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Sam Roy
मतलबी लोगों से अब हमनें भी रिश्ता रखना छोड़ दिया है, अब हम भी लोगों से मतलब से रिश्ता रखते हैं, #मतलब #मतलबी
sameer
कोई दबता नहीं है अब कुचलने से जमाने में। लोग गिरते हैं क्यों मेरे संभलने से जमाने में।। हवा दिशा बदलती हैं,रंग रिश्ते बदलते हैं, फरक पड़ता नही मौसम बदलने से जमाने में।। दुकानें अपने मतलब कीं खोलने को जमाने में। दोस्ती खेल है अच्छा खेलने को जमाने में।। जनम है सात जिंदगी दोबारा मिल भी जाएगी, जनम कम है ये सच्चे दोस्त मिलने को जमाने में।। समीर शेख़ मतलब.....मतलब.....मतलबी दोस्त #matlab #matlabidost #matlabiduniya
sameer
कोई दबता नहीं है अब कुचलने से जमाने में। लोग गिरते हैं क्यों मेरे संभलने से जमाने में।। हवा दिशा बदलती हैं,रंग रिश्ते बदलते हैं, फरक पड़ता नही मौसम बदलने से जमाने में।। दुकानें अपने मतलब कीं खोलने को जमाने में। दोस्ती खेल है अच्छा खेलने को जमाने में।। जनम है सात जिंदगी दोबारा मिल भी जाएगी, जनम कम है ये सच्चे दोस्त मिलने को जमाने में।। समीर शेख़ मतलब.....मतलब.....मतलबी दोस्त #matlab #matlabidost #matlabiduniya
Neetu Sharma
"मतलबी तो मै कल भी नहीं था और आज भी नहीं, पर बेशक एक मतलब ने मेरी दूनियाँ बदल दी। "तुम" #मतलब#मतलबी#nojotohindi#quotes
Rajiv Ahinsa
करके अंधेरा तुम अपने घरों में दिया रोशनी के जलाकर तो देखो मैं दिखने लगूँगा मसीहा सभी को मेरी तरह करके जो इबादत तो देखो राजीव अहिंसा गज़लकार मसीहा
CK JOHNY
उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। रब ही था वो जो आया था इनसान के वेश में आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। दिल खोल के लुटा रहा था वो दिल की दौलत कमनसीबी मेरी कि हम ही दिल खोल न सके। औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश उसके समझाने के बावजूद भी सीधा कर न सके। सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 19.07.2020 मसीहा
DINESH SHARMA
मेरी नई ग़ज़ल से एक शेर मेरे मसीहा , मुझे दुआएं न दे जहर दे दे, या वक़्त पे दवाएं न दे ©दिनेश शर्मा 16.06.2019 , 00:30 AM (Midnight) #मसीहा
CK JOHNY
उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। आया था वो इनसान के वेश में रब था जो आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। दिल खोल के लुटा रहा था वो दौलते मुहब्बत कमनसीबी मेरी हम ही दिल खोल न सके। औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश बावजूद उसके समझाने के सीधा कर न सके। सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। मसीहा
Dinesh Paliwal
फिर से न मुझको तुम बनाओ फरिश्ता, न फिर इन पांव बांधो नया कोई रिश्ता , सलीब ढोने का दम न इन कांधों में बाकी , घाव पिछला अब तक है रह रह के रिसता । ये बात दीगर है तब कौन पहले मुड़ा था , अब कौन पूछे कि वो रिश्ता कैसे जुड़ा था , लिये बोझ जाने यूँ किन किन हसरतों के , हैं फना हो रहे हम अब आहिस्ता आहिस्ता ।। ©Dinesh Paliwal #मसीहा
CK JOHNY
उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। रब ही था वो जो आया था इनसान के वेश में आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। दिल खोल के लुटा रहा था वो दिल की दौलत कमनसीबी मेरी कि हम ही दिल खोल न सके। औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश उसके समझाने के बावजूद भी सीधा कर न सके। सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 19.07.2020 मसीहा