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Saurabh Dubey

मेरे गाँव का स्टेशन

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मैं हूँ एक बूढ़ा स्टेशन जिसका नाम है पिरथीगंज,
मेरे हालत को देखकर लोग भी अब कसने लगे हैं तंज।
फिर आऊंगा,फिर मिलूंगा ये वादा कितनों ने किया था 
मग़र न कोई आया,न कोई मिला बस इसी बात का है रंज।।

अपनी पटरियों से देखा है मैंने बचपन को यहाँ गुजरते,
पीहर जाने को बैठी बेटियों को देखा है यहाँ चुपके से संवरते।
मैंने भी सोचा था कभी मेरा भी श्रृंगार बदलेगा
मग़र हर रोज देखता हूं मैं अपने सपनों को यहाँ बिखरते।।

देखता हूँ नीरवता को भंग करती हुई न जाने कितनी ही रेल,
कभी मालगाड़ी,कभी पैसेंजर और कभी पंजाब मेल।
नीम,पीपल,सफेदा के पेड़ों पर हर दिन ही
देखता हूँ मैं यहां नन्ही चिड़ियों का खेल।।

रहा हूँ हमेशा से ही मैं अपनों से रीता,
गाय, बकरियों के बीच ही मेरा हर दिन है बीता।
कभी तो मेरी पूछ-परख करता हुआ कोई आएगा
बस इसी आस में अब भी हूँ मैं जीता।
               -सौरभ दुबे

©Saurabh Dubey मेरे गाँव का स्टेशन

Satish Kumar

याद का स्टेशन #MoralStories

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Ayushi Baranwal

#भारत का प्राइवेट स्टेशन #Knowledge

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Mahendra Pratap Kori

लखनऊ का रेलवे स्टेशन #2023Recap

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rocky star singer

रॉकी स्टार का वीडियो,#सॉन्ग वीडियो #लव

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Sunil Kumar

कितना खूबसूरत वीडियो। #गजब का वीडियो। #पौराणिककथा

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JitanKumar

शादी का वीडियो #कविता

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Lata Sharma सखी

जिंदगी गुजरती है कई सारे स्टेशनों से,
कुछ में हम ठहरते हैं कुछ हममें ठहर जाते हैं,

सुनो! तुम मेरा ऐसा ही कोई स्टेशन हो,
जिसमें मैं जरा ठहरी तो वो मुझमें ठहर गया।

©सखी

©Lata Sharma सखी #स्टेशन

Kumar Pankaj

भारत का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशनKumarpankajteg #जानकारी

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Neelam bhola

स्टेशन

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बचपन,जवानी,बुढ़ापा
जैसे स्टेशन हो कोई,
रेलवे स्टेशन!!
या रेलवे स्टेशन में सिमट आये हो ये दौर जिंदगी के,

सुबह का स्टेशन मानो
नन्हा बच्चा हो कोई,
कभी शांत,कभी चाय चाय की किलकारी
सा गूंजता,
सौंधी सी खुशबु लिये,
बच्चे कि हँसी सा,
कभी खिलखिलाता,कभी चुपचाप स्टेशन,

बचपन का सा स्टेशन,हल्के से आँख मूँदता-खोलता सा दिखता है,
न आने-जाने की होड़ कहीं,
आदमी ना भागता सा,ज़रा रुका सा दिखता है,

दोपहर होते होते स्टेशन पे भीड़ बढ़ती जाती है,
जवानी की ही तरह जिम्मेदारी 
हर तरफ नज़र आती है,
कहीं कूली,कहीं चाय,कहीं लोगों का सामान,
जवानी का पहर है,
ये है मुश्किल,है नही आसान,

चारों तरफ रिश्तों और जिम्मेदारियों की तरह लोग नज़र आते है,
ना जाने कहाँ जाते है,कहाँ से लौट के आते हैं,
कुछ न आने के लिये वापिस,
कुछ न जाने के लिये आते है,

जवानी भी कुछ इसी तरह के पहलुओं को समेटें है,
कहीं खड़े हैं लोग,कहीं बेबस से लैटे हैं,

बुढ़ापे की तरह ही ढलती है 
हर एक शाम स्टेशन पर,
कुछ लोगों के लिये खास,
कुछ लोगों के लिये आम स्टेशन पर,
बुढ़ापे की तन्हाई  की तरह,
स्टेशन की शाम भी तन्हा होती जाती है,
स्टेशन पे अब गाड़ी भी कुछ कम ही आती हैं,

न कूली,न चाय न साजो-सामान होता  है,
बुढ़ापे की ही तरह तन्हा स्टेशन,
हर रोज़ आम होता है।।।।

©Neelam bhola स्टेशन
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