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Manju Lodha
मेरी मातृभूमि, मेरा राजस्थान, वीर योद्धा, ऋषि, मुनि, संत की मातृभूमि, यहां के कण-कण में वीरता की महक, दरों-दीवार में स्वामीभक्ति की मिसाल, किले-दुर्ग, महल, मंदिर और रेगिस्तान, बलिदान एवं शौर्य का धनी मेरा राजस्थान । वीर प्रसूता इस पावन भूमि पर, स्वराज्य सूर्य महाराणा प्रताप का प्रण, हल्दीघाटी का रण और चेतक का बलिदान, अदम्य साहसी राणा सांगा और उनकी तलवार, अस्सी घाव खाकर भी जो करे दुश्मनों का संहार, बलिदान एवं शौर्य का धनी मेरा राजस्थान। सुनकर कविवर चंदवरदाई की प्रेरक वाणी, पृथ्वीराज ने हार को जीत में बदलने को ठानी, शब्दभेदी बाण से, भेद दिया दुष्ट गोरी का सीना, कटा सिर रण में वीर जुंझार का, फिर भी धड़ लड़ता रहा जबतक खत्म न हुआ शत्रु, वह का संहार करता रहा। जयमाल राठौड़, रायमलोत कल्ला की अद्भूत वीरता, अमर सिंह और जैतसिंह चुण्डावत की आन-बान-शान, राजकुमारी रत्नावती और वीर बाला चम्पा का त्याग रानी पदमनी और उनकी सखियों का जौहर, रतन सिंह चूङावत को हाड़ा रानी का उपहार, कर्णावती की वह राखी और भामाशाह का दान बलिदान एवं शौर्य का धनी मेरा राजस्थान। भक्त शिरोमणि करमा बाई की भक्ति, योगन राजकुमारी मीरा का कृष्णभक्ति, स्वामिभक्त पन्नाधाई का कर्तव्य-पूर्ति, वीरांगना रानी बाघेली का बलिदान, यहां के कण-कण में वीरता की महक, बलिदान एवं शौर्य का धनी मेरा राजस्थान । राजाओं-महाराजाओं की यह भूमि महल-हवेलियों, बुर्ज की यह भूमि धुमर-कलबेलिया की भूमि हस्तकलाओं-कविताओं की भूमि इसके रग-रग में कलाओं का भंड़ार बलिदान एवं शौर्य का धनी मेरा राजस्थान । सुखी है मेरी भूमि, पर उपजाऊ है, देवलोक भी तरसे यहां जन्म पाने को, मरूस्थल कहते है इसको पर, देखो, चारों ओर उल्लास का मरूधान है, गुलाबी नगरी इसकी राजधानी तो , रंग-बिरंगा इसके तीज-त्योहार है। परिधान राजसी, लोगों के दिल ठाठसी खान-पान में रईसी, वीरता इसकी पहचान है। बलिदान एवं शौर्य का धनी मेरा राजस्थान है । जय-जय राजस्थान, जय जय मारवाड़ ©Manju Lodha मेरी मातृभूमि, मेरा राजस्थान,
Jagdish Kushwaha
हर साल 22 अप्रैल को पूरी दुनिया में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के प्रणेता अमरीकी सिनेटर गेलार्ड नेलसन हैं। गेलार्ड नेलसन ने, सबसे पहले, अमरीकी औद्योगिक विकास के कारण हो रहे पर्यावरणीय दुष्परिणामों पर अमरीका का ध्यान आकर्षित किया था। इसके लिये उन्होंने अमरीकी समाज को संगठित किया, विरोध प्रदर्शन एवं जनआन्दोलनों के लिये प्लेटफार्म उपलब्ध कराया। वे लोग जो सान्टा बारबरा तेल रिसाव, प्रदूषण फैलाती फैक्ट्रियों और पावर प्लांटों, अनुपचारित सीवर, नगरीय कचरे तथा खदानों से निकले बेकार मलबे के जहरीले ढ़ेर, कीटनाशकों, जैवविविधता की हानि तथा विलुप्त होती प्रजातियों के लिये अरसे से संघर्ष कर रहे थे, उन सब के लिये यह जीवनदायी हवा के झोंके के समान था। वे सब उपर्युक्त अभियान से जुड़े। देखते-देखते पर्यावरण चेतना का स्वस्फूर्त अभियान पूरे अमरीका में फैल गया। दो करोड़ से अधिक लोग आन्दोलन से जुड़े। ग़ौरतलब है, सन् 1970 से प्रारम्भ हुए इस दिवस को आज पूरी दुनिया के 192 से अधिक देशों के 10 करोड़ से अधिक लोग