्वरा.... तेज़स्वीता
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 27 हनुमानजी माता सीता को प्रणाम करते है जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥27॥ हनुमानजी ने सीताजी को (जानकी को) अनेक प्रकार से समझा कर,कई तरह से धीरज दिया और फिर उनके चरण कमलों में सिर नवाकर वहां से रामचन्द्रजी के पास रवाना हुए ॥27॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी का लंका से वापस आना हनुमानजी लंका से वापिस आते है चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥ नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥ जाते समय हनुमानजी ने ऐसी भारी गर्जना की,कि जिसको सुन कर राक्षसियों के गर्भ गिर गये॥समुद्र को लांघ कर हनुमानजी समुद्र के इस पार आए और उस समय उन्होंने किलकिला शब्द (हर्षध्वनि) सब बन्दरों को सुनाया॥ राका दिन पहूँचेउ हनुमन्ता। धाय धाय कापी मिले तुरन्ता॥ हनुमानजीने लंका से लौट कर कार्तिक की पूर्णिमा के दिन वहां पहुंचे,उस समय दौड़ दौड़ कर वानर बडी त्वरा के साथ हनुमानजी से मिले॥ हनुमानजी का तेज देखकर वानर हर्षित होते है हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना॥ मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा॥ हनुमानजी को देख कर सब वानर बहुत प्रसन्न हुए और उस समय वानरों ने अपना नया जन्म समझा॥हनुमानजी का मुख अति प्रसन्न और शरीर तेज से अत्यंत दैदीप्यमान देख कर वानरों ने जान लिया कि हनुमानजी रामचन्द्रजी का कार्य करके आए है॥ हनुमानजी के साथ सभी वानर श्री राम के पास जाते है मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥ चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥ और इसी से सब वानर परम प्रेम के साथ हनुमानजी से मिले और अत्यन्त प्रसन्न हुए।वे कैसे प्रसन्न हुए सो कहते हैं कि मानो तड़पती हुई मछलीको पानी मिल गया॥फिर वे सब सुन्दर इतिहास (वृत्तांत) पूंछते हुए और कहते हुए आनंद के साथ रामचन्द्रजी के पास चले॥ सुग्रीव का प्रसंग वानरों का मधुवन के फल खाना तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए॥ रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥ फिर उन सबों ने मधुवन के अन्दर आकर युवराज अंगद के साथ वहां मीठे फल खाये॥जब वहां के पहरेदार बरजने लगे तब उनको मुक्को से ऐसा मारा कि वे सब वहां से भाग गये॥ आगे मंगलवार को ..., 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 27 हनुमानजी माता सीता को प्रणाम करते है जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं क