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Anukaran

किसी बगीचे की #poem

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किसी बगीचे की नन्ही सी कली हैं आप,
किसी घर की आँखों का तारा है आप,
किसी उपवन की सब से खूबसूरत रचना हैं आप,
किसी अपनो की राज दुलारी हैं आप,
जीवन की सच्चाइयां, उजागर करती हैं आप,
हर पल अपनी मुस्कान दुसरों में बिखेर जाती हैं आप,
हर लम्हा अपनी अच्छाइयां दूसरों मे लुटाती हैं आप,
जीवन को प्रफुल्लित कर जाती हैं आप,
लोगो की ज़िन्दगी मे, उमंग भरने वाली एक छोटी सी ज्योत हैं आप,
किसी बगीचे की नन्ही सी कली हैं आप,
किसी बगीचे की नन्ही सी कली हैं आप ।
                                                     अनुकरण किसी बगीचे की

manoj kumar jha"Manu"

बगीचे में बुलबुल

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मेरे बगीचे में भी बुलबुल, आ गई देखो जरा।
हवा भी तो मचलती सी, आ गई देखो जरा।।

फूलों के ही आसपास, मंडरा रही है वो आज,
लगता है कि तेरी याद, आ गई देखो जरा।।

कुछ गीत सा है गा रही, मैं तो उसको सुन रहा,
जैसे तेरा कोई सन्देशा,  सुना रही देखो जरा।।

साथ में है उसके गौरेया भी तो मचलती सी,
किसी से नहीं वैर, ये कह रही देखो जरा।।

उसकी चहचहाहट से मुझको मिल रही खुशी,
अपनी मुस्कुराहट भी दिखा दो यह सुन के जरा।। बगीचे में बुलबुल

अनुभव पंडित जी

kinaara शायरी बगीचे

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vidushi MISHRA

मन के बगीचे #StarsthroughTree

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तेरे आने की आहट मुझको रोज सुनाई देती है मेरे इस मन की बगीचे में .......लेकिन फिर जब मन यथार्थ की तरफ मुड़ता है , तो ज्ञात होता है कि  यह तो  पंछियों की  कौतूहल है जो कह रही है कि तुम्हारा पैगाम भी शीघ्र आएगा.......... मन के बगीचे

#StarsthroughTree

Bhaskara Bedi

मेरे बगीचे का गुलाब #कविता

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मेरे बगीचे का गुलाब:-
जिम्मेदारियों के बोझ तले,उम्मीदों को साथ लेकर,रंग बदलने मैं चला
बगीचे में एक गुलाब खिलाऊँ मैनें इस ख्वाब को पाला।
आसान नहीं था इतना इस मुकाम को पाना,
खाली पड़ी उस बंजर भूमि में एक गुलाब खिलाना।
नेमतें थी मेरे साथ नामुमकिन तो कुछ भी नहीं,
खून-पसीने से सिंचा खाली पड़ी थी जो बंजर भूमि ।
सुरभित हो मेरा गुलिस्तान ढलती शाम ने दुहाई दी।
ख्वाब अधुरे न रह पाए ,लिख लो तुम खुद की कहानी 
मौन पड़ा था मानव प्राणी खुद के लिखे मुकद्दर से,
पर जाग उठा अब मेरा अन्तर्मन एक सुर्ख कलि के खिल जाने से।
कितने अरमान सज चुके थे,सपने हो रहे थे साकार,
किरणों ने जिसका मुख खोला ,उसने प्रकट किया अपना आभार  ।
था उद्वेलित मेरा हृदय ,अलंकृत हो चला मेरा उपवन,पर लगे ख्वाबों को,
व्यथित न हो मेरा मन नमन किया, शून्य से फुटे उजास को।
शनैः शनैः काल बीता,हरेक पहेली मैं सुलझाता उस गहराती रैन में,
एक सुबह मंजिल देखी खिले जो उस गुलाब में।
पड़े हुए थे कई संदेशें गुलाब के उस पंखुडियों में,कितने किस्से छिपे थे फूलों की मुस्कान में।
झूमता था रोज वह सनसनाती हवाओं में,हर रहस्य जाना मैनें  बदलते हर मौसम में।
किसके काम आऊँगा मैं,कहाँ तू चढ़ाएगा मुझे ,क्या मैं यहाँ महफूज़ हूँ?
अजीब सवालात थे यहाँ,सुन हालात उनके रोज टपकते मेरे आँसू ।
अनभिज्ञ था मैं धर्म -अधर्म के आडम्बर से,धिक्करा खुद को मैनें ।
क्या मैनें पाप किया,क्या मैनें अन्याय किया,तुम्हें नया जन्म देकर,
नहीं,तिरंगे में तुम लिपटे जाओगे,चढ़ाऊँगा तुम्हें शहीदों की चिता पर
बलिदान तुम्हारा व्यर्थ न जाए,कर दो पावन उसके आँगन को,
नाचती जो घूँघरू पहन धूमिल न कर उसकी मर्यादा को।
वज़ूद नहीं मेरा यहाँ जालिमों की बस्ती में।
मैं यूँ ही बेबुनियाद हो जाऊँगा इस सियासी समरांगण में।
पुलकित,पुष्पित,पल्लवित हो जिस धरा को तुम चूमो।
द्वंद्व ,बैर सब मिटे ऐसे तुम जग में मुस्काओ।
क्यों मिटता नहीं अहम मानव का,फँस  चुका जो अन्तर्द्वन्द्व में।
कोई सत्य से परेशां हैं ,कोई मरघट से अंजान है,
देखा नहीं किसी ने गुलाब को ,हँसता है काटों में फिर भी वो मौन है।
बाकी रह गया था कुछ सन्देशा,काल चक्र ने रूप दिखाया ।
वक़्त के थपेडों में,हवाओं ने अपना रूख मोड़ा।
देख मुरझाते गुलाब को अश्कों का सैलाब उमड़ पड़ा,
वही सहर था,वही शाम थी,बस गुलशन में गुल की कमी थी ।
एकांतता का आभास हुआ ,विरह का ताप उठा।
किस्से तेरे पूरे होंगें,मेरे बाग का गुलाब कह छोड़ मुझे चला।
:-भास्कर बेदी ।। मेरे बगीचे का गुलाब

Payal

बगीचे की बात #Rose

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अपने घरों में नकली फूल रखने वाले
बगीचों का शोक होने की बात करते हैं..

©Payal बगीचे की बात 

#Rose
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