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Parasram Arora
किसी भी कविता क़े लिए ईमानदारी कोई बुनियादी शर्त नहीं बन सकती क्योंकि कल्पना मे काव्य बिना पंखो क़े ही उड़ान भरता है अक्सर कविता लिख लेने क़े उपरान्त कवि अपनी कविता की सार्थकता ढूंढ़ने लगता है क्योंकि समझ और तर्क का कविता से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है एक उद्विगन भयाकुल निराश संवेदनशील और घुटन से ओतप्रोत व्यक्तित्व ही सुंदर काव्य रचना मे निपुणता हासिल कर लेता है ©Parasram Arora काव्य का उदगम
Guddu Dubey
भरी बरसात में उड़ के दिखा ऐ माहिर परिंदे आसमान खुला हो तो तिनके भी सफर किया करते हैं !! प्रणाम दोस्तों । कविताओं का काव्य कलश
vaishali
होऊ अबला सबला अष्टाक्षरी काव्य ---–------------------------ होऊ अबला सबला लेकी सावित्रीच्या आम्ही खूप सोसला अन्याय नका हे विसरू तुम्ही लढू अन्याय विरुद्ध आता बनून सबला कमजोर नाही कोणी नाही कोणीच अबला कष्ट करुनी जिद्दीने क्षेत्र सारी सर केली चंद्रावर पोहचले कुठे ना कमी पडली स्वतः निघाले शोधण्या हरवले जे अस्तित्व दाखवण्या जगाला हे माझे खरे व्यक्तिमत्त्व अष्टाक्षरी काव्य#मराठी काव्य
Parasram Arora
साहित्य और काव्य के चारागाह मे खूब चरता रहा हूं और करता रहा हूं जुगाली उस चबी हुईं घास की वो भी धीमी गति से ताकि स्पंदित संवेदनशिलता से मन मेरा बहलता रहे . और भावपूर्ण मुद्राये ह्रदय मे करवट लेती रहे मै नहीं जानता कि मै इस चारागाह का बंदी हूं या ये चारागाह.. मुझमे बंधक बन कर रह रहा हैँ साहित्य और काव्य का चारागाह
प्रेम और मैं
जो ब खा न क र ती है उ स के त जु र्बों का, उ स की चे त ना ओं का, उ स के चिं त न का, औ र सा क्ष्य हो ती है उ स के वि वे क का। कवी का काव्य संग्रह🍁
sapna kumari
मुझे भी सौभाग्य प्राप्त हुआ ©sapna kumari मुझे भी मौका मिला अंतरराष्ट्रीय काव्य गोष्ठी में काव्य पाठ करने का
jyoti gurjar
जिस से कुछ लोग जलते हैं, उस से चार कदम दूर से चलते हैं। _ज्योति गुर्जर #काव्य
Parasram Arora
काव्य ... हमारे भीतर भाव का उद्रेक है एक भावभीनी तरंग है काव्य अप ने से जुड़ने की पहली प्रतीति है पहला साक्षीत्कार है काव्य क़े बिना हमारे जीवन मे वह जो ह्रदय और अदृश्य क़े बीच का सेतुः है वह निर्मित नहीं हो पाताहै. काव्य एक इंद्रधनुष को पृथ्वी और आकाश से जोड़ क़र सारे ध्वदो को मिटा देता है वही काव्य दो किनारो को दो नहीं रहने देता एक कर देता है काव्य क़े लिए ह्रदय को नाचने की कला आनी चाहिए ©Parasram Arora काव्य