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Mantu Mantu Turi

BC pdf pdf #ज़िन्दगी

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महेन्द्र चाहर

ऋग्वेद #nojotophoto

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 ऋग्वेद

PRAVEEN YADAV

ऋग्वेद #पौराणिककथा

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सुरेश चौधरी

ऋग्वेद 8,49,4

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ऋग्वेद 8.49.4
समानी व आकूति: समाना ह्रदयानि व:।
समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति॥


गीतिका छंद :
एक  हो  उद्देश्य  संगत  सी  हमारी  भावना
हो   विचारों  की  हमारी  एकता  प्रस्तावना
विश्व  जैसे  आज  एकत्रित  यहां  है एकता
सब असमता दूर हो जागो यहां प्रभु देखता ऋग्वेद 8,49,4

Bishnu kumar Jha

ऋग्वेद उक्ति #समाज

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सुरेश चौधरी

ऋग्वेद 8,49,4

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वेदों की दिशा

।।ॐ।।
स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वा ववृमहे।
अस्माकमविता भव॥

पद पाठ

स्वादो॒ इति॑। पितो॒ इति॑। मधो॒ इति॑। पि॒तो॒ इति॑। व॒यम्। त्वा॒। व॒वृ॒म॒हे॒। अ॒स्माक॑म्। अ॒वि॒ता। भ॒व॒ ॥



हे परमेश्वर! आपने स्वादिष्ट अन्नों  और मधुर पेयों की हमारे लिए रचना की है। आप हमारी रक्षा करें और यह अन्न और पेय हमारे जीवन की सुरक्षा और पोषण के लिए सदैव हमें प्राप्त होते रहें।

Oh God!  You have created delicious foods and  honeysweet drinks for us. You protect us and we may always keep receiving such food and drink for the protection and nutrition of our lives.  (Rig Veda 1–187–2)

(ऋग्वेद » मण्डल:१» सूक्त:१८७» मन्त्र:२ | अष्टक:२» अध्याय:५» वर्ग:६» मन्त्र:२ | मण्डल:१» अनुवाक:२४» मन्त्र:२) #Beauty 
#ऋग्वेद
#वेद

Durga Banwasi Shiwakoti

#ऋग्वेद प्रथम सूक्ति #पौराणिककथा

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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

आ नो॑ द्यु॒म्नैरा श्रवो॑भि॒रा रा॒या या॑तमश्विना । 
पुरु॑श्चन्द्रा॒ नास॑त्या ॥

पद पाठ
आ । नः॒ । द्यु॒मैः । आ । श्रवः॑ऽभिः । आ । रा॒या । या॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । पुरु॑ऽचन्द्रा । नास॑त्या ॥ 

(पुरुश्चन्द्रा, नासत्या) हे अत्यन्त आह्लादक सत्यभाषिन् (अश्विना) व्यापक ! (नः) हमारे समीप आप (द्युम्नैः) दिव्य विद्याओं सहित (आ) आवें तथा (श्रवोभिः) श्रवणीय यशसहित (आ) आवें (राया) विविध धनों सहित (आयातम्) आइये ॥

(Purushchandra, Nasatya) O extremely delightful speaker of truth (Ashwina) broad!  (Nah) Come to us (Dumnaः), with divine teachings (Aa) and (श्रrvobhih), with audible fame (Aa) come (Rāya) with miscellaneous wealth (Imāpam)॥

( ऋग्वेद ८.५.३२ ) #ऋग्वेद #वेद #सत्य

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।
त्वमग्ने द्युभिस्त्वमाशुशुक्षणिस्त्वमद्भ्यस्त्वमश्मनस्परि।
त्वं वनेभ्यस्त्वमोषधीभ्यस्त्वं नृणां नृपते जायसे शुचिः॥

पद पाठ

त्वम्। अ॒ग्ने॒। द्युऽभिः॑। त्वम्। आ॒शु॒शु॒क्षणिः॑। त्वम्। अ॒त्ऽभ्यः। त्वम्। अश्म॑नः। परि॑। त्वम्। वने॑भ्यः। त्वम्। ओष॑धीभ्यः। त्वम्। नृ॒णाम्। नृ॒ऽप॒ते॒। जा॒य॒से॒। शुचिः॑॥

हे प्रकाश और ज्ञान के स्वामी ! आप विद्या में प्रकाशित हैं। आप जलों से पोषण करने वाले बादल के समान हैं। आप वनों में चमकते चंद्रमा के समान शुद्ध हैं। आप एक वैद्य के समान हैं, जो औषधियों द्वारा लोगों को रोग रहित करता है। आप सम्मान करने के योग्य है।

O lord of light and knowledge!  You are illuminated in learning. You are like a cloud nourishing with water. You are as pure as the shining moon in the forests.  You are like a Vaidya who makes people free from diseases by medicines. You are worthy to be respected.  

( ऋग्वेद २-१-१ ) #ऋग्वेद #वेद #सत्कार
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