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Vaseem Akhthar

زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے

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ज़हरा    के    चमन    में   जो   फूल   खिले   थे।
करबला  की   ख़ाक   में  आज  बिखरे  पड़े   थे।।

कैसा   समाँ,   कैसा    ज़ुल्म-ओ-सितम    होगा।
सिसकियाँ   लेते  बच्चों   में  जब  तीर  गढ़े   थे।।

सर  पे  सजाए   सेहरा,  चेहरे  पे  लिए  मुस्कान।
शहादत  के  लिए  क़ासिम,  दूल्हे   से  सजे   थे।।

करते  थे   प्यार   से   हुसैन   नाना   की  सवारी।
उनसे   गले   लगने   को  आज  तैयार   खड़े  थे।।

पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार।
शहादत   को   हुसैन   मर्तबा  दिलवाने  चले   थे।।

जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर।
उनके ही सर-ए-अक़दस आज  नेज़ों  पे  चढ़े   थे।।

क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना  मनाऊं  सोग अख़्तर।
तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے

Akthari Begum

زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے #YourQuoteAndMine

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🙌🙌 زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے

Vaseem Akhthar

زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے

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ज़हरा    के    चमन    में   जो   फूल   खिले   थे।
करबला  की   ख़ाक   में  आज  बिखरे  पड़े   थे।।

कैसा   समाँ,   कैसा    ज़ुल्म-ओ-सितम    होगा।
सिसकियाँ   लेते  बच्चों   में  जब  तीर  गढ़े   थे।।

सर  पे  सजाए   सेहरा,  चेहरे  पे  लिए  मुस्कान।
शहादत  के  लिए  क़ासिम,  दूल्हे   से  सजे   थे।।

करते  थे   प्यार   से   हुसैन   नाना   की  सवारी।
उनसे   गले   लगने   को  आज  तैयार   खड़े  थे।।

पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार।
शहादत   को   हुसैन   मर्तबा  दिलवाने  चले   थे।।

जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर।
उनके ही सर-ए-अक़दस आज  नेज़ों  पे  चढ़े   थे।।

क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना  मनाऊं  सोग अख़्तर।
तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے

Moon

यजीद था हुसैन हैं #शायरी

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Azeem Khan

# इस दौर के यजीद सुनले#

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हम ना डरेंगे, हमें ना डरा लहू दिखाकर ।

इस दौर के यजीद सुनले,हम हैं कर्बला बाले ।

azeem khan # इस दौर के यजीद सुनले#

Sunil thakur Sunil

निगाहो की ज़ीद हे आँखो से आंसु गिरने की, दिल की ज़ीद हे आपसे रिश्ता निभाने की, आपको ज़ीद हे अगर हमे भूलने की तो, हमे भी ज़ीद हे आपको अपनी या

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निगाहो की ज़ीद हे आँखो से आंसु गिरने की, दिल की ज़ीद हे आपसे रिश्ता निभाने की, आपको ज़ीद हे अगर हमे भूलने की तो, हमे भी ज़ीद हे आपको अपनी या
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