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रामदरश मिश्र की कलम से प्रस्तुत है- कितने हैं मेहरबान यहाँ के बहेलिये, कहते हैं परिंदो से 'उड़ो' काट के पर को । #KalamSe #Ramdars
Kaynat Mishra
जो लोग बहुत चिंतित रहते है उनके लिए कुछ खास ...चिंता चिता से बढ़कर है नर को निर्जीव बनाती है मुर्दे को चिता जलती है जीते को चिंता खाती है चिंता ना करे हुईहै बही जो रची राखा राज मिश्र के शब्द
kavi Ashwani Mishra
दोहे सेना सुमिरन न किया , दिया पाथर बरसाय । अब आई है बाढ़ जब , कह अश्वनी सेना होऊं सहाय ।।१।। निंदा जम कर कर लिया , किया न नेकी काम । बुरा वक़्त जब आ गया , तुम को करें प्रणाम !!२!! पं. अश्वनी कुमार मिश्रा मिश्रा के दोहे
laxman swami
हे ! प्रियवंद.......... हाँ ! मैं बदल गया जिंदगी के सफर में मैं चलता गया....... दौर मेरा श्रीडूंगरगढ़, गुजरात असम की और चलता गया.... दिशा विश्लेषण देखूं तो मध्य से पश्चिम फिर पूर्वोत्तर गया... किस्मत ने जैसे नाच नचाया वैसे मै नाचता गया....... खुद को बहुत संभाला कहीं सँभला तो कहीं फिसल गया..... भागम-भाग मे वो लोग ही थे मेरे अपने जो जज्बातों के संग खेला.... किसी ने विश्वास तो किसी ने दिल को तोड़ा.... उत्थान में अर्द्धांगिनी का था साथ अनुरूप क्रोद्धांग्नि को बर्फ मे बदल गया..... अर्द्धांगिनी के दिये मंत्र पर चला स्वयं का जय मंत्र उच्चार गया.... वक़्त था बदलने का और मैं बदल गया बड़ी मासूमियत से कह रहे हैं वो लोग देखो ये कितना बदल गया...... देखो ये कितना बदल गया..... ( एक मित्र के भावों का प्रकटीकरण) मित्र के भाव....