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MANJEET SINGH THAKRAL

https://youtu.be/WGhAGojg-mI इस डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म को एक बार जरूर देखें। कैसे एक नई पार्टी दिल्ली में एक स्थापित सत्त्ता को उठा बाहर फेंकत #विचार

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https://youtu.be/WGhAGojg-mI

इस डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म को एक बार जरूर देखें। कैसे एक नई पार्टी दिल्ली में एक स्थापित सत्त्ता को उठा बाहर फेंकती है।
Yogendra Yadav जी के रोल को भी बखूबी इस डाक्यूमेंट्री फ़िल्म में दिखाया गया है। https://youtu.be/WGhAGojg-mI

इस डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म को एक बार जरूर देखें। कैसे एक नई पार्टी दिल्ली में एक स्थापित सत्त्ता को उठा बाहर फेंकत

हिंदीवाले

डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या उचक्का नहीं कवि हूँ मैं मुझे बख्श दीजिए दारोग़ा जी काव्य-पाठ हेतु मुझे मंच पे पहुँचना है मेरी मजबूरी पे पसीजिए दा #कविता

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डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या उचक्का नहीं
कवि हूँ मैं मुझे बख्श दीजिए दारोग़ा जी
काव्य-पाठ हेतु मुझे मंच पे पहुँचना है
मेरी मजबूरी पे पसीजिए दारोग़ा जी
ज्यादा माल-मत्ता मेरी जेब में नहीं है अभी
पाँच का पड़ा है नोट लीजिए दारोग़ा जी
पौन बोतल तो मेरे पेट में उतर गई
पौवा ही बचा है इसे पीजिए दारोग़ा जी
~अल्हड़ बीकानेरी

©हिंदीवाले डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या उचक्का नहीं
कवि हूँ मैं मुझे बख्श दीजिए दारोग़ा जी
काव्य-पाठ हेतु मुझे मंच पे पहुँचना है
मेरी मजबूरी पे पसीजिए दा

रजनीश "स्वच्छंद"

कलम भी बिकती है।। इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है, बन दरबारी राजाओं के, सत्ता पर जा टिकती है। इतिहास के पन्ने पलट के देखो, सरेआ #Poetry #kavita #hindikavita #hindipoetry

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कलम भी बिकती है।।

इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है,
बन दरबारी राजाओं के, सत्ता पर जा टिकती है।

इतिहास के पन्ने पलट के देखो,
सरेआम गवाही देते हैं।
कर इतिहास वस्त्र विहीन,
सत्त्ता से वाह वाही लेते हैं।
कौन रहा निर्भीक यहां,
किसने सच का दामन थामा था।
एक पृष्ठ की उसकी कहानी,
बना याचक वो सुदामा था।
थे मुट्ठी भर दिनकर यहां,
सत्ता को ललकारा था।
संख्या थी अनगिन उनकी,
सच से किया किनारा था।
सरस्वती धूल फांक रही,
लक्ष्मी का राज्याभिषेक हुआ।
ज्ञान बना दरबारी बैठा,
चापलूस सृजक प्रत्येक हुआ।
हठी रहे कुछ लोग यहां,
जो अलख जगाने निकले थे।
सुन उनकी आवाज़ आर्द्र,
कब सत्ता के मन पिघले थे।
जब तक हवा में वेग न हो,
कब दवानल धधकता है।
जब हुंकार हुआ शब्दों में,
ये बन तलवार चमकता है।
क्यूँ आज रहे मूक बधिर,
आओ मिल हम हुंकार करें।
सुप्त रही जो शिथिल आत्मा,
आ मिल उनका पुकार करें।
कानों में गिरे ये वज्र बन,
आ मिल शब्दों का भार बढ़ाते हैं।
दीये की लौ है टिम टिम करती,
एक मशाल हम यार जलाते हैं।
बुझ जाए वो चूल्हा, सत्ता की रोटी जहां सिंकतीं है।
इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है,

©रजनीश "स्वछंद" कलम भी बिकती है।।

इतिहास गवाही देता है, यहां कलम भी बिकती है,
बन दरबारी राजाओं के, सत्ता पर जा टिकती है।

इतिहास के पन्ने पलट के देखो,
सरेआ
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