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Anil Aaitel

सस्पेंस थ्रिलर

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गुजर रहा है उम्र
पर जीना अभी बाकी है
जिन हालातों ने पटका हैं जमीन पर उन्हें उठ कर जवाब देना अभी बाकी हैं
चल रहा हूं मंजिल के सफर में
मंजिल को पाना अभी बाकी हैं
कर लेने दो लोगो को
चर्चे मेरे हार के
कमयाबी का शोर मचाना अभी बाकी हैं

©Anil Aaitel सस्पेंस थ्रिलर

Bhagirath Mawar

संस्पेंस और थ्रिलर #ज़िन्दगी

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Rani josi

ससपेस और थ्रिलर #सस्पेंस

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Girish Chandra Joshi

# सस्पेंस और थ्रिलर।

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नीता चौधरी

#सस्पेस और थ्रिलर,लव और रोमांस Love #सस्पेंस

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आए ही क्यो थे?
सूरज आता है,धरती के लिए
धरती नही पूछती...
तुम आए क्यो थे?धरती भी जानती है
सूरज उसी को ,सहारा देने आता है।
जिम्मेदारी,अपने,सपने जब ये ही 
थे तुम्हारे लिए सब
तो जिंदगी पूछती है मेरी 
तुमसे!
तुमको इन लफडो में ही 
फसना था तो तुम
मेरी जिंदगी में
आए ही क्यो थे?
गलत मत समझना मेरा सवाल
अपने, जिम्मेदारी,सपने
ये सबके होते हैं।
पर कुछ तुम मेरे भी होते।----नीता चौधरी

© #सस्पेस और थ्रिलर,लव और रोमांस

#Love

RITESH Sharma

त्रिया # सस्पेंस और थ्रिलर पर आधारित एक वेब सीरीज का ट्रेलर

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नीता चौधरी

#सस्पेश और थ्रिलर,#जिंदगी के किस्से,#विचार,#कविता,#समाज और संस्कृति #Dark

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रिश्तो का भ्रम
बनते हैं रिश्ते,अपनेपन में।
दोनो ओर के,हाथ मिलाने से।
एक दूसरे की सुनते,और सुनाने से।
हर पल साथ रहने,और चलने से।
बनते हैं रिश्ते,अपनेपन में।
भ्रम सा होता है,अब रिश्ते बनाने में
छोटा बड़ा,अपना-पराया
अच्छा-बूरा,सब रंग दिखाते हैं
आजकल रिश्तो की आड में
क्रोध के आवेश में,सब खत्म
कर डालते हैं, रिश्ते 
जो कल तक जान लुटाते थे
आज देखना भी नही चाहते।
क्योकि दिमाग , सर्वार्थ से
निभ रहे थे रिश्ते।
भ्रम सा था मुझे,सब निभाते हैं
रिश्ते दिल से।-------नीता चौधरी स्वतंत्र पत्रकार व लेखिका जोधपुर राजस्थान

© #सस्पेश और थ्रिलर,#जिंदगी के किस्से,#विचार,#कविता,#समाज और संस्कृति

#Dark

bhishma pratap singh

#घड़ी_की_चेतावनी#हिन्दी कविताकाव्य संकलनभीष्म प्रताप सिंह#सस्पेंस और थ्रिलर #alarmclock#अक्टूबर creator

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मैं वह घड़ी हूँ सदा आपको, नियमित समय बताती हूँ।
मूल्यवान है समय सदा मैं, सबको ही समझाती हूँ।।
किन्तु लोग हैं चेतावनी पर, मुझे लगा कर सोते हैं।
कूद कूद कर चिल्लाती मैं, जागो किन्तु वे सोते हैं।।
मैं नियमित जगती अलार्म तो, होता तुम्हें जगाने को।
किन्तु बना दिया तुम लोगों ने, इसको मुझे भगाने को।।
चेतावनी की इस चाबी से, अब मैं स्वयं डर जाती हूँ।
बनी तुम्हारे लिए किन्तु, मैं स्वयं सताई जाती हूँ।।
मेरे स्वामी समय से जागो, अब अपना आलस छोड़ो।
समय का अनुपालन करलो, मत आपाधापी में दौडो।।
इति नहीं।
धन्यवाद।

©bhishma pratap singh #घड़ी_की_चेतावनी#हिन्दी कविता#काव्य संकलन#भीष्म प्रताप सिंह#सस्पेंस और थ्रिलर #alarmclock#अक्टूबर creator

bhishma pratap singh

#स्वच्छन्दतितली#हिन्दी कविताभीष्म प्रताप सिंहकाव्य संकलन#सस्पेंस और थ्रिलरButterflyअक्टूबर-क्रिएटर

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मित्रो सुनो!है मेरे जन्म की, अद्भुत एक कहानी।
मुझको मां प्यूपा में भरकर, बन जाती महारानी।।
उस प्यूपा को मां पत्तों में, छुपा टांग देती है।
कितनी असुरक्षा में जन्म की,ये लीला होती है।।
धीरे-धीरे प्यूपा में ही, मेरा विकास होता है।
मुख बनता आंखे खुलतीं, पर अविष्कार होता है।।
तब आती है कहीं हृदय में, उड़ने की अंगड़ाई।
प्यूपा काट स्वयं सोचो मैं, पास तुम्हारे आई।।
तुम संग अठखेलियां करना भी, मुझे बड़ा भाता है।
किन्तु कोई आखेटक मेरा, जीवन ले जाता है।।
तो क्या! मैं नहीं भय से छुपकर, जीवन नष्ट करूंगी।
जितना समय मिलेगा मैं, यों ही स्वच्छंद जिऊंगी।।
अंतहीन।
एक प्ररेणा।

©bhishma pratap singh #स्वच्छन्दतितली#हिन्दी कविता#भीष्म प्रताप सिंह#काव्य संकलन#सस्पेंस और थ्रिलर#Butterfly#अक्टूबर-क्रिएटर

bhishma pratap singh

#जलप्रवाह#हिन्दी कविताभीष्म प्रताप सिंहकाव्य संकलनसस्पेंस एन थ्रिलर #FourWords#अक्टूबर Creator

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इस तरंगिणी का जल प्रवाह, हम दोनों को ही प्यारा था।
एक अद्भुत सा आकर्षण था, नदियों से प्रेम हमारा था।।
हम दोनों भाई-बहन नदी में, तैरने में पारंगत थे।
केवल हम दो ही नहीं अपितु, गाँव के भी अनेकों साथी थे।।
बड़ी सुखद सी थी "जिन्दगी", सब मिलकर बहुत नहाते थे।
जब बात होती थी नहाने की, नहीं "इन्तजार" कर पाते थे।।
एक मूक सा था "इकरार" सभी का, दूर दूर तक बहते थे।
अपने ही गाँव के सब बच्चे, हम बड़े प्यार में रहते थे।।
पर एक दिन इस जल प्रवाह में ही , बह कर के चला गया भाई।
सारे जीवन की प्रीत गयी, बस आस कि आएगा भाई।।
नेति।
धन्यवाद।

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