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Prajjwal Singh
माफ़ करना चाहता हूं मैं भी लिखना तेरी झुकती उठती पलकों पर। पर कलम ठहर जाती है देख मजदूरों को सड़को पर।। चाहता हूं मैं भी उलझना, तेरे रेशम सरीखे बालों में। पर अभी मैं खोया हुआ हूं, उन नन्हे पैरों के छालों में।। सोता मैं भी फुर्सत से कभी, तेरी गोदी में सिर टेक कर। पर नींद गुम है, उस बच्चे को अटैची पर सोता देखकर।। कैसे करूं तारीफ मैं तेरे, इन शरमाते सुर्ख गालों की। घूम जाती है तस्वीर सामने, बिलखते नौनिहालों की।। अभी नहीं लिख सकता मैं, तेरे हुस्न के बारे में। अभी नहीं लिख सकता मैं, किसी जस्न के बारे में।। कल को दुनियां ताने देगी, तू उल्फत में सोता रहा। और प्रवासी मजदूर सड़क पर, कुटुंब सहित रोता रहा।। Pic credit:- internet. #kps #yqdidi #yqbaba #migrantworkers #coronavirus #poetry #letters माफ़ करना चाहता हूं मैं भी ल
Pnkj Dixit
#OpenPoetry 🌷 बचपन 🌷 चील उड़ी , कौआ उड़ा उड़ रहा मासूम बचपन । खेल और खिलौने सब छूट गए भारी किताबों से दबा बचपन।। अब माँ का दूध मिलता नहीं ना ही मिलती पिता की डाँट । भोले-भाले बचपन को मोबाइल रहा है चाट ।। मॉम व्यस्त किटी पार्टी में पॉप पटियाला ज़ाम में । नौनिहालों में संस्कार कौन भरे सब ढल रहे एकल परिवारों में ।। आज़ समय बन रहा बेढंगा बचपन बन रहा लफंगा । हर गांव - शहर हर चौराहों पर लुटी जा रही इज्ज़त , होता दंगा ।। ओ नवयुग की क्रांति का बिगुल बजाने वालो अरे ! संभल जाओ , अभी भी समय तुम्हारा है । नशा , उन्माद , एकाकीपन से बचपन को बचा लो वरना , तुम्हारे वंशवाद का अंत निश्चित होने वाला है ।। २१/०७/२०१९ 🌷👰💓💝 ... ✍ कमल शर्मा'बेधड़क' 🌷 बचपन 🌷 चील उड़ी , कौआ उड़ा उड़ रहा मासूम बचपन । खेल और खिलौने सब छूट गए भारी किताबों से दबा बचपन।। अब माँ का दूध मिलता नहीं
राजेश गुप्ता'बादल'
कितना कुछ है खो दिया हां दौड़ का ही जुनून है हर तरफ, कि मुठ्ठी भर रेत के लिए हमने सारा आसमां खो दिया । कुछ तो है इस आधुनिकता की होड़ में, कि लिवास तो होते रहे साफ दिलों की सादगी को खो दिया। कितना कुछ है खो दिया हां दौड़ का ही जुनून है हर तरफ, कि मुठ्ठी भर रेत के लिए हमने सारा आसमां खो दिया । कुछ तो है इस
Rajesh Raana
आज़ादी के मायने (कैप्शन में पढ़े) आज़ादी के मायने मेरे देश का सबसे बड़ा रोग , आज़ाद देश के गुलाम लोग । हम साम्प्रदायिकता को पकड़े , हम पुरातन बेड़ियों में जकड़े । हम आधे आज़ाद
Saroj Kumar
मुट्ठी भर सम्मान (A poem dedicated to all dear Govt. Teachers who are striking for EQUAL WORK EQUAL PAY today.) हम शिक्षक हैं हमें मुट्ठी भर सम्मान चाहिए। बाकी की पंक्तियां नीचे अनुशिर्षक में पढ़ें -- #Dwell_in_possibility मुट्ठी भर सम्मान हम शिक्षक हैं हमें मुट्ठी भर सम्मान चाहिए। घर की दहलीज को लाँघा बड़े उम्मीदों से।
यशवंत कुमार
शत् शत् प्रणाम!, जवानों की शहादत को, मातृभूमिभूमि पर मर मिटने की आदत को, भारत के नौनिहालों को, हर देशभक्त को, कई धर्मों के बीच उपजी समरसता को, विविधताओं के घट में समायी भारत की एकता को, शत् शत् प्रणाम!, शत् शत् प्रणाम!! Read Full Poem in Caption. शत् शत् प्रणाम!, शत् शत् प्रणाम!! लहराते गगनचुंबी तिरंगे को देशभक्तों के मचलते उमंगों को अल्लाहु अकबर को, हर-हर गङ्गे ! को, भारत-भू के पाँ
Agrawal Vinay Vinayak
स्वदेशी मसाला-जगत् के महाराजा ने दुनिया को कहा अलविदा [ READ CAPTAIN ] मसालों के शहंशाह एमडीएच (महाशियाँ दी हट्टी) के संस्थापक धर्मपाल गुलाटी जी का आज 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। कभी तांगा चलाकर आजीविका कमान