मनाते हैं। प्रबुद्ध समाज, स्वैच्छिक संगठन, पर्यावरण-प्रेमी और सरकार इसमें भागीदारी करती हैं। बहुत से लोग पर्यावरणीय चेतना से जुड़े पृथ्वी दिवस को अमरीका की देन मानते हैं। ग़ौरतलब है कि अमरीकी सिनेटर गेलार्ड नेलसन के प्रयासों के बहुत साल पहले महात्मा गाँधी ने भारतवासियों से आधुनिक तकनीकों का अन्धानुकरण करने के विरुद्ध सचेत किया था। गाँधीजी मानते थे कि पृथ्वी, वायु, जल तथा भूमि हमारे पूर्वजों से मिली सम्पत्ति नहीं है। वे हमारे बच्चों तथा आगामी पीढ़ियों की धरोहरें हैं। हम उनके ट्रस्टी भर हैं। हमें वे जैसी मिली हैं उन्हें उसी रूप में भावी पीढ़ी को सौंपना होगा। गाँधी जी का यह भी मानना था कि पृथ्वी लोगों की आवश्यकता की पूर्ति के लिये पर्याप्त है किन्तु लालच की पूर्ति के लिये नहीं। गाँधी जी का मानना था कि विकास के त्रुटिपूर्ण ढाँचे को अपनाने से असन्तुलित विकास पनपता है। यदि असन्तुलित विकास को अपनाया गया तो धरती के समूचे प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाएँगे। वह जीवन के समाप्त होने तथा महाप्रलय का दिन होगा। गाँधीजी ने बरसों पहले भारत को विकास के त्रुटिपूर्ण ढाँचे को अपनाने के विरुद्ध सचेत किया था। उनका सोचना था कि औद्योगिकीकरण सम्पूर्ण मानव जाति के लिये अभिशाप है। इसे अपनाने से लाखों लोग बेरोजगार होंगे। प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होगी। बड़े उद्योगपति कभी भी लाखों बेरोजगार लोगों को काम नहीं दे सकते। गाँधी जी मानते थे कि औद्योगिकीकरण का मुख्य उद्देश्य अपने मालिकों के लिये धन कमाना है। x आधुनिक विकास के कारण होने वाली पर्यावरणीय हानि की कई बार क्षतिपूर्ति सम्भव नहीं होगी। उनका उपरोक्त कथन उस दौर में सामने आया था जब सम्पूर्ण वैज्ञानिक जगत, सरकारें तथा समाज पर्यावरण के धरती पर पड़ने वाले सम्भावित कुप्रभावों से पूरी तरह अनजान था। वे मानते थे कि गरीबी और प्रदूषण का गहरा सम्बन्ध है। वे एक दूसरे के पोषक हैं। गरीबी हटाने के लिये प्रदूषण मुक्त समाज और देश गढ़ना होगा। गाँधी जी का उक्त कथन पृथ्वी दिवस पर न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। वह विकास की मौजूदा परिभाषा को संस्कारित कर लालच, अपराध, शोषण जैसी अनेक बुराईओं से मुक्त कर संसाधनों के असीमित दोहन और अन्तहीन लालच पर रोक लगाने की सीख देता है। वह पूरी दुनिया तथा पृथ्वी दिवस मनाने वालों के लिये लाइट हाउस की तरह है। पृथ्वी दिवस की कल्पना में हम उस दुनिया का ख्वाब साकार होना देखते हैं जिसमें दुनिया भर का हवा का पानी प्रदूषण मुक्त होगा। समाज स्वस्थ और खुशहाल होगा। नदियाँ अस्मिता बहाली के लिये मोहताज नहीं होगी। धरती रहने के काबिल होगी। मिट्टी, बीमारियाँ नहीं वरन सोना उगलेगी। सारी दुनिया के समाज के लिये पृथ्वी दिवस रस्म अदायगी का नहीं अपितु उपलब्धियों का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने तथा आने वाली पीढ़ियों के लिये सुजलाम सुफलाम शस्य श्यामलाम धरती सौंपने का दस्तावेज़ होगा। 🧡🧡 जगदीश कुशवाहा भोपाल🧡🧡 #alone हमारी मातृभूमि के लिए एक छोटा सा निबंध😃😃😃
somnath gawade
शालेय जीवनात "मी मुख्यमंत्री झालो तर".. हा निबंध नसता तर आज हा सत्तासंघर्ष उद्भवलाच नसता. #निबंध