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Dee . . . . .चातक

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सिद्धार्थ मिश्र स्वतंत्र

नदी के दो किनारे हम Hindi Trending Love Poetry कविता शायरी Shayar स्वतंत्र

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Jitendra KumarYadav ( jitu)

नयी सोच (कविता) #nojotophoto

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 नयी सोच (कविता)

PANKAJ KUMAR SINGH

मेरी नयी कविता

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नफ़रत का जन्म

प्रेम और नफ़रत एक साथ नहीं रहते हैं
प्रेम के मरने के बाद ही
जन्म लेती है नफ़रत 
जो ध्वस्त कर देती है 
प्रेम के बनाए हर चीज को
और फैल जाती है हर तरफ।

नफ़रत एक आग है जो तुरंत फैल जाती है 
और जला देती है हर चीज को
चाहे वह कोई शहर हो, देश हो 
या हो इंसानियत।  
इस आग को बुझाना आसान नहीं होता है 
इसलिए लोग रोटियाँ सेंकने लगते हैं। 

नफ़रतों के शहर में अब प्रेम का
दम घुटने लगा है 
कहीं प्रेम तड़प-तड़प कर मर न जाए
इसलिए,
हे कृष्ण! अब तुम्हें आना ही पड़ेगा 
महाभारत कराने के लिए नहीं 
बल्कि, प्रेम कराने के लिए
इतना प्रेम की नफ़रत के बीज का 
कहीं अंकुरण भी न हो।

   ✍पंकज कुमार सिंह। मेरी नयी कविता

Kumar Dilip Hiragar

कविता के अंश

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हमसफर की चाहत ने
मंजिल ही खो दी

    हम उन्हें ढुंढते रहे   
और वो मंजिल को पा गये

                  -Kumar Dilip कविता के अंश

Dinesh Sharma Jind Haryana

कविता के किस्से #शायरी

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Pushpvritiya

कविता के अंश

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Unknown

नदी के गाथा

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बरफ भरल पहाड़न से
पाथरन  के कछारन से
ताल तलैया पोखरन से
पहाड़न के चीरत फाड़त
सोता झरना बन निकललीं
मीठगर रसगर सभै के पिआस बुझइलीं
जंगरवा खेतन के हरिअर कइलीं
भूईंया के सूखल दरारन के भरलीं
कबहुँ पतझर कबहुँ सावन
कबहुँ बसंत कबहुँ बहार भइलीं
सभै के पापन तारत आपन में समेटलीं
सभै के जिनगी नीमन खुसहाल करलीं
आखिर में लहर  दर  लहर टूटत गयलीं
आपन अस्तित्व खो तहरा में जा समइलीं
तहरा में समइते तीखार खारा हो गयलीं
तु अथाह पानी के लेहले समुंदर कहलइलS
बकिया आरंभ से अंत तक खारा ही रहलS
इहे हौ नदी आ समुंदर के जीवन गाथा
आरंभ कहीं से पर अंत हौ सागर माथा

 नदी के गाथा

M Sunil samrat

नदी के किनारे #poem

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हम नदी के दो किनारे 
एक तुम हो दुजा संग हमारे
मिलन की आस में धरा के छोर तक चलेंगे,
तुम होगी सामने हमारे और मैं सामने तुम्हारे

मिट्टी का एक ढेला उस किनारे से घोलो 
और बढ़ने दो नदी का आवेग थोड़ा,
ताकि घुलकर मिट्टी आये नदी के इस छोर तक
मैं हथेलियों में सजा उसे माथे से अपने लगा लूँ।

मैं नदी के हाँथ भेजूँ घास का हरा तिनका 
लेकिन, प्रवाह प्रचंड धकेले इसे मेरे ही छोर पर
निराश ना हो, नदी सौंपेगी इसको तुमको तुम्हारे छोर पर
उठा तिनके को तुम अपने जुड़े में सजा लो।

हम मिलते रहेंगे यूँही समय अनंत तक
नदी के आदि से और नदी के अंत तक,
तुम्हारे किनारे के मिट्टी को नदी में घुल जाने तक
धारा के खोने औ तिनकों के सुख जाने तक ।

चाह सागर में मिलन की बिल्कुल ही व्यर्थ है, क्योंकि
न होगी नदी, न वो घुली मिट्टी, ना ही होगी कोई धारा
ना होंगे किनारे, न वो तिनके बेचारे औ अस्तित्व ना होगा हमारा
चाह मेरी एक ही हम हों सदा यूँही किनारे
तुम रहो सामने मेरे और मैं सामने तुम्हारे।

©M Sunil samrat नदी के किनारे

river_of_thoughts

Life@shadow कविताई कविता कवितांश

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Life is too short.. चल पड़ूं यूं ही
या दिल-वो-कदम रहूं थाम 
कि होगी बहुत जल्दबाजी अभी
या दम-ए-बाद-ए-सबा 
है बाक़ी अब भी ... ?

साया-ए-जिस्म ही जानता है
साया-ए-जिस्म को ही है खबर
जेहन-वो-जिगर में मेरे
बसा तू किस कदर।
@manas_pratyay #Life@shadow #कविताई #कविता #कवितांश
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