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Roshan Sagar
रविवारची सुट्टी बघावं तिला मी पुसावं निवांत असेल तर निघावं गाडीवर मागे बसावं हात तिच्या खांद्यावर ठेवावं मानेनं पुढे जाऊन बोलावं मानेंन थकून जावं तिच्या खांद्याचा आसरा घ्यावं अशा गप्पा रंगावं रंगलेल्या गप्पांनी दूर निघून जावं दूर कुठेतरी जाऊन बसावं बसलेल्या शरीराने थकून जावं मांडीचा आसरा तिच्यात शोधावं आणि मी निजून जावं वामकुक्षीत वेळ कुठे जावं हळूच तिने मला सांगावं जरावेळ तू बघावं ते पाहून मी थकावं घाईघाईत निघावं संध्याकाळपर्यंत शहरात येऊन टेकावं मधेच आईचा फोन यावं मला जेवलास काय विचारावं मी हो म्हणून घाईत ठेवून द्यावं दुसऱ्या दिवशी आईला आठवावं तिच्याशीच निवांत बोलावं असा कायमचा रविवारचा दिवस माझा निघावं.. अशा एखाद्या रविवारी तुम्ही पण निवांत निघावं.... ~ ®️Osh@n k S@g@®️ रविवार
shishram kulhari
रविवार में भी आजकल मिलावट सी हो गयी है , छुटटी तो दिखती है पर सुकून के पल नजर नही आते ।। -shishram #रविवार
Vikrant Singh Patel
एक आलस भरी चाय, एक देखी हुई फ़िल्म, एक सुस्त झपकी, एक अधपढ़ी किताब में गुज़र गया.....एक हफ़्ते किश्त भर कर ख़रीदा था रविवार, अभी तो आया था न जाने किधर गया..... #रविवार
Prashant
"रविवार...... अब रविवार भी कुछ बदला-बदला सा लगता है जैसे जिंदगी में नौकरी करना गुनाह सा हो गया है दो पल सुकून के कही ढूंढ नही पाता हूँ बेमतलब काम के बोझों से ख्वाहिशो का गला दबाता हूँ कही दोस्तो के साथ घूमने की प्लानिंग होती नही अब जिंदगी में इसकी कोई नई कहानी होती नही अब मिलने,मौज करने,गप्पे लड़ाने और घर जाने का सिलसिला थम सा गया है जैसे जिंदगी में नौकरी करने का गुनाह सा हो गया है... #NojotoQuote #रविवार
Chinmay Pandya
95 का दूरदर्शन और हम - 1.सन्डे को सुबह-2 नहा-धो कर टीवी के सामने बैठ जाना 2."रंगोली"में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना 3."जंगल-बुक"देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना 4."चंद्रकांता"की कास्टिंग से ले कर अंत तक देखना 5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना 6.शनिवार और रविवार की शाम को फिल्मों का इंतजार करना 7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल ना आए तो उस नेता को और गालियाँ देना 8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद कर के खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना 9."मूक-बधिर"समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नक़ल करना 10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो छत पर जा कर ठीक करना बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता, दोस्त पर अब वो प्यार नहीं आता। जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना घडी देखे, अब घडी में वो समय वो वार नहीं आता। बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।। वो साईकिल अब भी मुझे बहुत याद आती है, जिसपे मैं उसके पीछे बैठ कर खुश हो जाया करता था। अब कार में भी वो आराम नहीं आता...।।। जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी है गुथियाँ, उसके घर के सामने से गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता...।।। वो 'मोगली' वो 'अंकल Scrooz', 'ये जो है जिंदगी' 'सुरभि' 'रंगोली' और 'चित्रहार' अब नहीं आता...।।। रामायण, महाभारत, चाणक्य का वो चाव अब नहीं आता, बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।। वो एक रुपये किराए की साईकिल लेके, दोस्तों के साथ गलियों में रेस लगाना! अब हर वार 'सोमवार' है काम, ऑफिस, बॉस, बीवी, बच्चे; बस ये जिंदगी है। दोस्त से दिल की बात का इज़हार नहीं हो पाता। बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।। बचपन वाला वो 'रविवार' अब नही आता...।।। अब वो रविवार नहीं आता #रविवार #sunday