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Karmarajsinh jadeja
क्षत्रिय धर्म को भूल, राजपूत हम बन गये, छोङे सारे क्षत्रिय सँस्कार अँहकार मे तन गये, क्षत्रिय धर्म मे पले हुए हम शिर कटनेपर भी लङते थे, दिख जाता अगर पापी ओर अन्याय कहिँ शेरो कि भाँती टूट पङते थे, शेरो सी शान,हिमालय सी ईज्जत, और गौरवशाली इतिहाष का पूरखो ने हमे अभयदान दिया, जनता के सेवक थे हम लोगो ने भी हमे सम्मान दिया। छूट गई शान,टुट गयी इज्जत पी दारु छोङेसँस्कार ईतिहास का हमने अपमान किया, भूल गई क्या दूनिया सम्मान की खातिर लाखो क्षत्राणियो ने अग्नी श्नान किया। तो फिर दासी को जोधा बता राजपूत का क्यो अपमान किया। दया हम दिखाते है जब ही तो चौहान ने गोरी को 18 बार छोङ दिया। पर रजपूती रँग मे रँग जाये राजपूत तो देखो बिन आँखो के चौहान ने गोरी का शिर फोङ दिया अकेले महाराणा ने दिल्ली कि सल्तनत कोहिला दिया। वीर दुर्गादास ने मुगल के सपनो को मिट्टी मे मिला दिया। अरे हम एक नही रहै तो दुनिया ने हमे भूला दिया । भूल गई क्या दुनिया- हम उनके वँशज है जिन्होने रावण,कँस जैसो को मिट्टी मे मिला दिया। ।।जय माताजी।। ।।जय क्षात्रधर्म।।
Sangeeta Verma
गीता हो या कूरान लिखा है हर ग्रंथ मे तेरा मेरा प्यार ना बेर हो किसी से ना दूश्मन हो कोई ए मित्रा मेरे आँखे हंसती वही है जहाँ मिले तेरा मेरा प्यार गम धूप से मिलती है राहत जब छांव करे तेरा मेरा प्यार यादो के पन्ने पलट कर तो देखो जब सब की जुबां पर था तेरा मेरा प्यार । ( चाँदनी) ©Sangeeta Verma ग्रंथ
Ritu shrivastava
ग्रंथ ग्रंथ में अर्थ छुपा,ग्रंथ ही तारणहार ग्रंथ पढ़े तभी मिले इस जीवन को विस्तार। ©Ritu shrivastava #ग्रंथ
Nitesh Jawa
अगर आप तथाकथित शुद्र हैं और जिन ग्रंथों ने आपको नीच घोषित किया हैं उसके बाद भी अगर आप उन ग्रंथों का समर्थन करते हैं, पूजते हैं तो आप उन ग्रंथों के अनुसार ही वर्ण व्यवस्था का पालन करते हुए अपना कर्म करें ! आपको बाबा साहेब द्वारा निर्मित संविधान प्रदत्त आरक्षण का लाभ उठाने की जरूरत भी नही होनी चाहिए ! - NitSss... झूठे ग्रंथ
Neel
प्रेम पर ग्रंथ एक लिख दूं या कह दूं अनगिनत किस्से, प्रेम से इतर क्या है यहां, कितने हैं अनछुए हिस्से। कोई आंखों से पढ़ता है, कोई होठों से गढ़ता है, कोई हाथों की नरमी से, दिल की हर बात कहता है। कोई कहकर भी न समझे, कोई जाने अनकहे ही, कोई चाहे न रहकर साथ, कोई पूजे बिन मिले ही। प्रेम की न कोई भाषा, प्रेम की न कोई बोली, जिसने मन राम बन साधा, सीता बन वो उसकी हो ली। प्रेम अनवरत बहता झरना, प्रेम पावन गंगा- यमुना, प्रेम सा कुछ पवित्र न जग में, प्रेम के जैसा दूजा सम ना। कितना कुछ कह चुके हैं लोग, कितना कहना अभी बाकी, प्रेम पर कितना कुछ लिख दूं, कितना लिखना अभी बाकी। प्रेम पर ग्रंथ एक लिख दूं, या कह दूं अनगिनत किस्से, प्रेम से इतर क्या है यहां, कितने हैं अनछुए हिस्से।। 🍁🍁🍁 ©Neel प्रेम ग्रंथ 🍁
Neel
प्रेम पर ग्रंथ एक लिख दूं या कह दूं अनगिनत किस्से, प्रेम से इतर क्या है यहां, कितने हैं अनछुए हिस्से। कोई आंखों से पढ़ता है, कोई होठों से गढ़ता है, कोई हाथों की नरमी से, दिल की हर बात कहता है। कोई कहकर भी न समझे, कोई जाने अनकहे ही, कोई चाहे न रहकर साथ, कोई पूजे बिन मिले ही। प्रेम की न कोई भाषा, प्रेम की न कोई बोली, जिसने मन राम बन साधा, सीता बन वो उसकी हो ली। प्रेम अनवरत बहता झरना, प्रेम पावन गंगा- यमुना, प्रेम सा कुछ पवित्र न जग में, प्रेम के जैसा दूजा सम ना। कितना कुछ कह चुके हैं लोग, कितना कहना अभी बाकी, प्रेम पर कितना कुछ लिख दूं, कितना लिखना अभी बाकी। प्रेम पर ग्रंथ एक लिख दूं, या कह दूं अनगिनत किस्से, प्रेम से इतर क्या है यहां, कितने हैं अनछुए हिस्से।। 🍁🍁🍁 ©Neel प्रेम ग्रंथ 🍁