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Ravi Aftab
चलो सफ़र में दूर कहीं चला जाय! जिसकी ज़रूरत हो वक़्त पर बदला जाय! धूप में शोषण की जलने वालों की ख़ातिर; आज़ाद सुकूँ की शाम बनकर ढला जाय! #revolution #शोषण_से_मुक्ति #वक़्त_पर_बदलना
पूनम रावत
नग्नता की कोई निश्चित परिभाषा नही न कोई स्वरूप है.. बस इक विचार हैं.. जो पैर से सर तक ढकी स्त्री में भी बन जाता हैं और इक मासूम सी बच्ची में भी मिल जाता हैं।। पर्दा .. सभ्यता है पर उससे भी कही बड़ा भय है।। ©पूनम रावत #परिवर्त #नारीसम्मान #शोषण_से_मुक्ति
Er.Mahesh
शोषण ,हमेशा अपने से ज्यादा प्रभावशाली व्यक्ति ही करवाता है पहले वो शोषित को डराता है , फिर भटकाता है, और लगातार आपका शोषण करता जाता है केवल एक स्वतंत्रता की आश ही व्यक्ति में शोषण के खिलाप जोश जगाता है वही जोश व्यक्ति में फौलादी एकता को बढ़ाता है एवम उस शोषण को जड़ से खत्म कर जाता है वही व्यक्ति अपने जीवन में आनंद और सम्मान पाता है ©Er.Mahesh #शोषण
NEERAJ SIINGH
कभी कभी मैं जब स्त्री शोषण, बाल शोषण और भी अन्य शोषण को देखता हूँ मेरी रूह काँप जाती हैं पर उतना ही बल भी मिलता हैं कि गलत चीजो से लड़ने के लिए सकारात्मकता का बल , गलत आचरण का और गलत नकारात्मकता का विरोध करो आज हम अगर गलत चीजों का विरोध नही करेंगे तो कल हम पर ये सब चीजें हावी होंगीं— % & #neerajwrites स्त्री शोषण , बाल शोषण , और अन्य शोषण का विरोध करें
Madan
कोई भी अविश्वसनीय असाधारण या मौजूदा मानवीय शक्ति से अधिक कार्य या निर्माण किया जाता है तो उसके पीछे अंधविश्वास अनंत शोषण या छुपी हुई शक्तियों से और बेहतर प्राप्त करने का लोभ होता है ©Madan शोषण #cloud
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी सब्र की चादर बिछाये बैठे है गमो से दिल जलाये बैठे है आसमान की ओट में जान बचाये बैठे है हक हमारा भी है इन हवाओं और पानी मे मगर सताकर हम,लाचारी में बैठे है कौन आके हमारी मेहनतों को शोषणों के दाँव में ठगे बैठे है नाटकीय मोड में,बैठी है दुनियाँ तबाही के वे इंतजाम कर बैठे है जुल्म के कितने वायरस छोड़ कर मौत के मुहाने हम सब बैठे है बरबादियाँ सिर्फ जन जन की है वो तो सत्ता की मलाई चट करने को बैठे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #bornfire शोषणों के दाँव में ठगे बैठे है
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी कद इंसान के बौने ,इमारते गगन को छू रही है कीमतें बे जान चीजो की आदमियत की फजीहत हो रही सपने चाँद और मंगल पर बसाने के जमी पर इंसानियत मर रही है छीनकर गरीबो की रोजी रोटी रसूखदारों की चांदी हो रही है धन बल दुनियाँ का समेटकर शोषणों से,बाजार की उतपत्ति हो रही है लोकतंत्र का दम भर कर लूट राजतंत्र जैसी हो रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #City शोषणों से,बाजारो की उत्तपत्ति हो रही #nojotohindi