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Anuj Ray
दिल के दर्द ने, ख़ुशी की बारिशे करदी , बिरहन कह उठी, सावन बे दर्दी । ©Anuj Ray #सावन_बे दरदी
Author Sanjay Kaushik (YouTuber)
कल रात के ख़्वाब में जब उनसे मुलाकात हुई कल रात ख्वाब में जब उनसे मुलाकात हुई वो फिर दिल तोड़ कर चल दिये और कोई नई नही बात हुई #ड्रीम#मीटिंग#लव: मीटिंग इन ड्रीम
Mahesh Yadav
टूटे हैं यहां कितनी बार दिल ना जाने कितनों ने अपना बनाकर लूटा है इसी का नाम दुनियादारी यह अपना बना कर ही तो अपनों ने लूटा इसी का नाम है दुनियादारी।। ©Mahesh Yadav बस इसी का नाम दुनिया दरी है
Krishna Kumar
| लोभी दरजी | | लोभी दरजी | एक था दरजी, एक थी दरजिन। दोनों लोभी थे। उनके घर कोई मेहमान आता, तो उन्हें लगता कि कोई आफत आ गई। एक बार उनके घर दो मेहमान आए। दरजी के मन में फिक्र हो गई। उसने सोचा कि ऐसी कोई तरकीब चाहिए कि ये मेहमान यहाँ से चले जाएं। दरजी ने घर के अन्दर जाकर दरजिन से कहा, "सुनो, जब मैं तुमको गालियां दूं, तो जवाब में तुम भी मुझे गालियां देना। और जब मैं अपना गज लेकर तुम्हें मारने दौडू़ तो तुम आटे वाली मटकी लेकर घर के बाहर निकल जाना। मैं तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ूंगा। मेहमान समझ जायेंगे कि इस घर में झगड़ा है, और वे वापस चले जाएंगे।" दरजिन बोली, "अच्छी बात है।" कुछ देर के बाद दरजी दुकान में बैठा-बैठा दरजिन को गालियां देने लगा। जवाब में दरजिन ने भी गालियां दीं। दरजी गज लेकर दौड़ा। दरजिन ने आटे वाली मटकी उठाई और भाग खड़ी हुई। मेहमान सोचने लगे, "लगता है यह दरजी लोभी है। यह हमको खिलाना नहीं चाहता, इसलिए यह सारा नाटक कर रहा है। लेकिन हम इसे छोड़ेंगे नहीं। चलो, हम पहली मंजिल पर चलें और वहां जाकर-सो जाएं। मेहमान ऊपर जाकर सो गए। यह मानकर कि मेहमान चले गए होंगे, कुछ देर के बाद दरजी और दरजिन दोनों घर लौटे। मेहमानों को घर में न देखकर दरजी बहुत खुश हुआ और बोला, "अच्छा हुआ बला टली।" फिर दरजी और दरजिन दोनों एक-दूसरे की तारीफ़ करने लगे। दरजी बोला, "मैं कितना होशियार हूं कि गज लेकर दौड़ा!" दरजिन बोली, "मैं कितनी फुरतीली हूं कि मटकी लेकर भागी।" मेहमानों ने बात सुनी, तो वे ऊपर से ही बोले, "और हम कितने चतुर हैं कि ऊपर आराम से सोए हैं।" सुनकर दरजी-दरजिन दोनों खिसिया गए। उन्होंने मेहमानों को नीचे बुला लिया और अच्छी तरह खिला-पिलाकर बिदा किया। ©Krishna Kumar लोभी दरजी
pujagupta
क्या करे साहब लरकी हू न बचपन से दबकर रहने की आदत लगते देखी हूँ (लड़कौ ) उन्हे मुहँ लगाते हमारे मुहँ पे ताला लगते देखी हू उन्हे convent खुद को government ले जाते देखी हूं फालतू पैसे नहीं के नारे लगते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हूं ना ।। खुद को समाज का खौफ खाते उन्हे लड़की झेङते देखी हूँ कुछ किए बिना खुद को बहुत कुछ सुनते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हूं ना। । खुद के गालो पर चाटा उन्हे चाटा रसीद करते देखी हूं फिर भी उन्हे आँखो का तारा खुद को बोझ कहलाते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हूं ना ।। खुद के पंख कतरते उन्हे पंख लगाते देखी हूं किसी की इज्जत को सरेआम निलाम करते देखी हूं क्या करें साहब लड़की हूं ना ।। माता-पिता के प्यार में अंतर आते उनके गलत में भी प्यार न्यौछावर करते देखी हूं खुद को लड़की होने से डरते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हूं ना ।। अब खुद को भगवान् से लङका बनाने की विनती। भेद भाव के बोझ तले खुद को झुकते देखी हूं लड़की न बनाने की अर्जी लगाते देखी हूँ अगले जन्म मोहे लड़की ही की जो की शिकायत लगते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हू ना। #लरकी हू ना
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी आस्थाओं को मौज मस्तियों से जोड़ चुके है साधनाओ के केंद्र को भोग विलासिता की ओर मोड़ चुके हो दरक चुकी है देव भूमि,अस्तिव खो रही है ऋषि मुनियों तपस्वी की भूमि अपना देवत्त्व खो रही है शांति और आत्मसाद करने वाले पर्वत पहाड़ शैतानियों मानव की वजह से प्रलय की गाथा कह रही है धार्मिक क्षेत्रों में टूरिस्ट पर्यटन को बढ़ावा देने वालो के पापो की सजा दे रही है खतरे में ना आ जाये कही मानव सभ्यतायें चेतावनी पूरे भारत को दे रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" दरक चुकी है देवभूमि,अस्तिव खतरे का दे रही है